'नाला नहीं, नदी है साहबी', एनजीटी ने केंद्र और राज्य सरकार से मांगी सुधार करने की ठोस कार्य योजना
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने साहबी नदी को नाला मानने से इनकार करते हुए केंद्र और राज्य सरकार से इसके सुधार के लिए ठोस कार्य योजना मांगी है। एनजीटी ने कहा कि साहबी एक नदी है और इसके पुनरुद्धार के लिए विस्तृत योजना की आवश्यकता है। यह निर्देश नदी के संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण है।

साहिबी नदी। फाइल फोटो
जागरण संवाददाता, रेवाड़ी। एक समय दक्षिण हरियाणा की जीवनरेखा कही जाने वाली साहबी नदी (जिसे बाद में नजफगढ़ ड्रेन कहा गया) आज प्रदूषण की चपेट में आकर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। यह नदी जो कभी अरावली की पहाड़ियों से निकलकर धारूहेड़ा और रेवाड़ी होते हुए मसानी बराज तक निर्मल जल लेकर बहती थी, अब औद्योगिक कचरे और सीवरेज के जहरीले मिश्रण से भर चुकी है। मसानी बराज से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए एनजीटी की प्रधान पीठ ने सख्त टिप्पणी की।
पर्यावरण और इतिहास से अन्याय
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) की प्रधान पीठ में शामिल न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी (न्यायिक सदस्य) और डाॅ. अफरोज़ अहमद (विशेषज्ञ सदस्य) सुनवाई के दौरान कहा कि साहबी नदी का मूल स्वरूप ‘नजफगढ़ ड्रेन’ के नाम के पीछे दब गया है, जो पर्यावरण और इतिहास दोनों के साथ अन्याय है।
न्यायालय ने कहा कि साहबी नदी एक स्वतंत्र प्राकृतिक जलधारा है। इसे केवल नाला या ड्रेन कहना इसकी आत्मा का अपमान है। इस नदी के मूल नाम और स्वरूप को पुनर्स्थापित किया जाना चाहिए। एनजीटी ने इस मामले में केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी आवश्यक पक्ष के रूप में शामिल करते हुए उन्हें रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं।
समाधान की ठोस योजना पेश करने को कहा
बृहस्पतिवार को हुई सुनवाई में एनजीटी ने अपने आदेश में कहा कि राज्य सरकार दो सप्ताह के भीतर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करें। केंद्र का पर्यावरण मंत्रालय नदी के नाम साहबी को पुनर्स्थापित करने और उसके पुनरुद्धार पर अपना स्पष्ट पक्ष रखे। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड नदी में प्रदूषण के स्रोतों की पहचान कर उसके समाधान की ठोस योजना पेश करें। इस मामले की अगली सुनवाई 31 अक्टूबर 2025 को होगी।
स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरा
इस गंभीर पर्यावरणीय संकट को लेकर रेवाड़ी के गांव खरखड़ा के रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता प्रकाश ने एक याचिका दी थी। वर्ष 2022 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) में दी गई उसी याचिका पर सुनवाई में यह निर्देश जारी किए गए हैं।
याचिका में उन्होंने यह मुद्दा उठाया कि मसानी बराज क्षेत्र में छोड़े जा रहे प्रदूषित जल से आस-पास के गांवों का भूजल दूषित हो रहा है। यह स्थिति सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए खतरा बन चुकी है।
जहरीले जल का बड़ा स्रोत बन रहा मसानी बराज
धारूहेड़ा के पास स्थित मसानी बराज, जो कभी वर्षा के पानी और साहबी नदी की स्वच्छ धारा से भरा रहता था, अब चारों ओर से आने वाले औद्योगिक अपशिष्ट, सीवरेज और रासायनिक जल से प्रदूषित हो चुका है।
इस जहरीले पानी के कारण आस-पास के गांव खरखड़ा, मसानी, भटसाना, ततारपुर खालसा, खलियावास, तितरपुर, जीतपुरा, आलावलपुर, जड़थल, खिजुरी, धारूहेड़ा आदि का भूजल अत्यधिक दूषित हो चुका है।
विभिन्न जांच में पाया गया कि इन क्षेत्रों में टीडीएस, फ्लोराइड, आयरन और मैग्नीशियम की मात्रा खतरनाक स्तर तक पहुंच चुकी है। नतीजतन, खेती की जमीन की उर्वरता घट रही है, पशुधन बीमार पड़ रहे हैं और लोगों को त्वचा एवं श्वसन संबंधी बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है।
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