'कबूलनामा आरोपित होने का आधार नहीं हो सकता', 22 साल बाद दोहरे हत्याकांड के आरोपित को हाई कोर्ट ने किया बरी
पानीपत में 2003 में हुए दोहरे हत्याकांड के मुख्य आरोपी राजीव नाथ को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab and Haryana High Court) ने बरी कर दिया है। अदालत ने 22 साल बाद फैसला सुनाते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष राजीव के खिलाफ पर्याप्त सबूत पेश करने में विफल रहा। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा कबूलनामा आरोपित होने का आधार नहीं हो सकता।
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। हरियाणा के पानीपत जिले में वर्ष 2003 में हुए दोहरे हत्याकांड के प्रमुख आरोपित को पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने 22 साल बाद सुनाए गए फैसले में आरोपित राजीव नाथ को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है। अदालत ने पाया कि मामले में अभियोजन पक्ष आरोपित के खिलाफ पर्याप्त और ठोस साक्ष्य पेश करने में असफल रहा।
2003 में दो साधुओं की हत्या से फैली थी सनसनी
यह मामला पानीपत जिले के गांव चंदौली स्थित एक धार्मिक डेरे में दो साधुओं बाबा शिवनाथ और उनके शिष्य माया राम की नृशंस हत्या से जुड़ा है। 7 जनवरी 2003 को खेतों की ओर जा रहे किसान पृथ्वी सिंह ने डेरे में दोनों को मृत अवस्था में पाया। उनके चेहरे तेजाब से झुलसे हुए थे।
लगभग एक महीने तक पुलिस के हाथ कोई ठोस सुराग नहीं लगा। फिर 6 फरवरी 2003 को गांव के सरपंच रूप चंद और एक अन्य व्यक्ति सुखबीर सिंह ने दावा किया कि आरोपित राजीव नाथ ने उनके सामने हत्या की बात स्वीकार की थी। उन्होंने बताया कि राजीव गद्दी का वारिस बनना चाहता था, जबकि बाबा शिवनाथ उसे अपने शिष्य माया राम को सौंपना चाहते थे। इसी रंजिश में राजीव ने हत्या कर दी।
पुलिस ने इस कथित ''अतिरिक्त न्यायिक स्वीकारोक्ति को आधार बनाते हुए राजीव नाथ को गिरफ्तार किया। 2004 में निचली अदालत ने राजीव को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। राजीव ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी, जिसके चलते उसे 2009 में जमानत मिल गई।
हाई कोर्ट ने पलटा फैसला, कहा- कबूलनामा ही आधार नहीं हो सकता
जस्टिस जसजीत सिंह बेदी और जस्टिस गुरविंदर सिंह गिल की खंडपीठ ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए कहा कि पूरा मामला एक अतिरिक्त न्यायिक कबूलनामे पर आधारित था, जो कानूनी दृष्टि से कमजोर साक्ष्य होता है। कोर्ट ने सवाल उठाया कि यदि आरोपित वास्तव में दोषी था, तो वह एक महीने बाद खुद सरपंच के पास जाकर हत्या की बात क्यों स्वीकार करता।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि न तो कोई प्रत्यक्षदर्शी था, न ही राजीव नाथ को मृतकों के साथ आखिरी बार देखे जाने का कोई प्रमाण मिला। पुलिस ने आरोपी से कोई हथियार या तेजाब भी बरामद नहीं किया। फिंगरप्रिंट रिपोर्ट भी किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाई।
कोर्ट ने कहा कि जब कोई मामला पूरी तरह परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित हो, तो उन साक्ष्यों की श्रृंखला इतनी मजबूत होनी चाहिए कि कोई अन्य निष्कर्ष संभव न हो। लेकिन इस मामले में साक्ष्य अधूरे थे, और ऐसे में संदेह का लाभ आरोपित को दिया जाना न्यायसंगत है।
हाई कोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष राजीव नाथ के खिलाफ आरोप साबित करने में असफल रहा और उसे दोषमुक्त करार देते हुए 22 साल पुराने इस चर्चित हत्याकांड से मुक्त कर दिया।
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