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    स्वयं के लक्ष्य निर्धारण से मिली सफलता ही खुशी का आधार

    By Edited By:
    Updated: Thu, 06 Oct 2016 02:57 PM (IST)

    संस्कारशाला: सुखी जीवन के लिए लक्ष्य निर्धारण प्राचार्य के विचार जीवन में मुस्कराने की वजह स्व

    संस्कारशाला: सुखी जीवन के लिए लक्ष्य निर्धारण

    प्राचार्य के विचार

    जीवन में मुस्कराने की वजह स्वयं ही ढूंढना पड़ता है। उज्ज्वल भविष्य का सपना निश्चित रूप से जीवन में प्रसन्नता एवं उमंग पैदा करता है। ¨कतु किसी भी सुनहरे सपने को साकार करने के लिए जीवन में पुरुषार्थ करना पड़ता है। कोई भी लक्ष्य बिना संघर्ष और मेहनत के प्राप्त नहीं किया जा सकता। लक्ष्य प्राप्ति के लिए उपलब्ध संसाधनों और समय का सही संतुलन बनाना होता है। जीवन का उद्देश्य केवल किसी लक्ष्य को हासिल करना न होकर प्रसन्नता के साथ सफलता प्राप्त करना होना चाहिए।

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    लक्ष्य का चुनाव: हम सभी को जीवन में ऐसे लक्ष्य का चुनाव करना चाहिए जो वास्तविक हो अर्थात जिसे प्राप्त करना संभव हो। जैसे अच्छे पायलट बनने का लक्ष्य मेहनत और लगन से प्राप्त किया जा सकता है। परंतु पक्षी बनकर आकाश में उड़ने का सपना पूरा करना कठिन होता है। हमें लक्ष्य ऐसा चुनना चाहिए जो हमें प्रेरित करे और चुनौतियों से भी परिपूर्ण हो। असंभव लक्ष्य का निर्धारण हमारे जीवन में केवल तनाव ही उत्पन्न करता है।

    क्षमताओं के अनुसार लक्ष्य चुनें:किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति हमें प्रसन्नता का अनुभव तभी करा सकती है जब हमने लक्ष्य का चुनाव स्वयं अपनी क्षमताओं को ध्यान में रखकर किया हो न कि किसी और के कहने या मजबूर करने पर। अपनी क्षमताओं का ध्यान रखते हुए दृढ़ विश्वास, निरंतर कार्य करने की क्षमता, उचित ²ष्टिकोण, सही मार्गदर्शन अपनाएं और सदा स्वयं को प्रेरित रखना अति आवश्यक है।

    लक्ष्य प्राप्ति के लिए सही योजना का हो चुनाव: लक्ष्य का निर्धारण सोच समझकर करने के बाद उसकी प्राप्ति के लिए सही योजना भी बनाएं। एक समय में केवल एक लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश करें। लक्ष्य की तरफ एक एक कदम मजबूती के साथ बढ़ाएं। इसके लिए सबसे पहले यह तय करें कि आप क्या हासिल करना चाहते हैं और फिर य सोचें कि कैसे हासिल करेंगे। लक्ष्य प्राप्ति के लिए किसी भी गलत तरीके का चुनाव न करें। इससे आपको जीवन में तनाव और परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

    भाग्य के भरोसे न रहें: जीवन का आनंद केवल कर्मवीर ही उठाते हैं। भय, अंधविश्वास और भाग्य के भरोसे जीने वालों को न तो कभी जीवन का आनंद मिलता है और न ही वे लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं। नेपोलियन ने अपने सैनिकों को कहा था- मैंने भाग्य को खूंटी पर टांग कर हाथों का सहारा लिया है। ऐसे संकल्प करने वाले ही जीवन में विजय प्राप्त करते हैं और यही विजय प्रसन्नता का कारण बनती है। इसलिए भाग्य को जागने का इंतजार न करें। भाग्य आपके कर्मो से खुद जाग जाएगा।

