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    संसद में उठा हरियाणा में डीएपी खाद के संकट का मुद्दा, सांसद सैलजा बोलीं- किसानों को खाली हाथ लौटना पड़ रहा

    Updated: Sun, 10 Aug 2025 01:35 PM (IST)

    हरियाणा में डीएपी खाद की कमी का मुद्दा संसद में उठा। केंद्र सरकार ने कहा कि राज्य को जरूरत से ज्यादा खाद दी गई है जबकि कांग्रेस सांसद सैलजा ने वितरण में खामियों की ओर इशारा किया। उन्होंने कहा कि किसानों को खाद के लिए लंबी कतारों में लगना पड़ रहा है और कई बार खाली हाथ लौटना पड़ता है।

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    कुमारी सैलजा ने संसद में उठाया हरियाणा में डीएपी खाद के संकट का मुद्दा। फाइल फोटो

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। हरियाणा में डीएपी खाद के संकट का मुद्दा संसद में भी उठा है। लोकसभा में सिरसा की कांग्रेस सांसद कुमारी सैलजा के सवाल पर केंद्र सरकार ने दावा किया कि प्रदेश में डीएपी की कोई कमी नहीं है और राज्य को आवश्यकता से अधिक खाद उपलब्ध कराई गई है।

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    खरीफ सीजन के लिए हरियाणा की आवश्यकता 2.83 लाख टन आंकी गई है। आनुपातिक आवश्यकता 1.57 लाख टन थी, जिसके मुकाबले उपलब्धता 1.59 लाख टन बताई गई है। 30 जुलाई तक 33 हजार टन का स्टॉक भी शेष है।

    केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के राज्य मंत्री निमुबेन जयंतीभाई बांभणिया ने जवाब में बताया कि कृषि और किसान कल्याण विभाग की आवश्यकता के अनुसार राज्यों को पर्याप्त मात्रा में उर्वरक आवंटित किया जाता है।

    इसे मासिक आपूर्ति योजना और उपलब्धता की निरंतर निगरानी के माध्यम से सुनिश्चित किया जाता है। राज्य के अंदर जिला स्तर पर उर्वरकों का वितरण राज्य सरकार द्वारा किया जाता है।

    इस पर सैलजा ने सवाल उठाया कि केंद्र सरकार के मुताबिक अगर हरियाणा में डीएपी खाद का स्टाक आवश्यकता से अधिक है, तो किसानों को समय पर और पर्याप्त मात्रा में खाद क्यों नहीं मिल रही। क्यों किसानों को खाद वितरण केंद्रों पर लंबी कतारों में खड़ा होना पड़ रहा है।

    कई बार उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ता है। यह स्थिति बताती है कि या तो वितरण व्यवस्था में गंभीर खामियां हैं या फिर जमीनी स्तर पर उपलब्धता के आंकड़े हकीकत से अलग हैं। उन्होंने कहा कि किसानों को समय पर और पर्याप्त मात्रा में खाद उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी है।

    केंद्र और राज्य सरकार को मिलकर तत्काल प्रभाव से वितरण व्यवस्था में सुधार करना चाहिए, ताकि किसानों को फसल के महत्वपूर्ण समय में किसी प्रकार की परेशानी न हो। सरकार को कागजी आंकड़ों से आगे बढ़कर जमीनी हकीकत पर ध्यान देना होगा।