जेल में ही कैदी बनें इंजीनियर, सॉफ्टवेयर बनाकर बचाया करोड़ों का खर्च
भोंडसी जेल में सजा काट रहे चार कैदियों ने बड़ा काम करके दिखाया। कैदियों ने जेल में सॉफ्टवेयर तैयार किया और लिम्का बुक में नाम दर्ज कराया।
जेएनएन, चंडीगढ़। कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो। इन पंक्तियों को पूरी तरह चरितार्थ कर दिखाया है गुरुग्राम की भोंडसी जेल में सजा काट रहे चार कैदियों ने। इन कैदियों ने सॉफ्टवेयर तैयार कर न केवल जेलों के कामकाज को सुचारू बना दिया है बल्कि अपने अनूठे कारनामे के कारण चारों का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी दर्ज हो गया है।
जेल अधीक्षक हरिंदर सिंह अब इनका नाम गिनीज बुक में दर्ज कराने की तैयारी में जुटे हैं। खास बात यह कि इन चारों कैदियों में से कोई भी प्रोफेशनल कंप्यूटर इंजीनियर नहीं है। यानी जेल में ही पहले कंप्यूटर सीखा और फिर सॉफ्टवेयर तैयार किया। जेलों के इतिहास में यह पहला मौका है जब कैदियों को अलग-अलग 11 जेलों में सॉफ्टवेयर इंप्लीमेंट करने के लिए शिफ्ट किया गया।
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भोंडसी जेल में सजायाफ्ता कैदी रोहित पगारे (नई दिल्ली), अनूप सिंह (रेवाड़ी), बलवंत सिंह (रेवाड़ी) व अजीत सिंह (रेवाड़ी) ने फिनीक्स नाम के इस सॉफ्टवेयर को 11 जेलों में लागू किया है। अहम बात यह है सॉफ्टवेयर को तैयार भी एक बंदी ने ही किया। पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर अमित मिश्र ने भोंडसी जेल में ही रहते हुए सॉफ्टवेयर तैयार किया था। ये चारों कैदी भी मिश्र की टीम में थे। मिश्र के रिहा होने के बाद इन कैदियों के कंधों पर सॉफ्टवेयर को जेलों में लागू करने का जिम्मा आ गया। करीब एक-एक महीना प्रदेश की विभिन्न जेलों में रहकर इन कैदियों ने सॉफ्टवेयर को इंप्लीमेंट किया। माना जा रहा है कि इस सॉफ्टवेयर को तैयार करने व राज्यभर की जेलों में इसे लागू करने में करोड़ों रुपये खर्च होते। लेकिन मिश्र व इन कैदियों की बदौलत यह काम मुफ्त में ही हो गया।
हरियाणा की जेलें सही मायने में सुधार एवं पुनर्वास की दिशा में आगे बढ़ रही हैं। मुझे खुशी है कि भोंडसी जेल प्रशासन के सराहनीय प्रयासों की वजह से जेल और यहां के चार कैदियों का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हुआ है।
-यशपाल सिंघल, डीजीपी (जेल)
कैदियों ने खुद इच्छा जाहिर की थी कि वह जेलों की कैंटीन, कैदियों के रिकॉर्ड व मुलाकात से जुड़े मामले को कंप्यूटरीकृत करना चाहते हैं। कैदियों की मेहनत की बदौलत न केवल उनका बल्कि जेल का नाम भी लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हुआ है।
-हरिंदर सिंह, जेल अधीक्षक, भोंडसी
आसान हुआ जेलों का कामकाज
राज्य की जेलों में चल रही सभी कैंटीन इस सॉफ्टवेयर के लागू होते ही कैशलेस हो गई हैं। कैदियों व बंदियों के परिजनों द्वारा उनके खातों में सीधा कैश जमा कराया जाता है। कैंटीन में बॉयो-मीटिक खाता होने की वजह से वे रोजमर्रा की चीजें कैशलेस खरीद सकते हैं। पहले कैदियों से मिलने वालों को घंटों इंतजार करना होता था। हर मुलाकात पर रजिस्टर में एंट्री होती थी और इसकी सूचना बंदी तक पहुंचाई जाती थी। मुलाकात में दो घंटे लग जाते थे। अब कंप्यूटर में सीधी एंट्री होती है और बंदियों तक मैसेज सीधा पहुंचता है। यानी मुलाकात का समय घटकर 45 मिनट से भी कम हो गया।
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