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हरियाणा में सड़क हादसों के लिए ढांचागत खामियां भी काफी हद तक जिम्‍मेदार, सुधार बेहद जरूरी

हरियाणा में सड़क हादसों के लिए अन्‍य कारणों के अलावा ढा़ंचागत खमियांं भी काफी हद तक जिम्‍मेदार है। इस कारण तमाम प्रयासों के बावजूद राज्‍य में सड़क दुर्घटनाएं कम नहीं हो पा रही है। बिना इन्‍हें दूूर किए हादसों पर अंकुश संभव नहीं है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Sun, 29 Nov 2020 11:19 AM (IST)Updated: Sun, 29 Nov 2020 11:19 AM (IST)
हरियाणा में सड़क हादसों के लिए ढांचागत खामियां भी काफी हद तक जिम्‍मेदार, सुधार बेहद जरूरी
हरियाणा में सड़क हादसे के लिए ढांचागत खामियां भी जिम्‍मेदार हैं। (फाइल फोटो)

चंडीगढ़, [दयानंद शर्मा]। हरियाणा में तमाम प्रयासों के बावजूद सड़क हादसों में कमी लाने के अपेक्षित नतीजे हासिल नहीं हो सके हैं। इसके लिए वाहन चालकों की लापरवाही और यातायात नियमों की अवहेलना तो जिम्मेदार हैं ही, ढांचागत खामियां भी बड़ा कारण है। यातायात नियमों का पालन कराने और उल्लंघन रोकने के लिए यातायात पुलिस और परिवहन विभाग के पास संसाधनों की भारी कमी है। साथ ही इच्छाशक्ति की कमी, काम में लापरवाही और भ्रष्टाचार कोढ़ में खाज का काम कर रहा है। क्षेत्रीय परिवहन प्राधिकरण (आरटीए) आफिस में नए ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने व इसके नवीनीकरण की प्रक्रिया में भी कई खामियां हैं।

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यातायात पुलिस और परिवहन विभाग के पास संसाधनों की भारी कमी

विशेषज्ञों के मुताबिक सड़क हादसों के लिए कई बड़े कारण हैं। पहला गलत ड्राइविंग, जिसकी सबसे बड़ी वजह वह तंत्र है जो लाइसेंस जारी करता है। ज्यादातर आरटीए (अब डीटीओ) आफिसों में पैसे देकर लाइसेंस बनवा लिए जाते हैं। गाड़ी चलाने का टेस्ट इतना मामूली है कि उसे कोई भी पास कर सकता है। इसी तरह वाहन चालकों को हेलमेट और सीट बेल्ट की अनिवार्यता का पालन कराने वाली ट्रैफिक पुलिस भी कसौटी पर खरा नहीं उतर पाती। स्टाफ की कमी से जूझ रही ट्रैफिक पुलिस में भ्रष्टाचार का घुन रही-सही कसर पूरी कर देता है। कैमरा आधारित ट्रैफिक चालान शुरू किए गए हैं, लेकिन इसमें भी औपचारिकता ज्यादा है।

आरटीए आफिस में नए ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने व नवीनीकरण की प्रक्रिया में भी कई खामियां

देखा जाए तो हादसों की जड़ में हमारा सिस्टम है जो सड़क पर व्यवस्थित ढंग से चलना नहीं सिखाता। कई स्थानों पर हाईवे के दोनों तरफ रेलिंग बनाई गई है, लेकिन इनके किनारे बसे गांवों के लोग रेलिंग तोड़कर पशुओं को सड़क किनारे लगी घास चरने छोड़ देते हैं।

मुख्‍य सड़कों पर भी इस तरह के अवैध कट हादसे की वजह बनते हैं। जींद के पास सड़क का हाल।

हाईवे पर टोल प्लाजा का संचालन करने वालों पर रेलिंग से छेड़छाड़ करने की घटनाओं पर नजर रखने की जिम्मेदारी है, लेकिन वे इसमें अधिक रुचि नहीं लेते। हादसों को रोकने के लिए ट्रक-बस सहित व्यावसायिक वाहनों के ड्राइवरों की हर दूसरे वर्ष जांच होनी चाहिए।

परिवहन मंत्री मूलचंद शर्मा कहते हैं कि सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए जल्द ही एक विस्तृत कार्ययोजना बनाई गई है। इसके तहत प्रदेश की सड़कों की सघन मानिटरिंग करने के साथ ही संबंधित अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की गई है। पुलिस यातायात जागरूकता सप्ताह जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं, ताकि हादसों में कमी लाई जा सके।

सिर्फ चालान काटने तक सीमित ट्रैफिक पुलिस

यातायात नियमों की अनदेखी का नतीजा इस बात से आंका जा सकता है कि 100 में से 77 सड़क हादसों में गाड़ी चलाने वाले की ही गलती होती है और उसमें भी सबसे ज्यादा हादसे ओवर स्पीडिंग के कारण। इस तरह की गलती के लिए केवल वाहन चालक दोषी नहीं है, लाइसेंस जारी करने की सिस्टम में खामी भी इसका मुख्य कारण है। क्यों की लाइसेंस अथारिटी में बढ़ा भ्रष्टाचार इस बात को सही आंकलन नहीं कर पाता कि जिसे लाइसेंस जारी किया जा रहा है, क्या वह उसके योग्य है, वह यातायात नियमों को जानता है।

इसके बाद जब ऐसा चालक वाहन लेकर सड़क पर उतरता है तो यातायात पुलिस इन नियमों को लागू करने में सख्त कदम नहीं उठा पाती। आम आदमी की नजरों में पुलिस केवल चालान काटने वाली पुलिस है। ट्रैफिक पुलिस केवल वाहन रोकने, कागज देखने व उनका चालान करने का काम करती है, लेकिन पुलिस के पास ट्रैफिक व्यवस्था को दुरूस्त करने के लिए कोई नीति नही है।

ओवर स्पीडिंग से सबसे ज्यादा हादसे!

सडक व परिवहन मंत्रालय के परिवहन अनुसंधान विभाग ने एक रिपोर्ट को तैयार कर पता लगाया कि अधिक सड़क हादसों की वजह क्या है और कौन सी जगहें सड़क हादसों के हिसाब से सबसे ज्यादा खतरनाक हैं. इसके लिए तमाम राज्य सरकारों, पुलिस और अन्य एजेंसियों से ब्यौरा मंगाकर उसकी समीक्षा की गई। यह भी सामने आया है कि फर्जी ड्राइविंग लाइसेंस भी सड़क हादसे की एक बड़ी वजह है। एक बड़ा कारण ये भी सामने आया है कि देश की कुछ सड़कों पर ही जरूरत से ज्यादा ट्रैफिक का बोझ है। देश की सिर्फ 2 प्रतिशत सड़कें ऐसी हैं जिन पर 40 फीसदी ट्रैफिक का बोझ है।

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