164 किलोमीटर लंबा ट्रैक, 54 फाटक और सुरक्षाकर्मी छह
पठानकोट-जोगेंद्रनगर रेलमार्ग में सुरक्षा का खास प्रबंध नहीं है। एक बड़े मार्ग को संभालने का जिम्मा केवल छह लोगों के हवाले है।
मुनीष गारिया, धर्मशाला। पठानकोट-जोगेंद्रनगर रेलमार्ग के आसपास चलना सुरक्षित नहीं है। यहां कदम-कदम पर खतरा है, क्योंकि खतरे के संबंध में सचेत करने वाला कोई नहीं है। ट्रैक में सुरक्षा आज भी रामभरोसे है। 164 किलोमीटर लंबे इस ट्रैक में रेलवे विभाग ने कहने को कुल मिलाकर छोटे-बड़े 54 फाटक तो बना दिए हैं लेकिन फाटकों में लोगों को खतरे के प्रति सचेत करने वाले सिर्फ छह लोग हैं। हैरानी की बात यह है कि ये कर्मचारी भी केवल रेलवे स्टेशनों में हैं, बाकी सभी फाटक बिना किसी सुरक्षा के हैं।
रेलवे विभाग की इस लापरवाही का ही नतीजा है कि इस साल अब तक यह ट्रैक आठ लोगों की जिंदगियां लील चुका है। एक व्यक्ति की परौर रेलवे स्टेशन के शौचालय में संदिग्ध हालात में मौत हुई है। रेलमार्ग पर 48 फाटक ऐसे हैं, जहां सुरक्षाकर्मियों की तैनाती ही नहीं की गई है और ऐसे में यहां हादसे होते रहते हैं। फतेहपुर उपमंडल के तहत डक व गुरियाल पंचायत के बाशिंदों ने रेलवे फाटक की मांग के समर्थन में दो माह पूर्व पंचायत समिति उपचुनाव का बहिष्कार भी किया था। बड़ी बात तो यह है कि जिन छह फाटकों में सुरक्षाकर्मियों की तैनाती भी गई है, उनकी दूरी रेलवे स्टेशनों से 200 मीटर हैं। यहां पर है डबल लाइन नूरपुर रोड, तलाड़ा, जमावला शहर, हड़सर, नगरोटा सूरियां, गुलेर, ज्वालामुखी रोड, कोपरलाहड़, कांगड़ा, नगरोटा बगवां, मारंडा, पालमपुर, एहजू, बैजनाथ व जोगेंद्रनगर।
ट्रैक में छोटे बड़े कुल 54 फाटक हैं। करीब छह फाटकों में सुरक्षाकर्मी तैनात हैं और ये लगातार स्टेशन मास्टर से संपर्क कर रेलगाड़ियों के आने व जाने से पूर्व सभी को आगाह करते हैं और सुरक्षित गाड़ियों को स्टेशन से निकालते हैं। -अजय गुप्ता, पब्लिक वर्क इंस्पेक्टर, रेलवे विभाग।
यह भी पढ़ें: धौलाधार की पहाड़ियों में फंसे दो विदेशी पायलट, 12 घंटे बाद सुरक्षित निकाले