Haryana News: 'तू जिंदा है...', 20 साल बाद बिछड़े बेटे की आवाज सुनकर बोलीं मां; गले लगते ही नम हो गईं आंखें
हरियाणा पुलिस के ऑपरेशन मुस्कान ने 91 बच्चों और 117 वयस्कों को उनके परिवारों से मिलाया। एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट ने 1974 लोगों को अपनों से मिलवाया है। गुरुग्राम जिले में 129 बच्चे और 125 वयस्क मिले। डीजीपी शत्रुजीत कपूर ने बताया कि 2024 में 606 नाबालिगों और 2781 वयस्कों को मिलाया गया और बाल श्रमिकों को भी बचाया गया।

राज्य ब्यूरा, चंडीगढ़। आठ साल की उम्र में बिछुड़ा बेटा जब युवावस्था में पढ़ाई करता हुआ अपनी मां के गले लगा तो उपस्थित हर शख्स की आंखें नम हो गईं। एक अन्य मामले में 20 साल बाद बेटे की आवाज सुनकर भावुक मां बस इतना ही बोल पाई कि 'तू जिंदा है'। यह सिर्फ दो कहानी नहीं, बल्कि उन हजारों कहानियों में से एक है, जो हरियाणा पुलिस की कोशिशों से फिर से जिंदा हो उठीं।
विगत मार्च में चलाए गए ऑपरेशन मुस्कान में 91 बच्चों और 117 वयस्कों को उनके परिवारों से मिलवाया गया। भीख मांगने जैसे कार्य में लिप्त 360 बच्चों और 640 बाल श्रमिकों को बचाया गया। गुरुग्राम जिला इस अभियान में सबसे आगे रहा, जहां 129 बच्चे और 125 वयस्क अपनों से मिले।
दो दशकों से बेटे को ढूंढ़ रहा था
बीते डेढ़ वर्षों में एंटी-ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट ने वर्षों से बिछुड़े 1974 लोगों को परिजनों से मिलवाया है। यह ऐसे भावनात्मक क्षण थे, जिनमें केवल आंसू, मुस्कान और सुकून के पल थे।
पुलिस महानिदेशक शत्रुजीत कपूर ने एक ऐसा ही किस्सा साझा किया, जहां परिवार दो दशकों से अपने बेटे को ढूंढ़ रहा था, लेकिन उम्मीदें लगभग मर चुकी थीं। जब वह बेटा, जो अब खुद कॉलेज का छात्र था, अपने परिवार से मिला तो मां के मुंह से निकला पहला शब्द था कि ‘तू जिंदा है।
मां की बांहों में सुकून
डीजीपी शत्रुजीत कपूर ने बताया कि वर्ष 2024 के पहले तीन महीनों में हरियाणा पुलिस ने 2781 वयस्कों को उनके परिजनों से मिलवाया। 606 नाबालिग बच्चों का परिवार से पुनर्मिलन कराया तो 183 भिखारी बच्चों और 176 बाल श्रमिकों को रेस्क्यू किया।
अगस्त 2023 के बाद 44 ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां परिवारजन 20 वर्षों से किसी अपने को ढूंढ़ रहे थे, लेकिन इतने लंबे समय में चेहरा, भाषा, यहां तक कि बोलने और सोचने का तरीका भी बदल चुका था। फिर भी पुलिस ने हर सुराग को जोड़ा और हर दस्तावेज खंगाले, जिससे रिश्तों की डोर फिर से बंध सकी।
कई मामलों में तो व्यक्ति मानसिक रूप से अस्वस्थ था, कोई भाषा नहीं समझता था तो कोई दिव्यांग था। फिर भी यूनिट के सदस्य तस्वीरों की और पुराने मुकदमों की फाइलें पलटकर किसी मां की आंखों में आंसू और बेटे की बांहों में सुकून ले आए।
पुलिस महानिदेशक ने जब पुलिस टीम को प्रमाण पत्र और पुरस्कार दिए तो उनके शब्दों में गर्व से ज्यादा भावनाएं थीं। उन्होंने कहा कि हर एक केस जब सुलझता है तो सिर्फ एक फाइल बंद नहीं होती, बल्कि एक मां की रातों की नींद लौटती है। एक पिता का दिल चैन पाता है और एक बच्चा अपने बचपन को फिर से जीता है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।