पहाड़ों में बर्फबारी का नदियों में असर, संकट में जलीय जीव, बिजली उत्पादन पर भी असर
नदियों में पानी की कमी की वजह से जलीय जीव संकट में हैं। वहीं बिजली इकाइयों पर उत्पादन भी बाधित हो रहा है। पहाड़ों में बर्फबारी की वजह से नदियों मे इसका असर देखने को मिला रहा है। हथनीकुंड बैराज पर भी जलस्तर काफी कम हो गया।
यमुनानगर, जागरण संवाददाता। पहाड़ों में हो रही बर्फबारी का असर नदियों के जलस्तर पर देखा जा रहा है। हथनीकुंड बैराज पर जल स्तर घटकर 4700 क्यूसेक है। हरियाणा व उत्तर प्रदेश के बीचोबीच बह रही यमुना में केवल 352 क्यूसेक व पश्चिमी यमुना नहर में 4400 क्यूसेक पानी का बहाव है। पानी की कमी के चलते पूर्वी यमुना नहर इन दिनों खाली है। विभागीय अधिकारियों के मुताबिक पानी की कमी का कारण पहाड़ी क्षेत्रों में बर्फबारी है। बारिश होने या बर्फ पिंघलने पर जलस्तर बढ़ जाएगा।
बता दें कि यमुना नदी व पश्चिमी यमुना नहर दोनों का संबंध हरियाणा के साथ-साथ दिल्ली व दक्षिण हरियाणा से भी है। यह नदियां न केवल हरियाणा में जल स्तर मेंटेन रखने में कारगर हैं बल्कि उत्तर प्रदेश व दक्षिण हरियाणा के विभिन्न जिलों की भी प्यास बूझा रही हैं। नदियों की ऐसी स्थिति से जलीय जीवों पर भी संकट है। दूसरा, पन पन बिजली इकाइयों पर बिजली उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है।
पन बिजली परियोजनाएं प्रभावित
पश्चिमी यमुना नहर पर आधारित पन बिजली परियोजनाएं भी पानी की कमी से जूझ रही हैं। यमुना जल पर आधारित चार पन बिजली इकाइयां हैं और प्रत्येक इकाई की बिजली उत्पादन क्षमता 16 मेगावाट है। यह इकाइयां ताजेवाला, नैनावाली, भुंडकलां व बेगम पुर में हैं। एक इकाई पर दो-दो मशीनें लगी हैं। सामान्य बिजली उत्पादन के लिए सभी इकाईयों को 5400 क्यूसिक पानी चाहिए। 5400 क्यूसिक पानी मिलने पर यह इकाईयां प्रति 24 घंटे में 10 से 12 लाख युनिट बिजली उत्पादन की क्षमता रखती हैं।
10 लाख यूनिट का लास
पिछले लंबे समय से पहाड़ी क्षेत्रों से पानी का बहाव लगातार कम हो रहा है और प्रतिदिन करीब आठ से 10 लाख यूनिट बिजली का लास हो रहा है। उत्पादन घटकर दो से ढाई लाख यूनिट रह गया है। हालांकि प्रति परियोजना पर दो-दो मशीनें हैं, लेकिन पानी न मिलने के कारण एक-एक मशीन बंद है। पन बिजली इकाइयों पर उत्पादित बिजली सीधे तौर पर सप्लाई होकर थर्मल पावर प्लांटों की भांति पहले पावर ग्रिड जाती है और मांग के मुताबिक वितरण हो जाता है।
आस्था भी आहत
नदियों से आस्था भी जुड़ी हुई है। विशेष अवसरों पर लोग स्नान भी करते हैं और पूजा अर्चना भी की जाती है, लेकिन नदियों में पानी न होने के कारण आस्था भी आहत हो रही है। हमीदा हेड से आगे पश्चिमी यमुना नहर में तो इतना भी पानी की सप्लाई काफी कम रह गई है। जिससे लोगों की आस्था हो ठेस पहुंच रही है। लोग विशेष अवसरों पर आते तो हैं, लेकिन पानी न होने के कारण किनारों पर पूजा अर्चन करके ही लौट जाते हैं।
आती है दुर्गंध
पश्चिमी यमुना नहर में कई नालों का गंदा पानी भी छोड़ा जा रहा है। शहर के कई नाले सीधे तौर पर यमुना में गिर रहे हैं। लेकिन पानी का बहाव न होने के कारण पानी नदी के रसातल में ही समा रहा है। कई जगह तो बहुत अधिक दुर्गंध है। हमीदा के पास हालात ज्यादा खराब देखे जा रहे हैं। औद्योगिक इकाइयों का केमिकल युक्त पानी नदी में ही समा रहा है जिससे प्रदूषण भी बढ़ रहा है। यह केमिकल युक्त पानी जीव जंतु पी लेते हैं जिसके कारण वह काल का ग्रास बन जाते हैं।
"नदियां जल का सबसे बड़ा स्त्रोत हैं। नदियों के भरे रहने से वाटर टेबल संतुलित रहता है। यदि नदियों सूखेंगी तो वाटर टेबल नीचे जाएगा। फसलों को नुकसान होगा। नदियां जलीय जीवों का आश्रय भी है। पानी नहीं होगा तो जैव विविधता चरमरा जाएगी। इसका असर स्थलीय जीव जंतुओं पर भी असर पड़ता है। मत्सय पालन भी प्रभावित होता है। प्राकृतिक रूप से पैदा होने वाला चारा भी नहीं पैदा हो जाएगा। नदियों के आसपास यह नमी के कारण ही पैदा होता है।"
डा. अजय गुप्ता, पर्यावरणविद।