डेरा प्रमुख की यौनशोषण की शिकार दो दर्जन लड़कियों तक पहुंच गई थी सीबीआइ
1999 से 2001 के बीच डेरा 24 लड़कियां छोड़कर गई थी। हालांकि इनमें से डेरा प्रमुख से टकराने के लिए दो ही लड़कियां तैयार हुई। उन्हीं के बयानों के आधार पर आज डेरा प्रमुख सलाखों के पीछे पहुंचा है।
चंडीगढ़ [अनुराग अग्रवाल]। साध्वी यौनशोषण केस की तह तक पहुंचने के लिए सीबीआइ ने 24 ऐसी साध्वियों को ढूंढ निकाला था, जो राम रहीम के यौनशोषण की शिकार हुई थी। इन सभी ने 1999 से 2001 के बीच डेरा छोड़ दिया था। सीबीआइ ने दो साल में 24 लड़कियों द्वारा डेरा छोड़ने का कारण जानने की तह में जाते हुए इनका रिकॉर्ड जुटाया और उनके घर पहुंची। उनके बयान के बाद केस की परतें खुलनी शुरू हो गईं।
इन लड़कियों ने डेरा छोड़ने के बाद अपने परिजनों और रिश्तेदारों को भी डेरे में हुई ज्यादती की जानकारियां दी थीं। बावजूद इसके तीन लड़कियों को गुरु के प्रति आस्था का हवाला देते हुए उनके मां-बाप ने उन्हें वापस डेरे में भेज दिया। तीन लड़कियां बाद में गायब भी हुई। उनका आज तक पता नहीं है।
सीबीआइ के डीएसपी सतीश डागर ने इन लड़कियों को डेरा प्रमुख के खिलाफ खुलकर आने के लिए मानसिक रूप से तैयार करने की कोशिश की, लेकिन कुरुक्षेत्र और फतेहाबाद की दो लड़कियां ही सामने आई। बाकी 16 में से कुछ शादी हो चुकी थी और कुछ के रिश्ते तय हो गए थे। इसलिए उन्होंने गवाह के रूप में सामने आने से इन्कार कर दिया था।
सीबीआइ के अफसरों के सामने इन लड़कियों ने कुरुक्षेत्र और फतेहाबाद की लड़कियों द्वारा लगाए गए यौन शोषण के आरोपों की पूरी तरह से पुष्टि की। अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग देने की भी बात कही, लेकिन गवाह बनने से इन्कार कर दिया। यदि सभी लड़कियां उसके खिलाफ गवाही देती तो गुरमीत जेल की सलाखों से कभी बाहर न निकल पाता।
पंचकूला से पहले सीबीआई कोर्ट अंबाला में थी। डेरा प्रमुख के खिलाफ मोर्चा खोलने वाली दोनों गुमनाम लड़कियों को वहां गुपचुप कड़ी सुरक्षा में लाया जाता था। इन दोनों लड़कियों ने अप्रैल 2002 में अलग-अलग गुमनाम पत्र प्रधानमंत्री को लिखे थे, जिसके आधार पर यह केस कुछ माह बाद ही सीबीआइ को सौंप दिया गया। सीबीआइ के अफसरों ने करीब पांच साल की लंबी जांच के बाद 31 जुलाई 2007 को विशेष अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया था। उसके बाद दस साल तक कोर्ट में केस चला।
गुमनाम पत्र लिखने वालीं दोनों लड़कियों की आपबीती एक जैसी
सीबीआइ के डीएसपी सतीश डागर ने इस केस को अंजाम तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई। सीबीआइ ने अपनी रिपोर्ट में अदालत में दलील दी कि दोनों गुमनाम लड़कियों के पत्र में जो आपबीती लिखी गई है, वह लगभग एक समान है। दो अलग-अलग जगह पर रहने वाली लड़कियों की आपबीती एक जैसी नहीं हो सकती। इसलिए डेरा प्रमुख पर लगे आरोप सच हैं।
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