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    Sonipat Flood: टोंकी में अब रोजी-रोटी का संकट, 90 प्रतिशत खेत-खलिहान डूबे, सालभर की मेहनत पर फिरा पानी

    Updated: Sat, 06 Sep 2025 09:32 AM (IST)

    यमुना में जलस्तर बढ़ने से राई के मनोली टोंकी गांव की स्थिति गंभीर है जहाँ खेतिहर मजदूर बेघर हो गए हैं और उनकी फसलें बर्बाद हो गई हैं। गांव में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है जिससे ग्रामीणों को काफी परेशानी हो रही है। ग्रामीणों को सरकार से सहायता की उम्मीद है लेकिन उनकी उम्मीदें निराशा में बदल रही हैं। फसलें बर्बाद होने से किसानों को भारी नुकसान हुआ है।

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    टोंकी में अब रोजी-रोटी का संकट, खेत डूबे, सालभर की मेहनत पर फिरा पानी

    जागरण संवाददाता, राई। यमुना में बढ़े जलस्तर से गांव मनोली टोंकी के हालात सबसे खराब है। यहां की सौ प्रतिशत आबादी खेतिहर मजदूरों की है। इनकी जीविका मनोली व आस-पास के गांवों के खेतों में मजदूरी करके चलती है। जलस्तर से कई गांवों की 90 प्रतिशत तक फसलें बर्बाद होने से इनका जीवन संघर्ष बढ़ गया है। जागरण संवाददाता ने गांव में जाकर वहां के हालात जानें और ग्रामीणों से बातचीत की। ग्रामीणों ने कहा कि जलस्तर भले ही नीचे जा रहा है, लेकिन उनके हालात सुधरने में अभी लंबा समय लगेगा। सरकार से सहायता की आस भी अब निराशा में बदलने लगी है।

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    जलभराव की समस्या से जूझ रहे 

    देश के सबसे उन्नत राज्यों में शुमार हरियाणा के दिल्ली से सटे सोनीपत में यमुना की तलहटी में बसा यह गांव ऐसा है, जहां हर साल जलस्तर बढ़ने पर उन्हें बेघर होना पड़ता है। उनके सामने हर बार रोजी-रोटी का संकट खड़ा होता है, लेकिन सहायता और व्यवस्था में परिवर्तन की उम्मीदें धूमिल हो चुकी हैं। सरकार की तरफ से यहां बिजली की उपलब्धता के साथ ही एक प्राथमिक विद्यालय भी है। इसके अलावा अन्य कोई सरकारी सुविधा नहीं है। दो हजार से अधिक आबादी वाले तीन हिस्सों में बंटे मनोली-टोंकी गांव में मात्र एक परिवार के पास ही भूमि है, इसके पास अपनी खरीदी हुई साढ़े चार एकड़ जमीन है। गांव के तीन में से एक हिस्से के लोग जलभराव की समस्या से जूझ रहे हैं।

    विकास में सौ साल पीछे हैं ग्रामीण

    टोंकी गांव के लोग सौ वर्ष पहले उत्तर प्रदेश से मनोली गांव की जमीन पर आकर बसे थे। इस गांव के लोग देश की विकास यात्रा में खुद को सौ साल पीछे मानते हैं। जिले के राई खंड के अंतर्गत आने वाला यह गांव एनएच-44 से महज 13 किलोमीटर दूर यमुना के तट पर बसा है। दूसरा हाईवे केएमपी गांव के बगल से गुजरता है, लेकिन इस पर चढ़ने का रास्ता नहीं है। गांव में अगर कोई बीमार हो जाए तो इलाज के लिए बागपत जाना पड़ता है।

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    पंचायत भवन तक नहीं

    पहले मनोली गांव की पंचायत का हिस्सा रहे टोंकी में 20 साल से अपनी पंचायत है, लेकिन आज तक पंचायत भवन नहीं है। गांव में कहने काे सरकारी राशन की दुकान है, अधिकतर समय बंद ही रहती है। कई लोगों के तो आज तक राशन कार्ड भी नहीं बने हैं। सरकार की तरफ से कोई बस सेवा तक उपलब्ध नहीं करवाई गई। निजी बस संचालकों ने भी कन्नी काट रखी है। मजदूरी और नाममा़त्र पशुपालन करने वाले लोग चराई पर अन्य स्थानों से पशु लाकर अपने परिवार का पोलन पोषण करते हैं। गांव में ना कोई तालाब है और ना ही पशुओं का अस्पताल है। पोस्ट आफिस भी नहीं है। आय का कोई साधन तक नहीं है। सफाई व्यवस्था भी बदहाल है। महीने-दो महीने में कभी कभार सफाई कर्मी आता है।

    मीलों पैदल चलने को विवश

    गांव में प्राथमिक विद्यालय ही है, आगे की पढ़ाई के लिए बच्चों को गांव से चार किलोमीटर दूर मनोली और लगभग सात किलोमीटर दूर अटेरना जाना पड़ता है। इनमें अनेक बच्चे स्कूल में रोज पैदल ही आते जाते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि दूरी की वजह से गांव के बहुत से बच्चे खासकर लड़कियां उच्च शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। यही कारण है कि गांव में मा़त्र एक ही लड़के को सरकारी नौकरी मिली है वो भी यूपी में।

    ग्रामीण बोले...

