कार्डियोजनिक शॉक का अब उपचार संभव है..
अतीत में शॉक लगने की यह स्थिति जानलेवा हुआ करती थी, लेकिन अब ऐसी नौबत आने पर रोगी की जान बचने लगी है, बशर्ते हृदय रोग विशेषज्ञ शॉक के लक्षण तत्काल जान ...और पढ़ें

अतीत में शॉक लगने की यह स्थिति जानलेवा हुआ करती थी, लेकिन अब ऐसी नौबत आने पर रोगी की जान बचने लगी है, बशर्ते हृदय रोग विशेषज्ञ शॉक के लक्षण तत्काल जान ले और रोगी को शीघ्र ही इलाज भी मिल जाए।
जटिलताएं
अनेक मामलों में हार्ट अटैकक जान लेवा नहीं होता, लेकिन इस अटैक के साथ अगर कार्डियोजेनिक शॉक की समस्या भी उत्पन्न हो जाए, तो स्थिति विकट हो जाती है। दिल जब रक्त को पंप करने की शक्ति खो देता है,तो फिर ऑक्सीजन युक्त रक्त नहीं मिल पाने की वजह से किडनी, लिवर और शरीर के दूसरे सभी जरूरी अंग भी अपने-अपने कार्य में असमर्थ हो जाते हैं । दिल के अलावा पीड़ित व्यक्ति के अन्य अंगों पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। फेफड़ों से दिल में पहुंचने वाला ऑक्सीजन युक्त रक्त वापस फेफड़ों में लौटने लगता है। इस स्थिति में सांस लेने में दिक्कत शुरू हो जाती है और रक्तचाप एकदम कम हो जाता है।
हार्ट अटैक के रोगियों में लगभग 10 प्रतिशत मामले कार्डियोजेनिक शॉक से संबंधित होते हैं।
उपचार
हृदय रोग विशेषज्ञ कार्डियोजेनिक शॉक की स्थिति का जितनी शीघ्रता से पता लगाकर इलाज शुरू कर दें, तो रोगी की जीवन रक्षा की संभावनाएं उतनी ही बढ़ जाती हैं। 'शॉक' की पहचान होते ही सबसे पहले इंट्रा-एऑर्टिक बैलून पंप से रक्त की पंपिंग की वैकल्पिक व्यवस्था की जाती है। यह बैलून पंप एक यांत्रिक उपकरण है, जिसे हृदय की मुख्य धमनी(आर्टरी)के अंदर डाल दिया जाता है। फिर सर्जरी या एंजियोप्लास्टी के जरिए दिल की पंपिंग क्षमता ठीक की जाती है।
शरीर के विभिन्न भागों में ऑक्सीजन के स्तर को बनाए रखने के लिए कृत्रिम श्वसन प्रक्रिया की भी जरूरत होती है। सर्जरी या एंजियोप्लास्टी के बीच चयन इस बात पर निर्भर करता है कि दिल की कितनी धमनियों में अवरोध (ब्लॉकेज) हैं। कई घंटे की सर्जरी के बाद सघन चिकित्सा कक्ष (आईसीयू) में भी रोगी पर पैनी निगाह रखना बेहद जरूरी है। इलाज से दिल की पंपिंग क्षमता ठीक हो जाने के बाद वैकल्पिक बैलून पंप को निकाल दिया जाता है।
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