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    27 साल बाद सीआईएसएफ जवान की सेवा में बहाली, पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट का अहम फैसला

    Updated: Thu, 25 Dec 2025 11:10 PM (IST)

    लगभग 27 वर्षों बाद पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने सीआईएसएफ के एक कॉन्स्टेबल को सेवा में पुनर्बहाली के आदेश दिए। हाईकोर्ट ने कहा कि अर्धसैनिक बलों में अ ...और पढ़ें

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    सीआईएसएफ के जवान को 27 वर्ष बाद सेवा में पुनर्बहाली के हाईकोर्ट के आदेश। फाइल फोटो

    दयानंद शर्मा, चंडीगढ़। लगभग 27 वर्षों बाद एक अहम फैसले में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के एक कॉन्स्टेबल को बड़ी राहत देते हुए उसकी सेवा में पुनर्बहाली के आदेश दिए हैं।

    हाईकोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अर्धसैनिक बलों में अनुशासन के नाम पर की गई कार्रवाई भी न्यायिक समीक्षा से परे नहीं है और यदि सजा अपराध के अनुपात में न हो या साक्ष्यों की अनदेखी कर दी गई हो तो उसे बरकरार नहीं रखा जा सकता। यह आदेश जस्टिस संदीप मौदगिल ने सीआईएसएफ कॉन्स्टेबल रविंद्र कुमार राणा की याचिका स्वीकार करते हुए पारित किया।

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    अदालत ने राणा को सेवा से हटाने की कार्रवाई को 'असंगत, साक्ष्यविहीन और विवेकहीन' करार दिया। रविंद्र कुमार राणा की भर्ती वर्ष 1992 में सीआईएसएफ में हुई थी। वर्ष 1998 में असम स्थित ओएनजीसी नजीरा यूनिट में तैनाती के दौरान उन पर वरिष्ठ अधिकारी के साथ मारपीट, दुर्व्यवहार और आदतन अनुशासनहीनता के आरोप लगाए गए।

    जून 1998 में उन्हें निलंबित किया गया और विभागीय जांच के बाद पांच अक्टूबर 1998 को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। उनकी विभागीय अपील मई 1999 में खारिज कर दी गई थी, जिसके बाद उन्होंने हाई कोर्ट का रुख किया।

    मामले की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने विभागीय जांच की प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए। अदालत ने कहा कि जांच में 10 गवाहों की गवाही कराई गई, लेकिन उनमें से अधिकतर ने अभियोजन के आरोपों का समर्थन नहीं किया, जबकि अन्य गवाहों ने स्वीकार किया कि उनकी जानकारी प्रत्यक्ष न होकर सुनी-सुनाई बातों पर आधारित थी। इसके बावजूद जांच अधिकारी द्वारा सभी आरोप सिद्ध मान लेना अदालत के अनुसार 'माइंड एप्लीकेशन की पूरी तरह कमी' दर्शाता है।

    हाई कोर्ट ने इस बात पर भी कड़ा ऐतराज जताया कि कथित शारीरिक हमले के समर्थन में कोई चिकित्सीय साक्ष्य रिकार्ड पर नहीं लाया गया, जबकि याचिकाकर्ता की ओर से इसकी बार-बार मांग की गई थी। अदालत ने टिप्पणी की कि यदि बैरक के भीतर इस प्रकार की घटना हुई होती तो आसपास मौजूद अन्य कर्मियों द्वारा उसका प्रत्यक्ष समर्थन और पुष्टि अवश्य होती, जो इस मामले में पूरी तरह नदारद है।

    केंद्र सरकार की ओर से रविंद्र राणा के पुराने अनुशासनात्मक रिकार्ड का हवाला देकर उन्हें आदतन अनुशासनहीन बताने की दलील को भी अदालत ने खारिज कर दिया। अदालत ने अपने फैसले में यह भी रेखांकित किया कि सीआईएसएफ जैसे अर्धसैनिक बलों में अनुशासन बनाए रखना निस्संदेह आवश्यक है, लेकिन अनुशासनात्मक कार्रवाई प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों और तर्कसंगत निर्णय प्रक्रिया के अनुरूप होनी चाहिए।

    न्यायालय ने कहा कि अनुशासन के नाम पर दी गई सजा यदि इतनी कठोर हो कि 'न्यायिक अंतरात्मा को झकझोर दे' तो उसमें हस्तक्षेप किया जाना आवश्यक हो जाता है। इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हाई कोर्ट ने रविंद्र राणा को सेवा से हटाने तथा अपील खारिज करने के आदेशों को रद कर दिया।

    अदालत ने केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल को निर्देश दिया कि रविंद्र कुमार राणा को सेवा में बहाल किया जाए और उन्हें सभी परिणामी लाभ दिए जाएं। इसमें वेतन व भत्तों का बकाया भुगतान भी शामिल होगा, जिस पर छह प्रतिशत वार्षिक ब्याज भी अदा करना होगा।