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    Himachal: सालभर सूखा रहने वाला पोखर राधा अष्टमी को कैसे भर जाता है पानी से, देवभूमि में यह चमत्कार नहीं तो क्या

    Updated: Sun, 31 Aug 2025 02:20 PM (IST)

    Chamba Pokhar चंबा के अनेला गांव में राधा अष्टमी पर एक अनोखा चमत्कार होता है। यहां एक सूखा पोखर अचानक जल से भर जाता है जिसे स्थानीय लोग भगवान शिव-पार्वती की कृपा मानते हैं। इस पवित्र जल में स्नान करने और इसे घर ले जाने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं।

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    जिला चंबा में पोखर में सुबह पांच बजे पानी भरने पर पूजा करते लोग व शिव मंदिर। जागरण

    केहर सिंह, पुखरी (चंबा)। Chamba Pokhar, देवभूमि हिमाचल का हर कोना किसी न किसी चमत्कार और धार्मिक आस्था से जुड़ा हुआ है। जिला चंबा के अनेला गांव में हर वर्ष राधा अष्टमी के दिन एक सूखा पोखर अचानक जल से भर जाता है। यह किसी चमत्कार से कम है क्या सालभर सूखा रहने वाला पोखर अचानक राधा अष्टमी के दिन कैसे जल से भर जाता है।

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    स्थानीय लोग इस जल को परबी कहते हैं और इसे भगवान शिव-पार्वती की कृपा का संजीव प्रमाण मानते हैं। यही कारण है कि इस दिन यहां भारी संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं और पवित्र स्नान कर पुण्यलाभ प्राप्त करते हैं।

    यह स्थान चंबा जिला मुख्यालय से तीसा की ओर 30 से 35 किलोमीटर की दूरी पर है। यह स्थल लोगों की आस्था का गहरा केंद्र है। 

    भगवान शिव और माता पार्वती से संबंधित है कथा

    लोककथा के अनुसार एक समय भगवान शंकर माता पार्वती के साथ जम्मू से मणिमहेश की ओर जा रहे थे। जब वे अनेला गांव पहुंचे तो रात हो चुकी थी। गांव का एक गडरिया, जिसने अपने भेड़-बकरियों की रक्षा के लिए खूंखार कुत्ते पाल रखे थे, उन्हें रात्रि विश्राम के लिए अपने घर ले आया। आश्चर्यजनक रूप से वे कुत्ते भौंकने के बजाय भगवान शंकर के चरण चाटने लगे। गडरिया समझ गया कि यह कोई साधारण अतिथि नहीं बल्कि दिव्य शक्ति उसके घर आई है।

    जहां रखा था भगवान शिव ने त्रिशूल, वहां प्रकट हुआ पोखर

    उसने अपनी श्रद्धा से उनकी सेवा की और भोजन करवाया। सुबह जब भगवान शंकर और माता पार्वती ने प्रस्थान किया, तो उन्होंने प्रसन्न होकर गडरिये को आशीर्वाद दिया। जिस स्थान पर रात को भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल रखा था, वहीं पर पोखर प्रकट हुआ। यह पोखर पूरे साल सूखा रहता है और केवल राधा अष्टमी के दिन जल से भरकर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बन जाता है।

    हर वर्ष का दिव्य चमत्कार

    रविवार सुबह करीब पांच बजे जैसे ही पोखर से जल निकला, गांव और आसपास के क्षेत्रों से पहुंचे श्रद्धालुओं ने स्नान किया। इस बार पिछले वर्षों की तुलना में जल कम निकला, किंतु आस्था का उत्साह पहले जैसा ही रहा। श्रद्धालु न केवल स्नान करते हैं, बल्कि इस पवित्र जल को अपने घर भी ले जाते हैं, ताकि परिवार पर भगवान शंकर-पार्वती की कृपा बनी रहे।

    गंगाजल से जुड़ी मान्यता

    एक विशेष मान्यता यह भी है कि हरिद्वार से लाया गया गंगाजल तभी पूर्णतया पवित्र माना जाता है, जब उसे अनेला के इस पोखर के जल में मिलाया जाए। इसी कारण श्रद्धालु गंगाजल लेकर आते हैं और यहां स्नान के बाद उसे इस दिव्य जल में मिलाते हैं।

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    भक्ति और उल्लास का वातावरण

    राधा अष्टमी से एक दिन पहले गांव में रात्रि जागरण होता है और भोर में जैसे ही मणिमहेश में श्रद्धालु डल झील में स्नान करते हैं, उसी समय अनेला में भी यह परंपरा निभाई जाती है। डमरुओं की गूंज, घंटों की ध्वनि और भक्ति गीतों के बीच पोखर का जल श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बन जाता है। अनेला गांव की यह परंपरा न केवल चंबा की सांस्कृतिक धरोहर है, बल्कि पूरे हिमाचल की आस्था और विश्वास का प्रतीक है। पीढ़ी दर पीढ़ी यह लोकश्रुति और चमत्कार आज भी उतनी ही जीवंत है, जितनी सदियों पहले थी।

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