सरस्वती तीर्थस्थल: यहां पिंडदान का खास महत्व, पितरों को मिलता है मोक्ष, जानें क्या हैं मान्यताएं
हरियाणा के पिहोवा के सरस्वती तीर्थस्थल का हिदुओं में खास महत्व और मान्यता है। माना जाता है कि यहां पिंडदान से पितरों को मोक्ष मिलता है। यहां आज सरस्वती महोत्सव शुरू हुआ है।
कुुरुक्षेत्र, [जगमहेंद्र सरोहा]। अंतरराष्ट्रीय सरस्वती महोत्सव-2020 सोमवार को शुरू हो गया। यह 29 जनवरी तक चलेगा। ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थल पिहोवा को सजाने का काम तेज कर दिया है। इसको एक नगरी के रूप में तैयार किया जा रहा है। प्रशासन सामाजिक संगठन के साथ मिलकर काम कर रहे है। पिहोवा के सरस्वती तीर्थस्थल का हिंदुओं में बेहद खास महत्व और मान्यता है। धारणा है कि यहां पिंडदान से पितरों को मुक्ति मिलती है और यही कारण है कि यहां देश-विेदेश से लोग पितरों की शांति और मुक्ति के लिए पिंडदान करने आते हैं। सरस्वती तीर्थस्थल पर हर साल लाखों लोग आते हैं। आज यहां अंतरराष्ट्रीय सरस्वती महोत्सव का आगाज हुआ।
हिंदुओं में खास महत्व, हर साल कई लाख लोग आते हैं पिंडदान करने
48 कोस के कुरुक्षेत्र तीर्थ में पिहोवा भी आता है। यहां अनेक धार्मिक स्थल हैं। इनमें सरस्वती तीर्थ स्थल सबसे अलग पहचान रखता है। पिहोवा का मुख्य तीर्थ सरस्वती सरोवर है। इसके जल में लोग स्नान कर पितरों की शांति के लिए पिंडदान और अन्य पूजा आदि करते हैं। यहां लोग अस्थि प्रवाह भी करते हैं। इसके ऐतिहासिक और पौराणिक दोनों महत्व है। इसका जिक्र महाभारत के समय से ही किया जाता है।
पिहोवा के सरस्वती तीर्थ में पिंडदान करते लोग।
महाभारत के एक भाग में कहा गया है कि ' पुण्यामाहु कुरुक्षेत्र कुरुक्षेत्रात्सरस्वती, सरस्वत्माश्च तीर्थानि तीर्थेभ्यश्च पृथुदकम्।' अर्थात कुरुक्षेत्र नगरी पवित्र है, लेकिन सरस्वती तीर्थ कुरुक्षेत्र से भी पवित्र है। पृथूदक (वर्तमान पिहोवा) इनमें सबसे अधिक पावन व पवित्र है।
धार्मिक मान्यता है कि इस तीर्थ की रचना प्रजापति ब्रह्मा ने पृथ्वी, जल, वायु व आकाश के साथ सृष्टि के आरंभ में ही कर दी थी। पृथुदक शब्द का संबंध महाराजा पृथु से रहा है। पुराणों के अनुसार इस जगह पृथु ने अपने पिता की मृत्यु के बाद उनका श्राद्ध किया था। महाभारत में लिखा है कि पिहोवा की आठ कोस भूमि पर बैठ कर ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। गंगा पुत्र भीष्म पितामह की सद्गति भी पृथुदक में हुई थी।
मान्यता- महाभारत के भीषण युद्ध के बाद श्रीकृष्ण ने जलाया था दीया
ग्रंथों व धार्मिक मान्यता के अनुसार, महाभारत का भीषण-युद्ध समाप्त होने के बाद युधिष्ठिर अकाल मृत्यु प्राप्त लाखों लोगों के लिए चिंतित हो उठे थे। उन्होंने अपने मन की पीड़ा श्रीकृष्ण के साथ साझा की। उन्होंने युद्ध में मारे गए लोगों की आत्मा की शांति की बात कही।
