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सैनिकों को राह दिखाती थी शेरशाह सूरी की कोस मीनार, अब लगा अतिक्रमण का ग्रहण

ऐतिहासिक धरोहर होने पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इस मीनार को अपने संरक्षण में लिया है। स्मारक को क्षति पहुंचाने पर तीन माह तक सजा और पांच हजार रुपये तक जुर्माने का प्रावधान। इसके 100 मीटर की परिधि में किसी भी प्रकार का निर्माण प्रतिबंधित है।

By Umesh KdhyaniEdited By: Updated: Mon, 02 Nov 2020 02:07 PM (IST)
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30 फीट ऊंची यह मीनार ईंटों व चूना पत्थर के साथ बनाई गई थी ताकि यह दूर से नजर आए।

पानीपत/अंबाला शहर, जेएनएन। भले ही शेरशाह सूरी की कोस मीनार अब सैनिकों को राह नहीं दिखा रही है। लेकिन इस समय इस कोस मीनार पर अतिक्रमण का खतरा बढ़ता जा रहा है। हालांकि ऐतिहासिक धरोहर होने पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इसे अपने संरक्षण में भी लिया हुआ है। लेकिन, कोस मीनार के उस क्षेत्र पर भी दुकानदारों ने कब्जा कर बिल्डिंग खड़ी कर दी हैं। जबकि इस जगह पर निर्माण कार्य करने के लिए केंद्र सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है। यहां तक इस मीनार से दो सौ मीटर की परिधि एरिया को विनियमित एवं प्रतिबंधित घोषित किया हुआ है।

बता दें कि अंबाला शहर के रेलवे रोड पर कपड़ा मार्केट में शेरशाह सूरी की कोस मीनार बनाई हुई है। यह मीनार जीटी रोड से गुजरने वाले राहगीरों और सैनिकों को राह दिखाती थी। इसके पास सराय और पानी के कुओं का भी इंतजाम किया था। कोस शब्द दूरी नापने का एक पैमाना है। शेरशाह सूरी ने 1540-45 तक शासन किया था। इन पांच सालों के दौरान दिल्ली, सोनीपत, पानीपत, कुरुक्षेत्र, अंबाला, लुधियाना, जालंधर, अमृतसर से पेशावर (पाकिस्तान) तक व दिल्ली-आगरा राजमार्ग पर मीनार स्थापित की गई थीं। 30 फीट ऊंची यह मीनार ईंटों व चूना पत्थर के साथ बनाई गई थी ताकि यह दूर से नजर आए।

क्षति पहुंचाने पर है पांच हजार रुपये जुर्माना

अधिवक्ता तरुण कालड़ा ने बताया कि प्राचीन स्मारक होने के कारण यदि कोई व्यक्ति इस स्मारक को क्षति पहुंचाता है तो उसे तीन माह तक सजा और पांच हजार रुपये तक जुर्माना किया जा सकता है। प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्व स्थल स्थायित्व 1958 संशोधित अधिनियम 2010 अधिनियम की धारा 20 बी के तहत सेक्शन 3 और 4 में पुरातत्व विभाग की ओर से प्रचीन स्मारक घोषित किए हैं। इनमें कपड़ा मार्केट स्थित मीनार भी शामिल हैं। इसके 200 मीटर के दायरे को विनियमित एवं प्रतिबंधित घोषित किया गया है। नियम 20 ए के तहत उस एरिया से 100 मीटर की परिधि में किसी भी प्रकार का निर्माण प्रतिबंधित है। यदि कोई व्यक्ति इस क्षेत्र में निर्माण करता है तो जिला उपायुक्त को उस पर कार्रवाई का अधिकार है।

सुधार के लिए दिए जाने चाहिए नोटिस

नई पीढ़ी आधुनिकता की दौड़ में अपनी पुरानी विरासत की अनदेखी करने लगी है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में संरक्षित धरोहर होने के बावजूद अब मीनार के अस्तित्व पर ही खतरा मंडरा रहा है। इस कोस मीनार के साथ दुकानदारों ने बिल्डिंग खड़ी कर दी हैं। यहां आलम यह है कि दुकानदारों ने मीनार के चबूतरे तक में निर्माण सामग्री आदि सजाया हुआ है। मीनार की अनदेखी पर न तो जिला प्रशासन और न ही पुरातत्व विभाग ही गंभीर है। बस पुरातत्व विभाग ने मीनार के संरक्षित धरोहर होने का एक नोटिस बोर्ड और चबूतरे पर ग्रिल लगाकर खानापूर्ति कर ली गई है। जबकि जरूरी बनता था कि मीनार के आसपास हुए अतिक्रमण के मामले में दुकानदारों पर कार्रवाई की जाती। कब्जा जमाए लोगों को जुर्माना नोटिस भेजकर सबक सिखाया जाना चाहिए।

मीनार करती थी दिशासूचक यंत्र का काम

इतिहासविद अभिनव गुप्त ने बताया कि शेरशाह सूरी ने 1540-45 तक शासन किया था और इन पांच सालों में बंगाल के सोनार गांव से लेकर पंजाब के बाॅर्डर राेहताश तक कोस मीनार बनवाई गई थी। यह सूचक यंत्र का काम करती थी। हर दो-तीन कोस पर एक मीनार बनवाई गई थी। इन्हीं मीनारों को देखकर सैनिक काफिले चलते थे और डाक सिस्टम भी इन्हीं की तर्ज पर चलता था।