नसों के ब्लाक होने से होती समस्या : डॉ. तरुण
रोहतक, जागरण संवाददाता : देश में प्रति वर्ष डायबिटिक फुट से प्रभावित लगभग 40 हजार मरीजों का अंग-भंग करना पड़ता है। इसके मरीजों की नसें निष्क्रिय हो जाती हैं। कई बार मरीजों को इस बात का पता तक नहीं चल पाता। शरीर में दर्द रहना, अंगों का फड़कना, हाथ-पैर का संवेदनहीन होना आदि इसके लक्षण हैं। इसका इलाज करने वाले चिकित्सक व मरीज का जागरूक होना जरुरी है। यह बात शनिवार मेदांता मेडिसिटी गुडगांव से आए वैसक्यूलर एंड एंडोवेसक्यूलर सर्जन के कंसलटेंट डॉ. तरुण ग्रोवर ने पत्रकारों से बात करते हुए कही।
चिकित्सक ने कहा कि हमारा उद्देश्य अधिक से अधिक फिजिशियन को डायबिटिक फुट एंड फेरिफेरल वैसक्यूलर डिजीज के बारे में जागरूक करना है। इससे इस बीमारी में कमी लाई जा सकती है। इसकी शुरूआत खुजली से उभरे निशान, लाली व पैरों के सुन्न होने से होता है। इसमें फोडे़ लाल होने के साथ घाव से बदबू आने लगती है। इससे शरीर के निचले हिस्से में रक्त प्रवाह कम हो जाता है और वह अंग निष्क्रय होने लगता है। इस स्थिति को अर्थोक्लोरिस कहते हैं। इस बीमारी से इलाज के लिए नई तकनीक अगिनओप्लास्टी आफ लेग तकनीक विकसित की गई है। इसके अच्छे परिणाम मिल रहे हैं। इस विधि द्वारा मरीज को अधिक समय नहीं देना पड़ता, उसे एक दिन बाद घर भेज दिया जाता है।
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