भगवान श्रीकृष्ण ने तब पिहोवा में सरस्वती तीर्थ पर दीपक जलाया और युधिष्ठिर ने असमय मृत्यु को प्राप्त लोगों की आत्मा की मुक्ति के लिए तेल डाला। मान्यता है कि आज भी वह दीपक पिहोवा में जल रहा है और देशभर से लोग अकाल-मृत्यु प्राप्त अपने स्वजनों की मुक्ति के लिए उस दीपक में तेल डालने आते हैं।
भगवान कार्तिकेय के मंदिर में स्त्री का प्रवेश नहीं
यहां स्थित कार्तिकेय मंदिर के बारे में अजीब सी धारणा है। लोगों की मान्यता के कारण इस मंदिर में कोई स्त्री प्रवेश नहीं कर सकती। मान्यता यह है कि अगर कोई स्त्री इस मंदिर में प्रवेश करती है तो फिर उसे एक, दो नहीं बल्कि सात जन्मों तक विधवा रहना पड़ेगा।
एक कथा यह भी है कि जब कार्तिकेय ने मां पार्वती से क्रोधित हो अपने शरीर का मांस और रक्त अग्नि के हवाले कर दिया, तब भगवान शंकर ने कार्तिकेय को प्रिथुडक तीर्थ (पिहोवा) जाने का आदेश दिया। कार्तिक के ज्वलनशील शरीर को शीतलता देने के उद्देश्य से ऋषि मुनियों ने उस पर सरसों का तेल चढ़ाया। भगवान कार्तिकेय पिहोवा में पिंडी रूप में स्थापित हो गए। इन पिंडियों पर भी सरसों तेल चढ़ाने की परंपरा तभी से चली आ रही है।
चारों नदियों के स्नान का फल अकेले पिहोवा में ही
धार्मिक मान्यता है कि कुरुक्षेत्र से भी अधिक पवित्र सरस्वती नदी है। सरस्वती नदी के भी अनेक तीर्थ हैं। इन सब में पिहोवा तीर्थ सर्वश्रेष्ठ है। विद्वानों का कहना है कि वामन पुराण के अनुसार गंगा, यमुना, नर्मदा व सिंधु चारों नदियों के स्नान का फल अकेले पिहोवा में ही प्राप्त हो जाता है। सरस्वती का जल पीने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। मंत्र शास्त्र के अनुसार सरस्वती का बारह मास तक नियम से जल पीता है तो उसको देवगुरु बृहस्पति जैसी शक्ति मिल जाती है। इसी तीर्थ में राजा ययाति ने 100 यज्ञ किए थे।
धार्मिक मान्यता है कि जो मनुष्य पिहोवा में सरस्वती सरोवर के तट पर जप करते हुए शरीर छोड़ता है, वह जन्म-मरण के चक्कर से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करता है। मान्यता है कि गंगा के जल में अस्थि प्रवाह से मुक्ति होती है। काशी में देह त्याग से मुक्ति होती है, किंतु पिहोवा तीर्थ में जल, स्थल व अंतरिक्ष आदि पर मृत्यु होने पर भी मोक्ष मिलता है, यानी पिहोवा गंगा द्वार से भी अधिक पवित्र व महत्त्वपूर्ण है।
मान्यता- प्रेत पीड़ा भी शांत होती है
लोगों की मान्यता है कि पिहोवा में प्रेत पीड़ा शांत होती है। अकाल मृत्यु होने पर दोष निवारण के लिए पिहोवा में कर्मकांड करवाने की परंपरा है। माना जाता है कि ऐसा करने से मृतक को अपगति से सद्गति की प्राप्ति होती है। वामन पुराण के अनुसार अति पुरातन काल में भगवान शंकर ने पिहोवा में स्नान किया था। यहां पर पिंडदान का बड़ा महत्व माना गया है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान इंद्र ने भी अपने पितरों का पिंडदान इसी तीर्थ पर किया था। यहा पंडे और पुरोहित पिंडदान के लिए तैयार मिलते हैं। यहां अलग-अलग घाट के लिए अलग-अलग पंडे हैं।
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