Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Haryana Result: चंडीगढ़ की दो कोठियों का ‘शुभ-अशुभ’ गणित... 30 साल में कोई भी वित्त मंत्री दोबारा नहीं पहुंचा विधानसभा

    Updated: Tue, 08 Oct 2024 07:59 PM (IST)

    हरियाणा विधानसभा चुनाव परिणाम मंगलवार को जारी हो गए हैं। भाजपा ने इस चुनाव में प्रचंड बहुमत से जीत दर्ज की है। वहीं हरियाणा में वित्त मंत्री को लेकर जारी मिथक को जेपी दलाल भी नहीं तोड़ पाए। हालांकि विधानसभा उपाध्यक्ष रहे रणबीर गंगवा ने एक मिथक को तोड़ने में कामयाब हुए। यहां जानिए हरियाणा की राजनीति में प्रचलित मिथक...

    Hero Image
    Haryana election result 2024: हरियाणा की राजनीति में वित्‍त मंत्री और कोठियों को लेकर क्‍या है मिथक। प्रतीकात्‍मक फोटो

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। हरियाणा में कोई वित्त मंत्री लगातार दूसरी बार चुनकर विधानसभा में नहीं पहुंचा है। कार्यवाहक वित्त मंत्री जयप्रकाश दलाल भी यह सिलसिला तोड़ नहीं पाए जो भिवानी के लोहारू में कांग्रेस उम्मीदवार राजबीर फरटिया से नजदीकी मुकाबले में हार गए। हालांकि, विधानसभा उपाध्यक्ष के दोबारा विधायक नहीं बन पाने का मिथक तोड़ते हुए पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष रणबीर गंगवा हिसार के बरवाला में कांग्रेस प्रत्याशी रामनिवास घोड़ेला को करीब 27 हजार वोटों से हराकर जीत दर्ज करने में सफल रहे हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    30 साल से एक भी वित्त मंत्री दोबारा विधानसभा नहीं पहुंचा  

    • 1991 में चौधरी भजनलाल की सरकार में मांगेराम गुप्ता वित्त मंत्री थे, लेकिन 1996 में वे चुनाव हार गए
    • 1996 में सेठ श्री किशन दास वित्त मंत्री बने, लेकिन 2000 में वे विधानसभा नहीं पहुंच सके।
    • 2000 में चौधरी ओमप्रकाश चौटाला सरकार में प्रो. संपत सिंह वित्त मंत्री रहे। 2005 में वे भी विधानसभा नहीं पहुंच पाए।
    • 2005 में चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में बनी कांग्रेस सरकार में चौधरी बीरेंद्र सिंह वित्त मंत्री रहे और 2009 में चुनाव हार गए।
    •  2009 में यानी हुड्डा की दूसरी पारी में कैप्टन अजय सिंह यादव वित्त मंत्री बने। 2014 में लोगों ने उन्हें घर बैठा दिया।
    • 2014 से 2019 तक वित्त मंत्री रहे कैप्टन अभिमन्यु भी अगला चुनाव नहीं जीत सके।
    • 2019 से 12 मार्च, 2024 तक मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने वित्त विभाग अपने पास रखा। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने टर्म पूरी होने से पहले ही मुख्यमंत्री और विधानसभा से इस्तीफा दे दिया।
    • मार्च, 2024 में मनोहर के बाद लोहारू से विधायक जेपी दलाल नए वित्त मंत्री बने, जो अब चुनाव हार गए हैं।

    विधानसभा स्‍पीकर को लेकर टूटी धारणा

    विधानसभा के उपाध्यक्ष पद को लेकर भी विधायकों में अच्छी धारणा नहीं रहती है। साल 2005 में हुड्डा सरकार में फिरोजपुर-झिरका से विधायक आजाद मोहम्मद डिप्टी स्पीकर बने थे, लेकिन 2009 में वे चुनाव हार गए। हुड्डा ने दूसरी पारी में बसपा विधायक अकरम खान को डिप्टी स्पीकर बनाया, लेकिन इसके बाद वे भी विधानसभा का मुंह नहीं देख सके। हालांकि, मौजूदा चुनाव में अकरम खान कार्यवाहक मंत्री कंवरपाल गुर्जर को हराकर फिर से विधायक बन गए हैं।

    वर्ष 2014 में भाजपा ने संतोष यादव को डिप्टी स्पीकर बनाया, लेकिन 2019 में उनका टिकट काट दिया। उनके बाद नलवा से विधायक बने रणबीर गंगवा को विधानसभा उपाध्यक्ष बनाया गया। भाजपा ने इस बार गंगवा को बरवाला से टिकट थमाया, जिसके बाद वे फिर से विधानसभा पहुंचने में सफल रहे हैं।

