हरियाणा में 31 साल से पढ़ा रहे वालंटियर शिक्षकों को झटका, हाई कोर्ट ने परमानेंट करने से किया इनकार
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने 31 वर्षों से दुर्गम क्षेत्रों में कार्यरत स्वैच्छिक शिक्षकों को नियमित करने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने सरकार को तीन महीने में शिक्षकों के लिए सहायता योजना बनाने का आदेश दिया क्योंकि वर्तमान में पांच हजार रुपये का वेतन पर्याप्त नहीं है। अदालत ने स्पष्ट किया कि नियमितीकरण से इनकार का मतलब शिक्षकों को हटाना नहीं है।

राज्य ब्यूरो, पंचकूला। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने राज्य के दुर्गम व पहाड़ी क्षेत्रों में पिछले 31 वर्षों से कार्यरत स्वैच्छिक शिक्षकों को नियमित करने से इनकार कर दिया है।
हालांकि, अदालत ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि इन शिक्षकों के लिए तीन माह में कोई उपयुक्त सहायता योजना तैयार की जाए, क्योंकि वर्तमान में केवल पांच हजार रुपये महीना भुगतान को अदालत ने नाकाफी माना है।
शिवालिक विकास बोर्ड/एजेंसी के तहत 1994 में स्थानीय बेरोजगार युवाओं को सरकारी प्राथमिक स्कूलों में स्वैच्छिक शिक्षक के रूप में एक हजार रुपये मासिक वेतन पर नियुक्त किया गया था। 2017 में उनका मासिक वेतन पांच हजार रुपये कर दिया गया था।
याचिकाकर्ताओं ने सेवा नियमित करने की मांग को लेकर हाईकोर्ट की शरण ली थी। हाईकाेर्ट की सिंंगल बेंच ने इनकी मांग को खारिज कर दिया था। इसके खिलाफ उन्होंने खंडपीठ की शरण ली थी।
जस्टिस अश्वनी कुमार मिश्रा और जस्टिस रोहित कपूर की खंडपीठ ने कहा कि ये नियुक्तियां स्वैच्छिक थी और किसी स्वीकृत पद पर नहीं की गई थी, इसलिए सर्वोच्च न्यायालय के जीबन कृष्ण मंडल मामले के फैसले के अनुसार नियमितीकरण का अधिकार नहीं बनता।
अदालत ने कहा कि चूंकि ये शिक्षक कठिन परिस्थितियों में लंबे समय तक सेवा दे चुके हैं और अब उम्र के कारण अन्य रोजगार पाने में सक्षम नहीं हैं, इसलिए राज्य को उनके हित में उचित योजना बनानी चाहिए।
कोर्ट ने माना कि इनकी नियुक्ति के समय इनका वेतन एक हजार रुपये महीना तय किया गया था और 2017 में बढ़ाकर पांच हजार कर दिया था, लेकिन आज की परिस्थितियों में इतना कम वेतन काफी नहीं है और वह भी तब जब ये दुर्गम क्षेत्रों में जाकर सेवाएं दे रहे हैं।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि नियमितीकरण से इनकार का मतलब यह नहीं है कि उन्हें हटाया जाए। यदि काम उपलब्ध है तो वे सेवा जारी रख सकते हैं। खंडपीठ के इस आदेश के साथ ही दुर्गम क्षेत्रों में लंबी अवधि से सेवा दे रहे इन शिक्षकों की हाईकोर्ट से उम्मीद टूट गई है।
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