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    हाईटेंशन तार की चपेट में आने से नाबालिग हो गया था दिव्यांग, 9 साल बाद हाईकोर्ट में हुई सुनवाई; सरकार पर उठे कई सवाल

    Updated: Tue, 12 Aug 2025 03:48 PM (IST)

    पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार से हाई टेंशन बिजली लाइनों को स्थानांतरित करने में देरी पर जवाब मांगा है। नौ साल पुराने मामले में कोर्ट ने सरकार को तीन सप्ताह में स्थिति रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने बिजली कंपनियों के पुराने आंकड़ों पर भी सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि अवैध निर्माण हटाने की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए दोषारोपण नहीं।

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    हाई टेंशन बिजली तारों के मामले में सरकार की कार्यप्रणाली पर हाईकोर्ट ने उठाए सवाल। फाइल फोटो

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने नौ साल पुराने मामले में हरियाणा सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए तीन सप्ताह के भीतर हाई टेंशन बिजली लाइनों के स्थानांतरण पर ताजा स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। यह मामला 2016 से लंबित है, पानीपत का एक बच्चा जो घर की छत पर से जा रही ओवरहेड वायर्स की चपेट में आने से बुरी तरह से जख्मी हो गया था।

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    जिससे वह अपने हाथ-पांव से पूरी तरह से दिव्यांग हो गया था। समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार पर हाईकोर्ट ने संज्ञान लेकर सुनवाई शुरू की थी। चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस संजीव बेरी की खंडपीठ नगर निगम क्षेत्रों के रिहायशी इलाकों के ऊपर से गुजरने वाली बिजली की ओवरहेड लाइनों को हटाने संबंधी याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

    कोर्ट ने पाया कि राज्य की दो बिजली वितरण कंपनियों दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम और उत्तर हरियाणा बिजली वितरण निगम ने 2025 में जो आंकड़े दिए, वे 2022 में दाखिल आंकड़ों से बिल्कुल मेल खाते हैं। दोनों वर्षों में 33 केवी लाइनों के मामले में स्थिति 90 चिन्हित, 58 हटाई गईं, 32 लंबित ही बनी रही।

    कोर्ट ने तर्क दिया कि यह महज पुराने आंकड़ों की कापी है और 11 केवी लाइनों का डेटा भी नहीं दिया गया। सुनवाई में यह भी सामने आया कि शहरी स्थानीय निकाय निदेशक ने 60 नगरपालिकाओं में 74,232 संरचनाएं बिजली लाइनों के नीचे होने की रिपोर्ट दी है। बिजली वितरण निगम का कहना था कि अवैध निर्माण हटाने की जिम्मेदारी नगरपालिकाओं की है, जबकि नगर निकायों का कहना था कि बिजली कनेक्शन बिना अनुमोदित भवन योजना देखे नहीं दिए जाने चाहिए थे।

    चीफ जस्टिस ने टिप्पणी की, 'आप एक ही सरकार का हिस्सा हैं, बैठकर समाधान निकालें, यह दोषारोपण बंद होना चाहिए।' कोर्ट ने यह भी याद दिलाया कि 2016 में ही राज्य नीति के तहत 33 केवी और उससे ऊपर की लाइनों को बिना कॉलोनियों से शुल्क वसूले हटाने का निर्णय हो चुका था, जिसके लिए धनराशि हरियाणा बिजली विनियामक आयोग से आवंटित होनी थी।

    हालांकि, हरियाणा बिजली विनियामक आयोग ने स्पष्ट किया कि वह केवल टैरिफ और धनराशि की स्वीकृति देता है, खुद स्थानांतरण का काम नहीं करता।

    कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अतिरिक्त मुख्य सचिव (बिजली) को व्यापक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया और भविष्य की नीति में यह सुनिश्चित करने को कहा कि बिना स्वीकृत भवन योजना और सुरक्षित दूरी के कोई बिजली कनेक्शन जारी न किया जाए। इसी के साथ कोर्ट ने मामले की सुनवाई तीन सप्ताह तक स्थगित कर दी।