हरिद्वार की घटना ने श्रीनयना देवी में मची भगदड़ की दिलाई याद, ...एक चूक ने ले ली थी 160 लोगों की जान, अब कितनी बदली व्यवस्था
Shri Naina Devi 2008 Incident हरिद्वार भगदड़ की घटना ने श्री नयना देवी मंदिर में 2008 में हुई त्रासदी की याद दिला दी जिसमें 160 लोग मारे गए थे। मंदिर प्रशासन ने भीड़ नियंत्रण के लिए कई बदलाव किए हैं जैसे जत्थों में दर्शन लाउडस्पीकर पर प्रतिबंध और बैरिकेड हटाना। सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं।

मुनीष गारिया, बिलासपुर। Shri Naina Devi 2008 Incident, हरिद्वार के मनसा देवी मंदिर में भगदड़ मचने से हुई श्रद्धालुओं की मृत्यु ने श्री नयना देवी मंदिर बिलासपुर में 17 वर्ष पूर्व हुई ऐसी ही घटना की याद दिला दिया है। श्री नयना देवी मंदिर में भी तब श्रावण अष्टमी मेलों के दौरान ऐसे ही भगदड़ मची थी और 160 श्रद्धालु काल के ग्रास बन गए थे। 3 अगस्त 2008 को श्रावण अष्टमी मेलों के दौरान यह भगदड़ मची थी।
उस घटना से सबक लेते हुए मंदिर प्रशासन ने यहां कई बदलाव किए हैं। मुख्य रूप से मंदिर में भीड़ को नियंत्रित करने के व्यवस्था की गई है। ऊंची पहाड़ी पर स्थित श्री नयना देवी मंदिर परिसर ऐसा है अधिक भीड़ होने पर एवं यहां आपातकाल में श्रद्धालु इधर-उधर नहीं जा सकते हैं।
श्री नयना देवी मंदिर में श्रावण अष्टमी के मेले सबसे महत्वपूर्ण होते हैं और इन दिनों रोजाना कम से कम 50 हजार श्रद्धालु पहुंचते हैं। मंदिर परिसर की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि एक समय में 500 से अधिक अधिक श्रद्धालु हो जाएं तो भीड़ हो जाती है।
250-250 के जत्थे में भेजे जाते हैं श्रद्धालु
इसको देखते हुए मंदिर प्रशासन ने जत्थों की व्यवस्था की है। बस स्टैंड के पास बनाए गए मुख्य गेट के साथ ही वेटिंग एरिया बनाया है। वहां पंजीकरण करने के बाद 250-250 का जत्था बनाकर मंदिर में भेजा जाता है। पहले जत्थे की दर्शन प्रक्रिया होने के बाद अगला जत्था भेजा जाता है।
लाउडस्पीकर व ढोल नगाड़ाें पर है प्रतिबंध
2008 की घटना का मुख्य कारण रहे सार्वजनिक घोषणा एवं अनाउंसमेंट प्रक्रिया बंद कर दी है। तब भूस्खलन की अनाउंसमेंट के बाद ही स्थिति बिगड़ी थी। मेलों के दौरान मंदिर परिसर क्षेत्र में लाउडस्पीकर और ढोल नगाड़े पूर्ण रूप से प्रतिबंधित रहते हैं। वहीं श्रद्धालुओं के मंदिर में प्रवेश और बाहर जाने के अलग-अलग रास्ते बनाए गए हैं।
अब नहीं लगते हैं बैरिकेट
उस दुखद घटना में अधिक श्रद्धालुओं के मरने की मुख्य वजह यह रही थी कि पहाड़ी दरकने की अफवाह के चलते लोग पुलिस द्वारा लगाए गए बैरिकेटों को लांघने का प्रयास करने लगे थे। इसी कारण अधिकतर लोग कुचले जाने से मरे थे। ऐसे में अब वेटिंग एरिया से लेकर मंदिर तक कहीं भी बैरिकेट नहीं लगाए जाते हैं। वहीं बस स्टैंड से लेकर मंदिर परिसर तक 100 से अधिक सीसीटीवी कैमरे स्थापित किए जाते हैं।
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तीन अगस्त को हुई थी मंदिर में घटना
श्रावण अष्टमी मेलों के दौरान तीन अगस्त 2008 के दिन सेक्टर नंबर दो और तीन में किसी ने अफवाह फैला दी कि मंदिर के सामने वाली पहाड़ी दरक रही है। यह सुनते ही चारों और भगदड़ मच गई। भगदड़ के कारण 160 लोगों की मृत्यु हुई थी और 150 से अधिक लोग इस घटना में घायल हुए थे।
मंदिर में सुरक्षा के व्यापक प्रबंध किए गए हैं। अधिक भीड़ वाले दिनों में श्रद्धालुओं को नीचे से गत्थों में भेजा जाता है। पुलिस बल के अलावा सीसीटीवी कैमरों से मंदिर में होने वाली हर गतिविधि पर नजर रखी जाती है।
-राहुल कुमार, आयुक्त श्री नयना देवी।
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