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आपातकाल के बंसीलाल, तानाशाही ने फीकी कर दी विकास पुरुष की छवि, अत्‍याचार की कई कहानियां

हरियाणा के पूर्व मुख्‍यमंत्री बंसीलाल की राज्‍य में विकास पुरुष की छवि रही है लेकिन 1975 में आपातकाल के दौरान तानाशाही ने इसको काफी फीका कर दिया। उनपर अत्‍याचर के आरोप लगे।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Updated: Thu, 25 Jun 2020 01:40 PM (IST)
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आपातकाल के बंसीलाल, तानाशाही ने फीकी कर दी विकास पुरुष की छवि, अत्‍याचार की कई कहानियां

चंडीगढ़, [सुधीर तंवर]। हरियाणा के चार बार मुख्यमंत्री रह चुके चौधरी बंसीलाल के नाम की जब भी चर्चा होती है तो अकसर उनकी विकास पुरुष वाली छवि पर उनका तानाशाही वाला रवैया भारी नजर आता है। आपातकाल के दौरान के प्रताडि़त लोग आरोप लगाते हैं कि इमरजेंसी में बंसीलाल ने हरियाणा में लोकतांत्रिक ढांचे की जबरदस्त तरीके धज्जियां उड़ाईं। आपातकाल केे दौरान उनकी तानाशाही के कई किस्‍से आज भी चर्चाओं में हैं।

पत्रकारों के सवाल के जवाब में बंसीलाल ने कहा मैं तो पापड़़ बेलता हूं, तुम्‍हें पता ही नहीं

हरियाणा में जब नसबंदियों का दौर चल रहा था तो एक पीडि़त ने भरी सभा में इसका विरोध जताने के लिए बंसीलाल के सामने अपनी धोती तक खोल दी थी। आपातकाल का दौर वह था जब बंसीलाल के खिलाफ एक भी शब्द छापने वाले पत्रकारों को डराया-धमकाया जाता था। बात-बात पर गुस्सा होने वाले बंसीलाल से एक बार जब किसी पत्रकार ने उनके अनुभव से जुड़ा सवाल पूछा तो उनका जवाब था-मैं अब तक पापड़ बेलता था, तुम्हें पता ही नहीं।

अपने दूधवाले की शिकायत पर नौसेना के अधिकारी को मीसा के तहत डाल दिया था जेल में

एक किस्सा यह भी चर्चित है कि नौसेना के एक बड़े अधिकारी पर सिर्फ इसलिए मीसा के तहत मुकदमा दर्ज कर दिया गया था कि उन्होंने चौधरी बंसीलाल के दूध वाले से बदसलूकी कर दी थी। कहा जाता है कि बंसीलाल को सीएम बनने से पहले प्रशासनिक अनुभव नहीं था, लेकिन ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े होने की वजह से उन्हेंं गांवों की वास्तविक स्थिति का एहसास था। इसीलिए उन्होंने बिजली-पानी और सड़क पर बेहतरीन काम किया और दक्षिण हरियाणा के ऊंचाई वाले इलाकों में पानी पहुंचाया। इससे उनकी छवि विकास पुरुष की बनी। हाईवे पर रिजार्ट और टूरिज्म को बढ़ावा देने की परिकल्पना भी बंसीलाल की थी, लेकिन वह आपातकाल में हुई ज्यादतियों की वजह से अधिक चॢचत हुए।

देवीलाल ने लिया अपमान का बदला

हरियाणा के राजनीतिक गलियारों में एक किस्सा और चॢचत है। आपातकाल में 1977 में हुए विधानसभा चुनाव में देवीलाल के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी। तब बंसीलाल को हथकडिय़ां लगाई गईं। बताते हैं कि इसके पीछे एक बड़ी वजह यह थी कि एक बार दिल्ली जाते समय देवीलाल किसी मुद्दे पर बंसीलाल से बहस कर बैठे।

बंसीलाल को यह बात इतनी नागवार गुजरी कि उन्होंने देवीलाल को बीच रास्ते में ही उतार दिया। जब देवीलाल मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने बंसीलाल को गिरफ्तार कराकर अपमान का बदला लिया। 1979 में ही जनता पार्टी से जुड़े तीसरे लाल भजनलाल ने देवीलाल को सत्ता से बेदखल कर दिया था। 1980 में भजनलाल कांग्रेस में चले गए। यही वह समय था जब बंसीलाल का कांग्रेस में समय ढलने लगा था।

अकड़ और अक्खड़पन बंसीलाल के गहने थे

1996 के चुनाव से पहले बंसीलाल ने एक जनसभा में भाषण दिया कि मुझसे कई गलतियां हुईं हैं। मुझे माफ कर दीजिए। भविष्य में ऐसी कोई गलती नहीं होगी। इतने में पंडाल में एक व्यक्ति उठा और बंसीलाल से पूछा कि क्या आपमें अभी भी अकड़ बची हुई है। इस पर बंसीलाल ने जवाब दिया कि भाई बिल्कुल भी नहीं बची। बंसीलाल का जवाब सुनकर उस व्यक्ति ने कहा कि अगर आपकी अकड़ खत्म हो गई तो आपके पास बचा ही क्या।

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