हरियाणा में पहले भी आए अविश्वास प्रस्ताव, लेकिन आज तक विधानसभा कोई पारित नहीं हुआ
हरियाणा विधानसभा के बजट सत्र में कांग्रेस की ओर से 10 मार्च काे राज्य की भाजपा-जजपा सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जाएगा। विधानसभा में इससे पहले भी कई बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किए गए लेकिन ये पारित नहीं हो पाए।
चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। हरियाणा की राजनीति में सरकारों के विरुद्ध विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा अक्सर अविश्वास प्रस्ताव लाए जाते रहे हैं। प्रदेश में अभी तक सरकारों के विरुद्ध जितने भी अविश्वास प्रस्ताव लाए गए, वे सिरे नहीं चढ़े और विधानसभा के पटल पर औंधे मुंह गिर गए। अब कांग्रेस ने प्रदेश की मौजूदा भाजपा-जजपा गठबंधन की सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव दिया है, जिस पर 10 मार्च को बहस होगी। हालात बने तो उसी दिन वोटिंग भी हो सकती है, लेकिन 56 विधायकों के समर्थन के साथ भाजपा को उम्मीद है कि 32 विधायकों को अपने साथ मानकर चल रही कांग्रेस को अपने मिशन में शायद ही कामयाबी मिल पाए।
भजन लाल और बंसीलाल के खिलाफ चौटाला लाए थे अविश्वास प्रस्ताव
कांग्रेस की रणनीति सरकार को अस्थिर करने या उसे गिराने से ज्यादा उन विधायकों को बेनकाब करने की है, जो फील्ड में किसानों के तीन कृषि कानूनों का विरोध तो कर रहे, लेकिन सदन में वह उनके साथ नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का मानना है कि यदि अविश्वास प्रस्ताव को सिर्फ 32 ही विधायकों का समर्थन मिला तो यह साफ हो जाएगा कि बाकी जितने भी निर्दलीय, जजपा और भाजपा के विधायक तीन कृषि कानूनों का किसानों के बीच में जाकर विरोध कर रहे हैं, वह दिल से नहीं है। इसके विपरीत भाजपा का मानना है कि कांग्रेस का यह अविश्वास प्रस्ताव इसलिए सिरे नहीं चढ़ेगा, क्योंकि उनके ही विधायक इस अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ वोटिंग कर सकते हैं।
अब कांग्रेस के 10 मार्च को लाए जाने वाले अविश्वास प्रस्ताव पर सबकी निगाह
हरियाणा की 90 सदस्यीय विधानसभा में हाल-फिलहाल 88 विधायक हैं। ऐलनाबाद से इनेलो के वरिष्ठ विधायक अभय सिंह चौटाला तीन कृषि कानूनों के विरोध में इस्तीफा दे चुके, जबकि कालका के कांग्रेस विधायक प्रदीप चौधरी को एक केस में सजा होने पर विधानसभा की सदस्यता से निलंबित कर दिया गया है। कांग्रेस की ओर से स्पीकर को जो अविश्वास पत्र सौंपा गया है, उसमें 30 में से 28 विधायकों के हस्ताक्षर हैं। दावा किया जा रहा कि कुलदीप बिश्नोई और चिरंजीव राव हस्ताक्षर करने के लिए उस दिन उपलब्ध नहीं हो सके, जो कि 10 मार्च को सदन में चर्चा के लिए मौजूद रहेंगे, लेकिन भाजपा इस संख्या को कांग्रेस में आपसी फूट से जोड़कर पेश कर रही है।
बहरहाल, हरियाणा में सरकारों के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने की परंपरा पुरानी रही है। विधानसभा संचालन की नियमावली 65 के तहत 18 विधायक हस्ताक्षर कर सरकार की किसी नीति, फैसले अथवा सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित हो रहे संख्या बल के आधार पर सदन में अविश्वास प्रस्ताव दे सकते हैं।
हरियाणा में पिछले तीन दशक की विधानसभा कार्यवाही पर नजर दौड़ाई जाए तो 27 सितंबर 1995 में तत्कालीन भजनलाल सरकार के विरूद्ध ओम प्रकाश चौटाला अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए थे। उस समय ईश्वर ङ्क्षसह रोड हरियाणा विधानसभा के स्पीकर होते थे। चौटाला द्वारा लाया गया यह प्रस्ताव गिर गया था क्योंकि उस समय सरकार के पास पूर्ण बहुमत था।
बीरेंद्र सिंह ने बचाई थी बंसीलाल की सरकार, भजनलाल के पास था बहुमत
इसके बाद हरियाणा में वर्ष 1999 के दौरान तत्कालीन बंसीलाल सरकार के विरूद्ध सदन में अविश्वास प्रस्ताव आया था। चौधरी बीरेंद्र सिंह उस समय तिवारी कांग्रेस में होते थे। उन्होंने समर्थन देकर सरकार को बचा लिया था। इसके बाद बंसीलाल के विरूद्ध फिर से अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। उस समय बंसीलाल को इस बात का आभास हो गया था कि सदन में वह विश्वास का मत हासिल नहीं कर सकते हैं, जिसके चलते उन्होंने विधानसभा के बाहर ही इस्तीफा दे दिया था। अब 10 मार्च को आने वाले अविश्वास प्रस्ताव पर सबकी निगाह टिकी है।
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