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इतिहास से रू-ब-रू करवाता नगरकोट किला

यूं तो किले आपने बहुत देखे होंगे मगर जो बात कांगड़ा जिले में त्रिगर्त के मुहाने पर बसे नगरकोट किला में है, वह और कहीं नहीं।

By Munish DixitEdited By: Published: Sat, 11 Aug 2018 12:43 PM (IST)Updated: Sat, 11 Aug 2018 01:27 PM (IST)
इतिहास से रू-ब-रू करवाता नगरकोट किला
इतिहास से रू-ब-रू करवाता नगरकोट किला

यूं तो किले आपने बहुत देखे होंगे मगर जो बात कांगड़ा जिले में त्रिगर्त के मुहाने पर बसे नगरकोट किला में है, वह और कहीं नहीं। किले के शीर्ष तक पहुंचना रोमांचक है। किले की चारदीवारी में घने जंगल, गहरे तालाब, बावड़ी व बुलंद दरवाजों से आप यहां इतिहास के रोमांच से रू-ब-रू हो सकते हैं। तो फिर देर किस बात की...तैयार हो जाएं नगरकोट किले की यात्रा के लिए।

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भूकंप से हिला था किला

कांगड़ा पहले नगरकोट के नाम से प्रसिद्ध था। इसे राजा सुशर्मा चंद ने महाभारत काल के दौरान बसाया था। छठी शताब्दी में नगरकोट जालंधर अथवा त्रिगर्त राज्य की राजधानी होती थी। राजा संसार चंद (18वीं शताब्दी के चतुर्थ भाग में) के राज्यकाल में यहां कला-कौशल का बोलबाला था। यहां की कांगड़ा कलम विश्वविख्यात है और चित्रशैली में भी खास स्थान रखती है। 1905 के भूकंप में कांगड़ा उजड़ गया था। उसके बाद नई आबादी बसाई गई। भूकंप से किले को भी काफी नुकसान पहुंचा था। बाद में किले का जीर्णोद्धार किया गया। हर साल हजारों लोग नगरकोट को देखने आते हैं मगर किले के कई रहस्य आज भी बरकरार हैं।

लांघने पड़ते हैं छह दरवाजे

किले में छह दरवाजे लांघकर पहुंचना पड़ता है। सबसे पहले रणजीत ङ्क्षसह द्वार है। इसके बाद आहिनी दरवाजा, आमीरी दरवाजा, जहांगीर, अंधेरी व दर्शनी दरवाजा है। इन दरवाजों को लांघने के बाद ही मुख्य किले के परिसर में पहुंचा जा सकता है। इन दरवाजों को लांघने के बाद किले पर ऊपर की ओर चढ़ते हुए इसकी पौराणिक भव्यता व रहन सहन का अंदाजा भी होता जाता है। किले में सबसे ऊंचाई वाली जगह पर पहुंच कर वहां से सामने पहाड़ी पर जयंती माता मंदिर व कांगड़ा शहर का दिलकश नजारा दिखता है।

किले में कुलदेवी का मंदिर

कटोच वंशजों की देवी अंबिका का मंदिर भी किले में है। यह देवी कटोच वंशजों की कुलदेवी है। मंदिर में अन्य प्राचीन मूर्तियों को भी सहेज कर रखा गया है।

इतिहास के पन्नों में दफन हुई गुप्त सुरंग

किले के सबसे ऊपरी भाग में गुप्त सुरंग थी। इस सुरंग से महल में रहने वाली रानियां सुबह स्नान के लिए बनेर खड्ड में जाया करती थीं। सुबह पांच बजे रानियां जब स्नान के लिए जाती थीं तो उस समय घंटी बजाई जाती थी ताकि वहां कोई और न जा सके। किले के पास से ही नंदरूल सहित अन्य गांवों के लिए रास्ता भी था। रानियों के स्नान में खलल न पड़े, इसलिए गुप्त सुरंग बनाई गई थी। अब यह सुरंग इतिहास के पन्नों में दफन होकर रह गई है।

दो संग्रहालयों में सहेजी यादें

किले की धरोहरों को संजोकर रखा गया है। किले के अंदर पुरातत्व विभाग द्वारा संग्रहालय बनाया गया है। किले के बाहर कटोच वंशज द्वारा बनाया गया संग्रहालय है।

जैन समुदाय की आस्था का केंद्र

किले में श्री 1008 भगवान श्री आदिनाथ महाराज की मूर्ति है। यहां पर हर साल जैन समुदाय के लोग नव्वाणु यात्रा व अनुष्ठान का आयोजन करते हैं। भगवान श्री आदिनाथ महाराज की इस स्थली को जैन समुदाय का तीर्थ रूप बनाया गया है।

कपूर तालाब में स्नान करती थीं रानी

किले के साथ जंगल में राजा ने कपूर तालाब का निर्माण करवाया था। इस तालाब में बारिश का पानी एकत्रित किया जाता था। इसकी बनावट ऐसी थी कि यहां से पानी फिल्टर होकर कुएं में जाता था। इस कारण पानी की समस्या नहीं होती थी। राजा ने विशेष तकनीक का प्रयोग कर पानी को फिल्टर करवाने का प्रबंध किया था। मान्यता है कि इस तालाब में रानी स्नान करने जाती थीं।

प्रस्‍तुत‍ि : द‍िनेश कटोच/मोह‍िंद्र स‍िंह


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