जाट आंदोलन: डील तय पर गैर जाटों को नाराज नहीं करना चाहती सरकार
हरियाणा की भाजपा सरकारजाट नेताआें से समझौता को लेकर गैर जाट नेताओं की नाराजगी का खतरा नहीं उठाना चाहती है। सरकार जाटों से समझौते काे लेकर यह संदेश नहीं देना चाहती कि व झुक गई है।
चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। हरियाणा के आंदोलनकारी जाट नेताओं और सरकार द्वारा गठित पांच अफसरों की कमेटी के बीच पानीपत में हुई समझौता वार्ता से दोनों पक्षों के बीच लंबे समय से बना आ रहा गतिरोध जरूर टूट गया। वार्ता भले ही अधिकारिक तौर पर सिरे नहीं चढ़ पाई, लेकिन इससे मामले के समाधान की उम्मीद काफी जगी है। वार्ता में कुछ कदम जाट चले और कुछ कदम सरकार। इसके साथ ही राज्य सरकार गैर जाटों को नाराज नहीं करना चाहती है1 पहले दौर की बातचीत में ही यदि जाट समुदाय की सभी सात मांगें मान लेती तो उस गैर जाट समुदाय के नाराज होने का खतरा बढ़ जाता।
भाजपा के राज्य में सत्ता में आने में गैर जाटों का मुख्य योगदान था और इसी कारण सरकार गैरजाटों की नाराजगी मोल लेने का खतरा नहीं उठाना चाहती है। इसलिए पहले दौर की बातचीत को बेनतीजा साबित करना एक रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। वैसे अफसरों के साथ जो भी बात हुई, उससे आंदोलनकारी जाट नेता संतुष्ट नजर आ रहे हैं।
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आंदोलन खत्म कराने का श्रेय अफसरों को देने की बजाय खुद हासिल करेगी सरकार
मुख्य सचिव डीएस ढेसी के नेतृत्व वाली पांच सदस्यीय कमेटी की आंदोलनकारी जाट नेताओं के साथ करीब साढ़े तीन घंटे चली बैठक को पूरी तरह से बेनतीजा नहीं कहा जा सकता। इस बैठक ने सरकार के प्रति जाट आंदोलनकारियों के दिलों में पड़ी गांठ खोलने का काम किया है।
मनोहरलाल सरकार पहले ही सभी मांगें मानने का मन बना चुकी थी। यदि ऐसा नहीं होता तो आंदोलनकारियों से बातचीत की पहल ही नहीं की जाती, लेकिन सरकार को लग रहा था कि यदि एकदम सभी मांगों को स्वीकार कर लिया गया तो आसानी से घुटने टेक दिए जाने का संदेश चला जाता। इससे भाजपा के प्रमुख वोट बैंक गैर जाट मतदाताओं और गैर जाट विधायकों के भी नाराज होने की संभावनाएं बढ़ जाती।
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पिछले साल फरवरी में हुए आंदोलन के दौरान 31 लोगों की मौत हुई थी और करीब साढ़े आठ सौ करोड़ रुपये की संपत्ति बर्बाद हुई थी। उस समय भाजपा के गैर जाट विधायकों ने खूब आक्रोश जाहिर किया था। अब दोबारा धरने शुरू हुए तो सरकार ने स्वीकार किया कि सभी 31 लोगों के परिजनों को मुआवजा दिया जा चुका है। सरकार उनके परिजनों को पक्की नौकरी देने का भी इरादा रखती है।
इससे फिर भाजपा के गैर जाट विधायकों में आक्रोश फैल गया, लेकिन उत्तर प्रदेश में चुनाव की वजह से भाजपा हाइकमान के दबाव के कारण सरकार की मजबूरी थी कि किसी भी तरह आंदोलन को खत्म कराया जाए। लिहाजा सरकार आंदोलनकारियों से बातचीत को राजी हो गई और पांच सदस्यीय अफसरों की कमेटी बना दी।
इस बातचीत के बाद यशपाल मलिक के तेवर काफी नरम हैं। उनका कहना है कि दूसरे या तीसरे दौर की बातचीत में समझौता सिरे चढ़ सकता है। यानी कहीं न कहीं बात बन गई लगती है। सरकार नहीं चाहती कि इस समझौते का श्रेय अफसरों को मिले। लिहाजा अगले दौर की बातचीत जब भी होगी, तब उसमें या तो मुख्यमंत्री शामिल होंगे या फिर वे अपनी पसंद के मंत्रियों को कमान सौंप सकते हैं।
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वैसे भी उत्तर प्रदेश में एक दौर का मतदान तो हो ही चुका है। ऐसे में सभी की निगाहें अब अगले दौर की बातचीत पर लग गई है। पहले दौर की बातचीत फेल होने के बाद सरकार अब गैर जाट विधायकों में यह संदेश देने की कोशिश करेगी कि वह एकदम सभी मांगें मानने को तैयार नहीं हुई है।
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''सभी धरनों से आए प्रतिनिधियों के साथ यशपाल मलिक ने अपनी सातों मांगें अफसरों की कमेटी के सामने रखीं। सरकार के साथ वार्ता जारी है। अफसरों ने सभी मांगें मुख्यमंत्री तक पहुंचाने का भरोसा दिलाया है। इन मांगों को पूरा करने के लिए अगले दो से चार दिनों का समय मांगा गया है। सरकार अब अगली वार्ता का समय तय करेगी।
- केपी सिंह दहिया, प्रदेश महासचिव, अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति।
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'' सरकार ने प्रदेश की शांति के मद्देनजर वार्ता की है। सभी पहलू पर बातचीत की जा रही है। किसी को मनमानी की इजाजत नहीं दी जाएगी। यशपाल मलिक भड़काऊ भाषा का इस्तेमाल बंद करें। जो प्रदेश और समाज हित में होगा, वह किया जाएगा।
- कृष्ण कुमार बेदी, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री, हरियाणा।
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