    चरित्र लक्ष्य प्राप्ति के मूल मंत्र:इस बात में कोई संशय नहीं है कि प्रसन्नता बाहर नहीं बल्कि अपने भीतर ही होती है। जीवन में लक्ष्य प्राप्ति के लिए चरित्रवान एवं अनुशासित होना बहुत जरूरी है। इतिहास ऐसे लोगों के उदाहरणों से भरा पड़ा है जिन्होंने अनुशासन और चरित्र के बल पर विश्व को अपने कदमों को झुकाया जिनमें हम स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद, डा. एपीजे अब्दुल कलाम, लाल बहादुर शास्त्री जैसे महापुरुषों का जिक्र कर सकते हैं। विश्व के जाने माने शिक्षाविद् ¨वस्टन चर्चिल के अनुसार भी जीवन में चरित्र निर्माण और ज्ञान प्राप्ति महत्वपूर्ण लक्ष्य होने चाहिए। स्वामी विवेकानंद ने भी कहा है कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य मनुष्य निर्माण होना चाहिए।

    लक्ष्य प्राप्ति में माता पिता का सहयोग: लक्ष्य प्राप्ति के लिए माता पिता का मार्गदर्शन और सहयोग बहुत जरूरी है। बच्चों की खुशी के लिए आवश्यक है कि माता पिता बच्चों को अपनी रुचि और क्षमता के अनुसार लक्ष्य चुनने की स्वतंत्रता दें। किसी भी तरह का दबाव उन पर न बनाएं क्योंकि क्षमता और रुचि के विपरित लक्ष्य चुनने से बच्चा हमेशा तनाव में रहेगा। कई बार इसके दुष्परिणाम भी देखने को मिलते हैं। इसलिए बच्चों को सही लक्ष्य का चुनाव करने में मार्गदर्शन करें जिससे वह प्रसन्नतापूर्वक उसे अपना सके।

    परिस्थितियों से नहीं घबराएं:

    हर महान व्यक्ति एक समय में छोटा बालक होता है। हर बड़ी इमारत एक समय में केवल नक्शा ही होती है इसलिए किसी भी परिस्थिति में घबराना नहीं चाहिए बल्कि मजबूती के साथ इसका सामना करना चाहिए। महत्वपूर्ण यह नहीं है कि आज आप कहां खड़े हैं बल्कि जरूरी यह है कि भविष्य में आप कहां खड़े हो सकते हैं। इसलिए हमेशा खुद पर विश्वास रखें और क्या हासिल करना है केवल उस पर ही ध्यान केंद्रित करें। मुश्किलें किसी भी व्यक्ति को बेहतरीन इंसान बना सकती है बशर्ते उनका सामना ²ढ़ विश्वास से किया जाए। कहा भी गया है कि- रख हौसला वो समय आएगा, जब एक दिन सपना साकार हो जाएगा, थककर न बैठ ए मंजिल को मुसाफिर, मंजिल मिलेगी और जीवन का आनंद भी आएगा।

    लक्ष्य की सार्थकता ही प्रसन्नता का मूलमंत्र: केवल सफलतापूर्वक लक्ष्य को प्राप्त करना प्रसन्नता का कारण मानना केवल भ्रम है। प्रसन्नता और खुशी सही मायने में तभी मिलेगी जब हम अपनी सफलता को सार्थकता में बदलेंगे। यदि लक्ष्य केवल अच्छा चिकित्सक बनकर पैसा कमाना ही होगा तो यह सफलता सार्थक कभी नहीं हो सकती। भौतिक सुखों का संग्रह मानसिक शांति और प्रसन्नता प्रदान नहीं कर सकता। इसलिए जीवन में चाहे आप किसी भी मंजिल को प्राप्त करें परंतु सेवा भाव से किया गया कार्य ही वास्तव में सार्थक सफलता है। हमें उपयुक्त लक्ष्य का चुनाव करना चाहिए जो स्वयं को रोशन करे। सागर में बूंद की तरह न बनें जिसके कोई मायने नहीं होते। क्योंकि मंजिल हमारे पहने हुए जूते नहीं होत बल्कि सही दिशा में उठाए गए कदम हैं।

    - सावित्री यादव, प्रधानाचार्या, ऋषि पब्लिक स्कूल रेवाड़ी।