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लोकसभा चुनाव से पहले करवट लेगी गुर्जर राजनीति, महासम्मेलन से दिखाएंगे ताकत

देश की 55 लोकसभा सीटों पर जीत का दम रखने वाले गुर्जर नेताओं ने अपनी एकजुटता के प्रयास तेज कर दिए हैं। राजनीतिक हिस्सेदारी की मांग को लेकर गुर्जर शक्ति प्रदर्शन करने वाले हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Thu, 13 Dec 2018 05:28 PM (IST)Updated: Fri, 14 Dec 2018 11:49 AM (IST)
लोकसभा चुनाव से पहले करवट लेगी गुर्जर राजनीति, महासम्मेलन से दिखाएंगे ताकत
लोकसभा चुनाव से पहले करवट लेगी गुर्जर राजनीति, महासम्मेलन से दिखाएंगे ताकत

चंडीगढ़ [अनुराग अग्रवाल]। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और गुजरात समेत विभिन्न राज्यों में गुर्जर राजनीति करवट लेने को तैयार है। पांच राज्यों खासकर राजस्थान के चुनाव नतीजों के बाद देश की राजनीति में गुर्जरों का दखल बढ़ गया। देश की 55 लोकसभा सीटों पर जीत का दम रखने वाले गुर्जर नेताओं ने अपनी एकजुटता के प्रयास तेज कर दिए हैं।

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विभिन्न दलों में राजनीतिक हिस्सेदारी की मांग को लेकर गुर्जर न केवल शक्ति प्रदर्शन करने वाले हैं, बल्कि उन्होंने अपनी ताकत दिखाने के लिए हरियाणा से सटे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले को चुना है। यहां 16 दिसंबर को विभिन्न राजनीतिक दलों के तमाम बड़े गुर्जर नेताओं का जमावड़ा लगेगा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक गुर्जरों की 14 फीसदी आबादी है।

सहारनपुर में होने वाले गुर्जर महासम्मेलन की जिम्मेदारी हरियाणा कांग्रेस के गुर्जर नेता एवं पूर्व विधायक धर्म सिंह छौकर को सौंपी गई है। छौकर विभिन्न दलों से जुड़े नेताओं सचिन पायलट, कृष्णपाल गुर्जर, अवतार सिंह भड़ाना, करतार सिंह और मुकेश चौधरी को समाज हित में एक मंच पर एकत्र करने के लिए प्रयासरत हैं, ताकि राजनीतिक भागीदारी और शिक्षा की लड़ाई मजबूती के साथ लड़ी जा सके। 1988 में समालखा में गुर्जर नेता राजेश पायलट ने महासम्मेलन किया था। अब करीब 30 साल के लंबे अंतराल के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले देशभर के गुर्जरों ने पश्चमी उत्तर प्रदेश में अपनी ताकत का अहसास कराने का निर्णय लिया है। इसकी बागडोर धर्म सिंह छौकर के हाथों में हैं।

देश की लोकसभा में फिलहाल गुर्जर समाज के चार सांसद हैं। 1952 में जब देश में पहला लोकसभा चुनाव हुआ था, तब एक भी सांसद चुनकर नहीं आया था। 1952 में ही हुए उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में दो विधायक चुनकर आए थे। चौ. चरण सिंह ने हालांकि गुर्जरों को एकजुट करने के गंभीर प्रयास किए। उनके बाद पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने राजेश पायलट के सिर पर हाथ रखा, लेकिन अब गुर्जरों का कोई सर्वमान्य नेता नहीं है। अलग-अलग दलों में गुर्जर अपनी राजनीति कर रहे हैं। इसके बावजूद गुर्जरों को राजनीतिक दलों में उनकी आबादी के लिहाज से समुचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा है।

देश के 29 राज्यों में 5 करोड़ 57 लाख गुर्जर हैं, जो देश की कुल आबादी का 10.25 फीसद हैं। जम्मू में 24 लाख, राजस्थान में 80 लाख, गुजरात में 60 लाख, महाराष्ट्र में 45 लाख, कर्नाटक में 46 लाख, तमिलनाडु में 36 लाख, आंध्रप्रदेश में 24 लाख, छत्तीसगढ़ में 24 लाख, उड़ीसा में 37 लाख, मध्यप्रदेश 42 लाख, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 2 करोड़, हिमाचल में 45 लाख, उत्तराखंड में 20 लाख, मिजोरम में 15 लाख और आसाम में 10 लाख गुर्जर हैं।

इतनी आबादी वाले गुर्जर समाज के लोग देश की 55 लोकसभा सीटों पर जीतने का दम भरते हैं, लेकिन राजनीतिक दलोंं द्वारा समुचित मात्रा में टिकट नहीं दिए जाने की वजह से वे लगातार पिछड़ रहे हैं। सहारनपुर में होने वाले महासम्मेलन में जहां गुर्जर अपनी ताकत दिखाएंगे, वहीं अपनी एकजुटता के जरिये वे राजनीतिक दलों से समुचित मात्रा में टिकटों की मांग भी करेंगे।

आबादी के हिसाब से टिकट दें राजनीतिक दल

गुर्जर महासम्मेलन के आयोजक एवं पूर्व विधायक धर्म सिंह छौकर का कहना है कि देश भर में गुर्जरों की आबादी के हिसाब से राजनीतिक दल उन्हें टिकट नहीं दे रहे हैं। राजा मिहिर के बाद गुर्जर नेता रामचंद विकल, महंत जगन्नाथ, महेंद्र सिंह भाटी, हुकुम सिंह और राजेश पायलट ने गुर्जर समाज का मान बढ़ाया। अब उनकी लगातार अनदेखी हो रही है। 16 दिसंबर को सहारनपुर में होने वाले महासम्मेलन में गुर्जर न केवल अपनी एकता का प्रदर्शन करेंगे, बल्कि यह भी दिखाएंगे कि किसी भी दल की हार जीत में उनका कितना बड़ा योगदान है। यह सम्मेलन सभी राजनीतिक दलों को गुर्जरों की अनदेखी नहीं करने के लिए मजबूर कर देगा।

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