    "हमें उन्हें छोटी-छोटी मूलभूत सुविधाओं के लिए भी तरसना पड़ता है। नेता केवल चुनाव में और अधिकारी वर्षा के दिनों में ही यहां आते हैं। वर्तमान विधायक ने गांव में तालाब बनवाने का वायदा किया और चुने जाने के बाद भूल गईं। सरकारी अधिकारी यमुना मैया उफान पर होने के समय ही आते हैं।"

    -जग्गू, ग्रामीण

    "हमारी गरीबी हमारे लिए अभिशाप बन गई है। सरकार सुनती नहीं, ऐसे में उन्नति का कोई साधन नहीं है। आने वाली पीढ़ी का भविष्य भी अच्छा नहीं है। बच्चों के भविष्य को लेकर चिंता सताती रहती है। प्रदेश में शायद ही ऐसा कोई गांव हो, जो पूरा भूमिहीनों का हो।"

    -राजेंद्र, ग्रामीण

    "गांव में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। नेता या अधिकारी गांव में कभी नहीं आते। नेता केवल चुनाव के समय ही उन्हें याद करते हैं। चुनाव प्रचार के दौरान हमसे किए गए वायदे तक उनकाे याद नहीं रहते। आजादी के करीब 79 साल बाद भी उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है।"

    -रामकुमार, ग्रामीण

    "हमारे हालात ऐसे हैं कि अब तो अपनी समस्या बतलाते हुए खुद पर अफसोस होने लगता है। जब नेता वोट मांगने आते हैं तब उन्हें हम बहुत परेशान दिखते हैं। पिछली सरकारों को इसके लिए कसूरवार बताने वाले जीत के बाद हमसे मुंह मोड़ लेते हैं। किसी से सुविधाएं उपलब्ध करवाने की आस बेमानी सी लगने लगी है।"

    -रिछपाल, ग्रामीण

    "गांव टोंकी में कई सारी समस्याएं हैं, जो मेरे संज्ञान में हैं। पिछले वर्ष वहां तक जाने के लिए सड़क अपने स्तर पर बनवाई थी। अब पानी निकासी की समस्या है। गांव के पास खुद की जमीन नहीं है। ग्रामीणों को मूलभूत सुविधाएं मुहैया करवाने के लिए कार्य किया जा रहा है।"

    -कृष्णा गहलावत, राई विधायक

    यमुना का जलस्तर घटा तो दिखने लगे बर्बादी के निशान

    हथनीकुंड बैराज से छोड़े गए पानी से जिले में यमुना किनारे बसे करीब 50 गांवों में हजारों एकड़ भूमि पर धान, गन्ना व सब्जियों की फसल बर्बाद हो चुकी है। अब जलस्तर घटने लगता तो बर्बादी के निशान भी नजर आने लगे हैं। गांवों की तरफ या खेतों में जाने वाले रास्तों के किनारे अब हल्के नजर आने लगे हैं। शिविरों में ठहरे लोगों ने जलस्तर कम होने पर राहत की सांस ली है, लेकिन फसलें बर्बाद होने से उन्हें भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है।

    दिन भर खिली रही धूप, शाम को फिर बरसे मेघ

    मौसम में लगातार उतार चढ़ाव बना हुआ है। शुक्रवार को सुबह से तेज धूप खिली रही, जिससे तापमान में बढ़ोतरी हुई, वहीं लोगों को उमस का सामना करना पड़ा। हालांकि दोपहर बाद फिर आसमान में बादल छा गए और वर्षा शुरू हो गई। कुछ देर की वर्षा में कई सड़कों पर हल्का जलभराव भी हुआ। इससे लोगों को उमस से राहत मिली है। मौसम में आ रहे फेरबदल से बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। चिकित्सक भी लोगों को सावधानी बरतने की सलाह दे रहे हैं। मौसम विज्ञानी डाॅ. प्रेमदीप सिंह ने कहा कि शनिवार को आसमान पर बादल छाने के आसार बने हुए हैं।

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