खाद तो मिली लेकिन धान बेचने में छूटे पसीने, यमुनानगर के किसानों का छलका दर्द
वर्ष 2025 में यमुनानगर के किसानों को खाद वितरण में सुधार दिखा, लेकिन धान बेचने में कठिनाई हुई। पराली जलाने के मामले कम हुए, पर वर्षा और जलभराव से फसले ...और पढ़ें

वर्ष 2025 में यमुनानगर के किसानों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा (फोटो: जागरण)
संजीव कांबोज, यमुनानगर। किसान और किसानी दोनों के लिए वर्ष-2025 का अनुभव खट्टा-मीठा रहा। वितरण प्रणाली को पोर्टल से जोड़ देने के बाद यूरिया व डीएपी खाद के लिए लाइनों में नहीं लगना पड़ा।
जबकि अनाज मंडियों में धान को बेचने के लिए किसानों को खूब पसीने छूटे। न न्यूनतम समर्थन मूल्य मिला और न ही समय पर बिकी। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के लिए बड़ी उपलब्धि यह रही कि इस बार पराली जलाने के मात्र तीन केस आए।
इनमें से भी दो ही ट्रेस हो पाए हैं। धान उत्पादक जिलों में यमुना नगर जिला सबसे नीचे रहा है। अगस्त-सितंबर माह में आई वर्षा व जल भराव के कारण धान व गन्ना दोनों फसलों का उत्पादन प्रभावित हुआ है।
जनवरी-2024 में मौसम व परिस्थितियां अनुकूल होने के कारण गेहूं की पैदावार अव्वल रही है और पीला रतुआ जैसा वायरस फसल से दूर रहा। प्रति एकड़ 20-22 क्विंटल पैदावार रही है।
जिले में करीब 90 हजार हेक्टेयर में गेहूं की फसल थी। उसके बाद धान की फसल शुरुआती दौर में ही बौनेपन का शिकार हो गई। करीब पांच हजार एकड़ में यह बीमारी देखी गई। अगस्त-सितंबर माह में वर्षा व जलभराव के कारण भारी नुकसान हुआ।
करीब 85 हजार हेक्टेयर में धान की फसल थी। आठ से दस क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार कम रही है। गन्ने की पैदावार पर भी इसका असर देखा गया। 100 क्विंटल प्रति एकड़ तक नुकसान है। इस बार भी 90 हजार हेक्टेयर पर गेहूं की फसल है। अभी तक फसल स्वस्थ है।
भारतीय किसान संघ के प्रदेश महामंत्री रामबीर सिंह चौहान के मुताबिक बीज, पानी व बिजली के दामों में खास अंतर नहीं आया है। यूरिया व डीएपी खाद के रेट भी वहीं हैं जो बीते वर्ष थी।
50 किग्रा का यूरिया का बैग 267 रुपये का है। बीते वर्ष भी यही रेट था। डीएपी का रेट 1350 रुपये प्रति बैग है। बीते वर्ष भी यही रेट रहा है। पोटाश के रेट में अंतर आया है। बीते वर्ष करीब 1500 रुपये रेट था, जबकि इस वर्ष बढ़कर 1850 रुपये हो गया है।
उनका कहना है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को देखते हुए फसलों में प्रयोग होने वाले खाद व दवाइयों के रेट पहले से ही काफी अधिक हैं। इस वर्ष खास अंतर नहीं आया है। प्राकृतिक आपदा के कारण जरूर किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है।
यूरिया व डीएपी खाद के वितरण को सरकार ने मेरी फसल मेरा ब्यौरा पोर्टल से जोड़ दिया है। वर्ष-2025 में इसका व्यापक तौर पर असर देखने को मिला। रबी सीजन में यूरिया की करीब 60 हजार एमटी की खपत है, जबकि डीएपी की आठ से नौ हजार एमटी रहती है।
खाद वितरण को पोर्टल से जोड़ देने के बाद किसानों को यूरिया व डीएपी खाद के लिए भटकना नहीं पड़ा है। जबकि बीते वर्षों में सीजन के दौरान लाइनें लगी देखी गई। इस बार न तो धान और न ही गेहूं के सीजन में किसानों को खाद की किल्लत का सामना करना पड़ा।
पैक्स पर भी खाद उपलब्ध रहा। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के क्वालिटी कंट्रोल इंस्पेक्टर डा. बाल मुकुंद कौशिक का कहना है कि नकली खाद व बीज से संबंधित इस वर्ष एक भी शिकायत नहीं आई। गुणवत्ता की जांच के लिए समय-समय पर सैंपल लिए जाते हैं।
रादौर, जगाधरी, सरस्वतीनगर व साढौरा रेड जोन में हैं। चारों खंडों में कुल 251 ग्राम पंचायतें हैं। ट्यूबवेलों पर निर्भरता होने के कारण इन ग्राम पंचायतों पानी का दोहन ज्यादा है जबकि संरक्षण कम है।
विशेषज्ञों के मुताबिक हर साल जलस्तर एक से डेढ़ फीट नीचे जा रहा है। यदि इसी गति से जलस्तर गिरता गया तो भविष्य में स्थिति और भी ज्यादा बिगड़ने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
वर्ष-2025 में जलस्तर 10 मीटर के आसपास पहुंच गया। यमुना नदी के पास लगते क्षेत्रों में अवैध खनन गतिविधियों के कारण भी जल स्तर नीचे गया है। अगस्त-सितंबर में हुई वर्षा के बाद जलस्तर में आंशिक सुधार की बात कही जा रही है।
