Haryana News: गिरफ्तारी के बाद पुलिस की मारपीट पर हरियाणा मानवाधिकार आयोग सख्त, मेडिकल को लेकर भी दिए निर्देश
हरियाणा मानवाधिकार आयोग ने गिरफ्तारी के बाद मेडिकल जांच में लापरवाही को लेकर सख्ती दिखाई है। आयोग ने स्पष्ट किया है कि गिरफ्तार व्यक्ति का मेडिकल परीक ...और पढ़ें

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। मानवाधिकारों की प्रभावी सुरक्षा की दिशा में एक अहम और दूरगामी पहल करते हुए हरियाणा मानव अधिकार आयोग के सदस्य दीप भाटिया ने हरियाणा पुलिस के महानिदेशक हरियाणा पुलिस से राज्य के सभी पुलिस अधिकारियों को सख्त और स्पष्ट निर्देश जारी करने को कहा है।
आयोग ने साफ कहा है कि किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी के बाद उसका मेडिकल परीक्षण कानून और माननीय सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुरूप अनिवार्य रूप से, पूरी गंभीरता और पारदर्शिता के साथ कराया जाना चाहिए।
आयोग के सदस्य दीप भाटिया ने जोर देकर कहा कि मेडिकल परीक्षण किसी भी सूरत में औपचारिकता बनकर नहीं रहना चाहिए। गिरफ्तार व्यक्ति के शरीर पर मौजूद प्रत्येक चोट, किसी भी प्रकार का दर्द, शारीरिक कष्ट अथवा स्वास्थ्य संबंधी शिकायत सबका विस्तृत और सही-सही ब्यौरा मेडिकल रिकार्ड में दर्ज होना अनिवार्य है। उन्होंने चेताया कि अधूरा या लापरवाही पूर्ण मेडिकल न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि यह व्यक्ति के मौलिक अधिकारों और मानवाधिकारों पर सीधा आघात भी है।
आयोग ने स्मरण कराया कि इससे पहले एक मामले में गंभीर अनियमितताएं सामने आने पर स्वास्थ्य विभाग के महानिदेशक को आदेश दिए गए थे कि राज्य भर में फील्ड में तैनात सभी चिकित्सकों के लिए स्पष्ट गाइडलाइन जारी की जाएं। आयोग के निर्देशों के अनुपालन में स्वास्थ्य विभाग के महानिदेशक ने 19 नवंबर 2025 को सभी मुख्य चिकित्सा अधिकारियों और मेडिकल परीक्षण करने वाले चिकित्सकों को निर्देश जारी कर दिए हैं।
इन निर्देशों में स्पष्ट कहा गया है कि मेडिकल के लिए प्रस्तुत किसी भी अभियुक्त का संपूर्ण मेडिकल परीक्षण किया जाए, उसकी हर चोट, दर्द या शिकायत को रिकार्ड में दर्ज किया जाए और मेडिकल रिकार्ड को विधिवत सुरक्षित रखा जाए।
अब मानवाधिकार आयोग ने यह भी जरूरी माना है कि इन सभी निर्देशों की जानकारी पुलिस अधिकारियों तक भी समान रूप से पहुंचे, ताकि गिरफ्तारी के बाद मेडिकल की प्रक्रिया में किसी स्तर पर कोई चूक न रह जाए। दीप भाटिया ने चिंता जताई कि वर्तमान में कई मामलों में गिरफ्तार व्यक्तियों का मेडिकल केवल “खानापूर्ति” बनकर रह गया है, जो कानून और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की भावना के सर्वथा विपरीत है। आयोग का स्पष्ट मत है कि यह पहल आम नागरिकों के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
2016–2022 की अवधि में आयोग के पास कुल 18,659 शिकायतें दर्ज हुईं, जिनमें से 8,367 शिकायतें सीधे पुलिस से संबंधित थीं।
2024–25 (एक वर्ष) में आयोग को कुल 1,833 शिकायतें मिलीं, जिनमें 1,290 शिकायतें यानी लगभग 70% पुलिस के खिलाफ दर्ज की गईं।
पुलिस के खिलाफ शिकायतों की प्रकृति
- हिरासत में प्रताड़ना या अमानवीय व्यवहार
- बिना ठोस आधार के थाने में रोके रखना
- मेडिकल परीक्षण में लापरवाही/खानापूर्ति
- झूठी एफआईआर की धमकी या दबाव
- गिरफ्तारी की प्रक्रिया में सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन

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