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    Navratri 2022: हरियाणा में एकमात्र शक्तिपीठ, कुरुक्षेत्र में गिरा था माता का पैर, यहीं हुआ था श्रीकृष्ण-बलराम का मुंडन

    By Jagmahender singhEdited By: Anurag Shukla
    Updated: Mon, 26 Sep 2022 01:58 PM (IST)

    Navratri 2022 कुरुक्षेत्र में हरियाणा का एकमात्र शक्तिपीठ श्री देवीकूप भद्रकाली मंदिर है। यहांपर मां का टखना (घुटने के नीचे का भाग) गिरा था। इसी मंदिर में श्रीकृष्ण-बलराम का मुंडन किया था। महाभारत युद्ध से पहले पांडव श्रीकृष्ण के साथ यहां आए थे।

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    Navratri 2022: कुरुक्षेत्र स्थित मां भद्रकाली मंदिर।

    कुरुक्षेत्र, [जगमहेंद्र सरोहा]। Navratri 2022: 51 शक्तिपीठ देश में हैं। इनमें एक धर्मनगरी कुरुक्षेत्र है। यह प्रदेश का एकमात्र शक्तिपीठ है। इनका नाम श्रीदेवी कूप भद्रकाली मंदिर है। भद्रकाली शक्तिपीठ में देवी सती का दाए पैर का टखना (घुटने के नीचे का भाग) गिरा था। भद्रकाली शक्तिपीठ में श्रीकृष्ण और बलराम का मुंडन हुआ था। इससे इसका महत्व बढ़ गया। महाभारत युद्ध में विजय का आशीर्वाद लेने पांडव श्रीकृष्ण के साथ यहां आए थे। पांडवों ने मंदिर में आकर घोड़े दान किए थे। तब से घोड़े दान करने की प्रथा चली आ रही है।

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    मंदिर के पीठाध्यक्ष सतपाल शर्मा ने बताया कि भद्रकाली मंदिर मां देवी काली को समर्पित है। भद्रकाली शक्ति पीठ सावित्री पीठ के नाम से प्रसिद्ध है। भद्रकाली मंदिर में देवी काली की प्रतिमा स्थापित है और मंदिर में प्रवेश करते ही बड़ा कमल का फूल बनाया गया है। जिसमें मां सती के दायें पैर का टखना स्थापित है। यह सफेद संगमरमर से बना है।

    यह है मान्यता

    पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी सती ने उनके पिता दक्षेस्वर द्वारा किए यज्ञ कुंड में अपने प्राण त्याग दिए थे। तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर ब्रह्मांड चक्कर लगा रहे थे। भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था। इसमें से सती का दाया टखना इस स्थान पर गिरा। सती का दायें टखना इस मंदिर में बने कुएं में गिरा था, इसलिए इसे मंदिर को श्री देवीकूप मंदिर भी कहा जाता है।

    महाभारत काल से चली आ रही घोड़े दान करने की प्रथा

    मंदिर में घोड़े दान करने की मान्यता महाभारत काल से चली आ रही है। श्रीकृष्ण पांडवों के साथ मंदिर में आए थे। उन्होंने विजय के लिए मां से मन्नत मांगी थी। पांडवों ने विजय पाने के बाद मंदिर में आकर घोड़े दान किए थे। तब से यही प्रथा चलती आ रही है। लोग आज भी अपनी मन्नत पूरी होने पर घाेड़े दान करते हैं। मंदिर में घोड़ों की लंबी लाइन लगी हुई हैं।

    मां भद्रकाली की कहानी

    यह ऐतिहासिक मंदिर हरियाणा की एकमात्र सिद्ध शक्तिपीठ है, जहां मां भद्रकाली शक्ति रूप में विराजमान हैं। वामन पुराण व ब्रह्मपुराण आदि ग्रंथों में कुरुक्षेत्र के सदंर्भ में चार कूपों का वर्णन आता है। जिसमें चंद्र कूप, विष्णु कूप, रुद्र कूप व देवी कूप हैं।

    भद्रकालीन की पहचान दुर्गा की बेटी के रूप में

    देश के अन्य हिस्सों में तांत्रिक नाम काली या महाकाली आमतौर पर रुद्र या महाकाल के रूप में शिव की पत्नी के रूप में अधिक लोकप्रिय है और भद्रकाली की पहचान दुर्गा की बेटी के रूप में की जाती है। जिन्होंने रक्तबीज के साथ युद्ध के दौरान उनकी मदद की थी। भद्रकाली काा शाब्दिक अर्थ : अच्छी काली है। हिन्दुओं की एक देवी हैं जिनकी पूजा मुख्यतः दक्षिण भारत में होती है। वे देवी दुर्गा की अवतार और भगवान शंकर के वीरभद्र अवतार की शक्ति अथवा पत्नी हैं। देवी वर्णन में भक्त देवी भद्रकाली के दो पक्षों को स्पष्ट रूप से चित्रित करने करते हैं। एक उदार पक्ष के साथ-साथ मजबूत, दूसरा उग्र पक्ष. भद्रकाली के पारंपरिक पूजा का पालन करते हुए, आज भी देवी अत्यंत भक्ति भाव के साथ पूजी जाती है।

    भद्रकाली को यह चढ़ाएं

    लोग पानी, दूध, चीनी, शहद और घी का उपयोग कर देवी भद्रकाली की मूर्ति को पंचामृत अभिषेक करते हैं। इसके बाद सोलह श्रृंगार करते हैं। नारियल पानी चढ़ाने के बाद चंदन पूजा और बिल्व पूजा करते हैं।