    शुभ साबित नहीं हुईं दो कोठियां

    चंडीगढ़ में हरियाणा कोटे की कुछ ऐसी कोठियां हैं, जिनके साथ ‘शुभ-अशुभ’ का गणित जुड़ा है। इन्हीं में शामिल हैं सेक्टर-दो की कोठी नंबर 48 और सेक्टर सात की कोठी नंबर-78, जिनमें रहने वाले मंत्रियों में कोई भी दोबारा जीत नहीं पाया। इन मंत्रियों ने कोठियों में वास्तु के हिसाब से बदलाव किए और हवन-यज्ञ भी किए, लेकिन उन्हें इसका लाभ नहीं मिला।

    1. सेक्टर-7 की कोठी नंबर 78, जहां दोबारा नहीं लौटा कोई मंत्री

    अब कोठी नंबर-78 ब्यूरोक्रेसी के हवाले हो चुकी है, जिसमें अब सीएम के मुख्य प्रधान सचिव राजेश खुल्लर रहते हैं। उनसे पहले यह कोठी पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल के मुख्य प्रधान सचिव रहे डीएस ढेसी के पास थी।

    मनोहर सरकार की पहली पारी में परिवहन मंत्री रहे कृष्ण लाल पंवार के पास यह कोठी थी। 2019 के चुनावों में वे कांग्रेस के बलबीर सिंह वाल्मीकि के हाथों शिकस्त खा बैठे। हालांकि, पंवार अब पानीपत के इसराना से कांग्रेस प्रत्याशी बलबीर सिंह वाल्मीकि को हराकर विधायक बन गए हैं।

    पंवार से पहले 2005 में शिक्षा मंत्री रहते हुए फूलचंद मुलाना को यह कोठी मिली थी, लेकिन 2009 में वे भी चुनाव हार गए। सरकार में एडजस्टमेंट में चलते उनकी यह कोठी खाली नहीं हुई, लेकिन 2014 में भी उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। 1982 में विधानसभा उपाध्यक्ष कुलबीर सिंह को यह कोठी अलाट हुई थी, लेकिन अगली बार वे चुनाव हार गए।

    1987 में पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय सुषमा स्वराज को यह कोठी मिली, लेकिन वे भी अगला चुनाव हार गईं। इसके बाद 1991 में यह कोठी भजनलाल सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रही करतार देवी को अलॉट हुईं। वे भी अगली बार विधानसभा नहीं पहुंचीं। इसी तरह से 1996 में बहादुर सिंह और 1999 में प्रो. रामबिलास शर्मा इस कोठी में रहे, लेकिन वे भी अगली बार विधानसभा पहुंचने में असफल रहे।

    यह भी पढ़ें -Haryana Election Results 2024 हरियाणा में भाजपा की वापसी से बनेगा नया रिकॉर्ड? किसके पक्ष में रहा जाट और दलित समीकरण

    2. सेक्टर दो की कोठी नंबर-48, फिर नहीं मिली सत्ता

    सेक्टर दो की कोठी नंबर 48 सबसे बड़ी कोठियों में शुमार है।

    • चौटाला सरकार में कद्दावर मंत्री रहे चौधरी धीरपाल सिंह 1999 से 2005 तक इस कोठी में रहे, लेकिन इसके बाद वे विधानसभा नहीं पहुंच सके।
    • 2005 में हुड्डा सरकार में वित्त मंत्री बने चौधरी बीरेंद्र सिंह को यह कोठी अलाट हुई, लेकिन 2009 में उचाना कलां से इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला ने उन्हें पटखनी दे दी।
    • साल 2009 में हुड्डा सरकार में हैवीवेट मंत्री रहे रणदीप सिंह सुरजेवाला भी पांच वर्षों तक इस कोठी में रहे। हालांकि, सुरजेवाला ने इस मिथक को तोड़ा और वे चुनाव जीतने में सफल रहे, लेकिन सरकार नहीं आ पाई।
    • साल 2014 में मनोहर सरकार में वित्त मंत्री रहे कैप्टन अभिमन्यु ने यह कोठी अलाट करवाई और वे अगला चुनाव हार गए। मौजूदा चुनाव में भी उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा है।
    • 2019 में डिप्टी सीएम बने दुष्यंत चौटाला ने यह कोठी अपने नाम अलाट करवाई, लेकिन दुष्यंत विधानसभा चुनावों से लगभग सात महीने पहले सत्ता से बाहर हो गए। मौजूदा चुनाव में उनकी जमानत तक नहीं बच पाई।

    यह भी पढ़ें- हरियाणा चुनाव में भाजपा के वे पांच फैक्‍टर, जिनसे 57 साल का रिकॉर्ड टूटा; कैसे जाटों के गढ़ में जीतीं 9 नई सीटें?

    comedy show banner