हाईकोर्ट के जज के खिलाफ आई शिकायत, चीफ जस्टिस शील नागू ने केस वापस लेकर खुद सुनवाई शुरू की
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू ने एम3एम समूह के प्रमोटर रूप कुमार बंसल की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि उनके पास किसी भी मामले को किसी भी पीठ से वापस लेने का अधिकार है। उन्होंने न्यायपालिका की निष्पक्षता बनाए रखने के लिए हस्तक्षेप को उचित ठहराया और याचिकाकर्ता की आपत्ति को खारिज कर दिया। अगली सुनवाई 26 मई को होगी।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू ने स्पष्ट किया कि वह किसी भी मामले को चाहे सुन लिया गया हो या निर्णय के लिए सुरक्षित रखा गया हो, किसी भी पीठ से वापस लेकर किसी अन्य पीठ को सौंपने का पूर्ण अधिकार रखते हैं। यह टिप्पणी उन्होंने चर्चित रियल एस्टेट समूह एम3एम के प्रमोटर रूप कुमार बंसल की मनी लांड्रिंग से जुड़ी एफआईआर को रद करने संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए की।
यह मामला 17 अप्रैल को पंचकूला में एंटी करप्शन ब्यूरो द्वारा दर्ज एफआईआर से जुड़ा है। इसमें कुछ नामजद और कुछ अज्ञात आरोपितों के साथ याचिकाकर्ता के रूप बंसल को भी आरोपित बनाया गया है। पहले यह मामला एकल पीठ के समक्ष था।
जहां दो मई को सुनवाई के उपरांत निर्णय सुरक्षित रखा गया और 12 मई को फैसला सुनाया जाना था। चीफ जस्टिस को इस मामले को लेकर कुछ शिकायतें प्राप्त हुईं, जिसके आधार पर उन्होंने 10 मई को एक प्रशासनिक आदेश पारित कर एकल पीठ के जज से केस वापस लेकर अपनी एकल पीठ में दोबारा सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर लिया।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने आपत्ति जताई कि जब किसी मामले की सुनवाई पूर्ण हो चुकी है और निर्णय सुरक्षित हो, तो उसे स्थानांतरित करना न्यायिक प्रक्रिया के विरुद्ध है। उनका तर्क था कि एक बार मामला किसी जज को सौंपा जाए तो फिर उसमें हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए।
इस पर चीफ जस्टिस ने मास्टर ऑफ रोस्टर की संवैधानिक भूमिका का हवाला देते हुए कहा कि यदि न्यायपालिका की निष्पक्षता, गरिमा और सार्वजनिक विश्वास पर कोई सवाल खड़ा हो तो ऐसे मामलों में उनका हस्तक्षेप न केवल न्यायोचित है, बल्कि अनिवार्य भी।
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाई कोर्ट के उदाहरणों का उल्लेख करते हुए बताया कि ऐसी स्थिति में पीठ का पुनर्गठन पूरी तरह उचित है। प्रवर्तन निदेशालय ने भी कोर्ट को सूचित किया कि रूप बंसल के विरुद्ध पहले से ही प्रवर्तन मामलों की सूचना रिपोर्ट (ईसीआइआर) दर्ज है, जो धनशोधन से जुड़ी है। ईडी ने चीफ जस्टिस के हस्तक्षेप को पूरी तरह आवश्यक और संवेदनशीलता के अनुरूप ठहराया।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता की आपत्ति को खारिज करते हुए अगली सुनवाई की तारीख 26 मई निर्धारित की है। इस दौरान मुख्य रूप से मामले के तथ्यों पर विचार किया जाएगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि जब तक न्यायपालिका की निष्पक्षता और जनता का विश्वास बरकरार है, तभी न्याय का वास्तविक उद्देश्य पूरा हो सकता है। ऐसे में संस्थान की प्रतिष्ठा को आघात पहुंचाने वाली किसी भी शिकायत पर तत्परता से कार्रवाई किया जाना न्यायहित में है।
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