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    एक ऐसी दरगाह जहां पर अस्त होता है नफरतों का सूरज Panipat News

    By Anurag ShuklaEdited By:
    Updated: Fri, 30 Aug 2019 02:10 PM (IST)

    कैथल के जवाहर पार्क में बाबा शाह कमाल दयाल कादरी की दरगाह है। दरगाह पर हर मजहब के लोग चादर चढ़ाकर मन्नतें मांगते हैं। इसकी खास बात यह है कि इस दरगाह का पुजारी हिंदू है।

    एक ऐसी दरगाह जहां पर अस्त होता है नफरतों का सूरज Panipat News

    पानीपत/कैथल, [सुरेंद्र सैनी]। एक ऐसी दरगाह जो सर्वधर्म सद्भाव का संदेश देती है। हिंदू समाज के लोग पूजा करते हैं तो मुस्लिम शीश नवाते हैं। हर मजहब के लोग यहां आते हैं। खास बात तो ये है कि इस दरगाह के पुजारी हिंदू हैं। 

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    कैथल शहर के बीचों-बीचो स्थित जवाहर पार्क में  बाबा शाह कमाल दयाल कादरी की दरगाह है। दरगाह पर हर मजहब के लोग चादर चढ़ाकर मन्नतें मांगते हैं। बृहस्पतिवार को दिन यहां विशेष मेला लगता है। हिंदू समाज के लोक यहां सुख शांति व अमन के लिए शीश झुकाकर प्रार्थना करते हैं तो वहीं मुस्लिम समाज के लोग इस्लाम के अनुसार इबादत करते हैं। दरगाह पर भले ही अकीदत इस्लाम धर्म के अनुसार होती हो, लेकिन यहां का पुजारी हिंदू होता है। वर्षों से इतिहास के गर्त में दबी इस दरगाह का जीर्णोद्धार एक हिंदू परिवार के स्व. रोशन लाल गुप्ता ने करवाया था। वे वर्षों तक इस दरगाह की देखभाल करते रहे। अब दरगाह पर रजनीश शाह देखभाल कर रहे हैं। 

    आज भी कायम है वर्षों पुरानी परंपरा
    बरसों के बाद भी उनकी परंपरा आज भी जारी है। बाबा शीतलपुरी के डेरे में बाबा की समाधि के निकट बाबा शाह कमाल की जोत जलाई जाती है। जब भी शाह कमाल का उर्स मेला होता है तो बाबा शीतलपुरी के डेरे से सबसे पहली चादर शाह कमाल की दरगाह पर भेजी जाती है। इसी तरह जब शीतलपुरी के डेरे पर मेला लगता है तो बाबा शाहकमाल की दरगाह से आदर स्वरूप बाबा की समाधि पर पगड़ी भेजी जाती है। बाबा रजनीश शाह ने बताया कि हर वर्ष यहां उर्स पर मेला लगता है, जिसमें भंडारा व कव्वालियों का कार्यक्रम होता है।

    427 वर्ष पूर्व बगदाद से कैथल आए थे 
    इतिहास के अनुसार हजरत बाबा शाह कमाल कादरी 427 वर्ष पूर्व बगदाद से कैथल आए थे। वे मुस्लिमों के पैगंबर हजरत गोसपाक महीउद्दीन की 11वीं पुश्त थे। उस समय दिल्ली पर औरंगजेब का शासन था। वह हिंदूओं को मुसलमान बनाने पर जोर दे रहा था और हिंदूओं को मुस्लिम धर्म अपनाने के लिए मजबूर करता था। बाबा शीतलपुरी धर्म परिवर्तन के खिलाफ थे। उन्होंने नवाबों की एक न चलने दी। नवाब दिल्ली पहुंचे और औरंगजेब से बातचीत की। 

    जब दीवार चल पड़ी थी आगे
    औरंगजेब ने बाबा शीतलपुरी की शक्ति परीक्षण के लिए बगदाद से कमालशाह को कैथल भेजा। शाह कमाल शेर पर सवार होकर कैथल में शीतलपुरी से शास्त्रार्थ करने पहुंचे। उस समय बाबा शीतलपुरी एक दीवार पर दातुन कर रहे थे। उनके सम्मान में उन्होंने दीवार से कहा कि ये फकीर इतनी दूर से चलकर आए हैं तो तू इनके सम्मान में चार कदम भी नहीं चल सकती। इतने में दीवार आगे चल पड़ी। शाह कमाल कादरी बाबा के चमत्कार से इतने प्रभावित हुए कि वे वापस बगदाद नहीं गए और कैथल के ही होकर रह गए।

    तीन दिनों तक लगता है सालाना उर्स मेला
    हर साल अप्रैल माह में तीन दिनों तक उर्स मेला दरगाह पर लगता है। मेले में न केवल कैथल व आसपास के जिलों से बल्कि दूसरे राज्यों यहां तक की पाकिस्तान से भी मुस्लिम समाज के लोग चादर चढ़ाने के लिए पहुंचाते हैं। मान्यता है कि जो भी यहां चादर चढ़ता है उसकी मनोकामना पूर्ण होती है। शाम चार बजे से रात आठ बजे तक चादर चढ़ने की रस्म होती है, इसके बाद कव्वालियों का कार्यक्रम चलता है। वहीं हर बृहस्पतिवार को दरगाह पर लोग माथा टेकने के लिए पहुंचुते हैं। यह सिलसिला दशकों से अनवरत जारी है। 

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