'पूर्व जन्म के संचित कर्म से मिलती है मनुष्य योनि'
संवाद सहयोगी, पलवल : वैदिक विद्वान आचार्य हरिश्चंद्र शास्त्री ने कहा है कि जीव को पूर्व जन्म के स
संवाद सहयोगी, पलवल : वैदिक विद्वान आचार्य हरिश्चंद्र शास्त्री ने कहा है कि जीव को पूर्व जन्म के संचित कर्मों के आधार पर योनि प्राप्त होती है। संचित शुभकर्मों के आधार पर ही मनुष्य योनि प्राप्त होती है। यदि पूर्व जन्मों में श्रेष्ठ कर्म नहीं होते तो निकृष्ट कर्मों के अनुसार कीट, पतंग, जीव, जंतु, जलचर, थलचर, पशु, पक्षी, वृक्षादि योनियों में जाना पड़ता है। हमने श्रेष्ठ कर्म किए थे, इसलिए हमें मानव का जीवन प्राप्त हुआ। जीव जैसा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल मिलता है। इसलिए हमें शुभ कर्म करने चाहिए, अशुभ नहीं।
शास्त्री आर्य समाज आदर्श कालोनी के तत्वावधान में आयोजित सतसंग कार्यक्रम में प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि शुभ व अशुभ कर्मों का फल अवश्य भोगना पड़ेगा। किया हुआ अशुभ कर्म कभी माफ नहीं होता। तीर्थ यात्रा, नदी स्नान आदि कर्म करने से ईश्वर अशुभ कर्मों को माफ नहीं करता। यदि ईश्वर किसी के अशुभ कर्मों को माफ करने लगे तो उन पर अन्याय व पक्षपात करने का आरोप लग जाएगा। मनुष्य का अधिकार केवल कर्म करना है, फल देना परमात्मा का अधिकार है।
जप, तप, दान, पुण्य, यज्ञ आदि कार्यों को करने से व्यक्ति के चित की दूषित प्रवृतियों का निरोध होता है और मन की वृति श्रेष्ठ होकर व्यक्ति को श्रेष्ठ कर्मों की ओर प्रेरित करती है। पूर्व जन्म में किए गए श्रेष्ठ संचित कर्म और इस जन्म में किए कर्म से शुभ-अशुभ भाग्य का सर्जन होता है। इसी कारण जीवन में सुख व दुख आते हैं। उन्होंने कहा कि श्रेष्ठ कर्म दो प्रकार के होते हैं। एक सकाम और दूसरा निष्काम कर्म। सकाम कर्म करने से व्यक्ति को वर्तमान जीवन में फल प्राप्त होता है और निष्काम करने से भविष्य का निर्माण होता है। शास्त्रों ने श्रेष्ठ कर्म को ही धर्म माना है। सकाम कर्मों में गौ-पालन, दाग लगाना, अन्न की उत्पत्ति आदि कार्य करना है। निष्काम कर्म में पूआ, प्याऊ, धर्मशाला, पाठशाला, असहाय एवं निर्धन की सहायता औषधालाय तथा परोपकार के काम शामिल है। इन कर्मों के करने से मनुष्य को अगले जन्म का भाग्य प्राप्त होता है। इन्हीं को संचित कर्म कहते हैं।
इस अवसर पर समाज के प्रधान ज्ञानचंद शर्मा, नारायण ¨सह आर्य, अशोक पाराशर, वीर ¨सह आर्य,साधुराम सैनी, विजयपाल, परमानंद आर्य, रामजीलाल रावत, उदयराज, तुलाराम आर्य मौजूद थे।
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