अगस्त- सितंबर माह में भारी वर्षा और जल भराव के कारण 500 गांव के 3042 किसानों ने ई-क्षतिपूर्ति पोर्टल पर नुकसान का दावा किया। किसी ने 100 प्रतिशत को किसी ने 50 प्रतिशत नुकसान का हवाला देकर क्षतिपूर्ति की मांग की।
जिले में करीब 12166 एकड़ में नुकसान बताया गया। ई-क्षतिपूर्ति पोर्टल के सत्यापन के बाद ऐसे किसान भी सामने आए जिन्होंने पोर्टल पर नुकसान का दायरा अधिक बताया।
हालांकि खेत में 50 प्रतिशत नुकसान हुआ लेकिन भरा 100 प्रतिशत गया। ऐसे किसानों का आंकड़ा राजस्व विभाग के पास नहीं है। अनुमान के मुताबिक इनकी संख्या 1200 से अधिक बताई जा रही है। नुकसान का मुआवजा देने की प्रक्रिया सरकार ने शुरू कर दी है।
वर्ष-2025 में एमएसपी की व्यवस्था सुर्खियों में रही। पहले मक्का खरीद पर सवाल उठते रहे। हालांकि मई-जून में कटने वाले मक्का की फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित नहीं है।
उस दौरान 1600 रुपये 1800 रुपये तक बिका। धान की जगह जून-जुलाई में यदि मक्का की बिजाई करने पर मक्का का एमएसपी 2400 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित है। लेकिन वर्षा होने के कारण बिजाई नहीं हो पाती।
भारतीय किसान यूनियन के जिला युवाध्यक्ष संदीप टाेपरा का कहना है कि एमएसपी केवल दिखावा है। धान का एमएसपी 2389 प्रति क्विंटल था। लेकिन यह भी 1700-1900 रुपये प्रति तक बिकी। अनाज मंडियों में किसानों को धान बेचने में दिक्कतें झेलनी पड़ी।
किसानों को राहत देने के लिए सरकार की ओर से फसल बीमा योजना शुरू की हुई है। लेकिन किसानों को उम्मीद के मुताबिक इसका लाभ नहीं हो पा रहा है। क्योंकि बाढ़ प्रभावित क्षेत्र होने के कारण जिले में जल भराव के कारण नुकसान अधिक होता है।
जबकि जल भराव से नुकसान को बीमा योजना के दायरे में नहीं लिया जाता। दूसरा, प्राकृतिक आपदा से हुए नुकसान की भरपाई के लिए मुआवजा दिए जाता है। लेकिन यह भी नुकसान के मुताबिक किसानों को नहीं मिल पाता।
गेहूं की फसल में हुए नुकसान के मुआवजे की घोषणा सरकार ने जरूर कर दी है। लेकिन यह किसानों तक नहीं पहुंचा है। किसान सम्मान निधि का लाभ किसानों को जरूर मिल रहा है। जिले में करीब 55 हजार किसान इस योजना के दायरे में हैं। इसके तहत किसान को प्रति वर्ष छह हजार रुपये मिल रहे हैं।
खेती में मशीनीकरण से किसान को बड़ी राहत मिली है। गन्ने की कटाई के लिए मशीनें आ चुकी है। इससे लेबर की समस्या का काफी हद तक समाधान हुआ है।
समय की भी बचत हुई है और कटाई पर आने वाला खर्च भी कम हुआ है। सरस्वती शुगर मिल की ओर से तीन मशीनें किसानों को उपलब्ध करवाई गई है। एक एकड़ की कटाई के लिए ढाई से तीन घंटे लेती है।
इसी प्रकार, ड्रोन के माध्यम से फसलों में दवाइयों का छिड़काव हो रहा है। इस कार्य के लिए जिले में तीन ड्रोन हैं। खास बात यह है कि तीनों को महिलाएं चला रही हैं।
फसल अवशेष प्रबंधन की यदि बात की जाए तो 1500 कृषि उपकरण किसानों के पास हैं। बड़े पैमाने पर जिले में फसल अवशेष प्रबंधन हुआ है। अनाज मंडियों में ई-खरीद की व्यवस्था होने से भी किसानों को राहत मिली है।
कृषि क्षेत्र तमाम सुविधाओं के बीच किसानों के समक्ष कुछ चुनौतियां भी है। बड़ी चुनौती न्यूनतम समर्थन मूल्य की है। सरकार की ओर से फसलों के मूल्य तो निर्धारित कर दिए गए। लेकिन किसान की फसल इस मूल्य पर खरीदी नहीं जा रही है।
धान का बीता सीजन इसका प्रमाण है। लागत के अनुरूप फसल का मूल्य न मिलने व सीजन में खरीद की व्यवस्था दुरुस्त न होना किसान के लिए सबसे बड़ी समस्या है। किसान अनाज मंडियों में अपनी मर्जी से फसल नहीं बेच पाता।
इसी प्रकार, कृषि कार्यों के लिए लेबर की समस्या विकट बनती जा रही है। हालांकि मशीनीकरण के बाद काफी हद तक समाधान हुआ है। लेकिन अभी गुंजाइश है।
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग की विभिन्न योजनाओं, खाद वितरण व फसल खरीद को मेरी फसल मेरा ब्यौरा पोर्टल से जोड़ दिया गया है। लेकिन पोर्टल में तकनीकी खामियां कई बार किसानों के लिए बड़ी परेशानी बन जाती हैं।

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