'यह सेवा का हिस्सा, इसे मौलिक अधिकार न समझे...' ट्रांसफर से जुड़ी याचिका पर हाई कोर्ट का जवाब
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा राज्य कृषि विपणन बोर्ड की ऑनलाइन ट्रांसफर नीति 2023 को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि नीति बनाने का अधिकार सरकार के पास होता है और कोर्ट को नीतिगत मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। ट्रांसफर सेवा का एक अनिवार्य हिस्सा है और कर्मचारी अपने स्थान को लेकर कोई मौलिक अधिकार नहीं जता सकते हैं।

दयानंद शर्मा, चंडीगढ़। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में हरियाणा राज्य कृषि विपणन बोर्ड की ऑनलाइन ट्रांसफर नीति 2023 को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया।
कोर्ट ने माना कि नीति बनाने का अधिकार सरकार के पास होता है और कोर्ट को नीतिगत मामलों में हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए। उन्होंने कहा कि ट्रांसफर सेवा का एक अनिवार्य हिस्सा है और कर्मचारी अपने स्थान को लेकर कोई मौलिक अधिकार नहीं जता सकते।
यह मामला कई याचिकाओं से जुड़ा था। जिसमें मुख्य याचिकाकर्ता गौरव वधवा और अन्य थे जिन्होंने राज्य सरकार की नई ऑनलाइन ट्रांसफर नीति को अनुच्छेद 14 के तहत मनमाना और असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द करने की मांग की थी।
युवा कर्मचारियों को नहीं मिल पाती मनचाही पोस्टिंग
याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि 15 जून 2023 को लागू की गई यह नीति राज्य सरकार की मॉडल नीति से भिन्न है और इसमें कई अनुचित प्रावधान हैं।
उदाहरण के लिए, ट्रांसफर के लिए अंक देने के मानदंडों में आयु को 60 अंकों का वेटेज दिया गया जिससे वरिष्ठ कर्मचारियों को प्राथमिकता मिलती है जबकि युवा कर्मचारियों को मनचाही पोस्टिंग नहीं मिल पाती।
दंपती मामले में केवल उन्हीं कर्मचारियों को अतिरिक्त अंक मिलते हैं जिनके पति या पत्नी किसी सरकारी विभाग, बोर्ड या निगम में कार्यरत हैं जबकि निजी क्षेत्र में काम करने वालों को इस सुविधा से वंचित रखा गया।
नीति बनाने का अधिकार सरकार के पास:हाई कोर्ट
जस्टिस जगमोहन बंसल ने फैसला सुनाते हुए कहा कि नीति बनाने का अधिकार सरकार के पास होता है और कोर्ट को नीतिगत मामलों में हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए।
कोर्ट ने यह भी माना कि उम्र के आधार पर अंक निर्धारण का प्रावधान तर्कसंगत है क्योंकि वरिष्ठ कर्मचारियों को अधिक अनुभव होने के साथ-साथ अधिक पारिवारिक और स्वास्थ्य संबंधी जिम्मेदारियां होती हैं। दंपती मामलों में केवल सरकारी कर्मचारियों को ही अंक देने का प्रावधान भी न्यायोचित है, क्योंकि निजी क्षेत्र में कार्यरत व्यक्तियों की नौकरी आमतौर पर ट्रांसफरेबल नहीं होती।
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