Diwali 2022: हिमाचल में यहां मनाई जाती है ग्रीन दिवाली, नहीं फोड़ते पटाखे, सतयुग से देव आदेश का हो रहा पालन
Diwali 2022 देश सहित हिमाचल प्रदेश में भी दीपावली को धूम मची हुई है। लेकिन हिमाचल का ऐसा भाग भी है जहां आज दीवाली नहीं मनाई जा रही है। यहां एक माह बाद दियाली पर्व मनाया जाएगा। यहां देव आदेश पर पटाखे नहीं किए जाते।

कुल्लू/मनाली, जागरण टीम। देश सहित प्रदेश के हर कोने में दीपावली की धूम मची हुई है। पटाखे फोड़े जा रहे हैं। वहीं जिला कुल्लू की उझी घाटी सहित लाहुल स्पीति में दीपावली पर्व की कोई चहल पहल नहीं है। उझी घाटी के लोग आज भी पुरानी परंपरा संजोये हुए हैं। हालांकि यहां भी दियाली के नाम से ईको फ्रेंडली पर्व मनाया जाएगा। लेकिन वह नवंबर के आखिरी सप्ताह में आयोजित होगा। घाटी के लोग आज भी पटाखों से दूरी बनाए हुए हैं। मनाली की ऊझी घाटी में दीपावली को पटाखों की गूंज सुनाई नहीं देती है।
यहां होती है अनोखी दियाली
हालांकि दियाली और दीपावली मनाने की परंपरा एक जैसी है। दीपावली में दुकानों से मिठाइयां लाकर बांटी जाती है वहीं दियाली पर्व में घरों में बने गिचे व अक्षु परोसे जाते हैं। लेकिन फर्क इतना है कि दीपावली को लोग पटाखे फोड़ते हैं जबकि दियाली में ऐसा कुछ नहीं होता। बाहरी क्षेत्रों से आकर मनाली में बसे लोग धूमधाम से दीवापली पर्व मना रहे हैं। हालांकि स्थानीय लोग भी घरों में लक्ष्मी की पूजा करते हैं लेकिन पटाखों से दूरी बनाते हैं।
बर्फ से ढकी थी लाहुल व उझी घाटी
मान्यता यह भी है कि भगवान राम जब लंका पर विजयी होकर घर लौटे तो देश भर में खुशियां मनाई गईं और घी के दीये जलाए गए। उस समय मनाली की उझी घाटी व लाहुल-स्पीति बर्फ में दबी थी। इन क्षेत्रों में यह जानकारी देरी से मिली। लोग दीपावली नहीं बल्कि दियाली को धूमधाम से मनाते हैं। ग्रामीण पन्ना, दिले राम, हेमराज ठाकुर, राहुल, सर्वदयाल, चुनी लाल व शेर सिंह ने कहा कि घाटी के लोग सदियों से दीवाली उत्सव को नहीं मानते हैं। ऊझी घाटी के लोग दीयाली पौष के महीने में मनाते हैं।
दीये की बजाय मशालों की रोशनी
परंपरागत रूप में दीये की जगह रोशनी के लिए मशालों का प्रयोग किया जाता है। स्थानीय लोग कहते हैं घर पर बने मीठे पकवान के रूप में गिच्चो का प्रयोग किया जाता है जोकि बजार में मिलने वाली मिलावटी मिठाइयों से हजार गुना बेहतर हैं। लोग सदियों पुरानी परंपरा को निभाते हुए दीपावली के बजाय दियाली उत्सव को मनाएंगे। दियाली उत्सव एक माह बाद सृष्टि के रचयिता मनु महाराज के प्रांगण से शुरू होगा और समस्त घाटी में मनाया जाएगा।
तब 42 दिन नहीं देखते टीवी
मनाली की इस उझी घाटी में सतयुग से आराध्यदेव के आदेशों का पालन हो रहा है। यह वही घाटी है जहां जनवरी महीने में लोहड़ी पर्व के दौरान ऊझी घाटी के लोग देवता के तपस्या में लीन होने के चलते 42 दिन न टीवी देखते हैं न ही खेत-खलिहानों का रुख करते हैं।
लाहुल-स्पीति में नहीं मनाते दिवाली
वहीं, जनजातीय जिला लाहुल-स्पीति में भी अभी तक इस पर्व की रोशनी नहीं पहुंच पाई है। यहां के लोग आज भी अपने ही त्योहार मनाते हैं जबकि रक्षाबंधन, भैयादूज, दशहरा, दिवाली, करवाचौथ सहित अन्य कोई भी त्योहार इस जिला में नहीं मनाया जाता है। कई माह तक बर्फ में कैद रहने वाला और अनूठी सांस्कृतिक विविधताओं, पारंपरिक रीति-रिवाजों, पहनावे के साथ-साथ त्योहारों व उत्सवों को खुद में समेटे शीत मरुस्थल जनजातीय जिला लाहुल-स्पीति में आज भी अपनी ही अलग मान्यताएं और रिति-रिवाज हैं। बौद्ध व हिंदू धर्म को मानने वाले जनजातीय जिला लाहुल-स्पीति में देश-दुनिया से अलग रहन-सहन व अपनी संस्कृति व सभ्यता और रीति-रिवाज हैं।
लाहुल के लोग मनाते हैं कूंह पर्व
लाहुल-स्पीति जिला में लोसर, हालड़ा जिसे लाहुल के हिंदू कूंह कहते हैं, इस त्योहार को हर वर्ष जनवरी में नए साल के रूप में मनाया जाता है। लक्ष्मी माता के रूप में इस जिला के लोग सिरकरअपा देवी की और बलिराजा देव की पूजा-अर्चना करके सुख-समृद्धि की कामना करते हुए आशीर्वाद लेते हैं।
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