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    नूंह में प्रदूषण का कहर, कागजों में सिमटी कार्रवाई; जमीनी हकीकत ने चौंकाया

    Updated: Mon, 22 Dec 2025 04:57 PM (IST)

    नूंह जिले में प्रदूषण नियंत्रण के प्रयास कागजों तक ही सीमित रहे। कोयला भट्टियों, बूचड़खानों और क्रशर प्लांटों से निकलने वाले धुएं ने लोगों के स्वास्थ् ...और पढ़ें

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    जमीनी स्तर पर हालात जस के तस। जागरण

    शेर सिंह चांदोलिया, नूंह। पूरे साल भर प्रदूषण नियंत्रण की बातें होती रहीं, बैठकों में योजनाएं बनीं, फाइलों में कार्रवाई दर्ज हुई, मगर जमीनी स्तर पर हालात जस के तस रहे।

    नूंह जिले में कोयला भट्टियों से लेकर बूचड़खानों, क्रशर प्लांट, अवैध ढाबों में जलते तंदूर और पनीर की अवैध डेयरियों से निकलता धुआं लोगों की सांसों में जहर घोलता रहा। हालत यह रहे कि गांवों व कस्बों में सुबह-शाम धुएं और बदबू से सामान्य जीवन तक प्रभावित रहा।

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    वहीं, लोगों की माने तो प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और प्रशासन द्वारा छापामारी और कार्रवाई की बातें सिर्फ कागजों तक सीमित रहीं। जमीन पर कहीं भी सख्ती नहीं दिखी, जिसका खामियाजा यहां की हवा, पानी, मिट्टी ने झेला और स्वास्थ्य झेल रहा है।

    जिले में लंबे समय से चल रहे कोयला भट्टियों व क्रशर संयंत्रों ने किसानों की फसलों पर सीधा असर डाला। धूलकण और रसायनों के प्रभाव से लगभग 60 से 70 प्रतिशत तक कृषि उत्पादन प्रभावित हुआ। साल भर में जितने भी प्रदूषण के स्रोत सक्रिय रहे, उनमें सरकारी नियमों और लाइसेंस की व्यवस्था महज एक औपचारिकता बनकर रह गई।

    नियमों को ताक पर रखकर चल रहे बूचड़खाने और अवैध भट्टियों ने क्षेत्र को प्रदूषण की दलदल में धकेल दिया। इसके अलावा पुन्हाना में लगी अवैध आरा मशीनों और कोयला भट्टी पर नष्ट होने वाले पेड़ों से पर्यावरण को भारी खतरा पैदा हो रहा है।

    प्रदूषण फैलाने वाले प्रमुख स्रोत

    बूचड़खाने सड़ांध और जहरीला धुआं बिना मानकों के चल रहे बूचड़खानों से बड़ी मात्रा में धुआं और गंध उत्पन्न होती है। पशुओं के अवशेष पूरे साल मांस के अवशेषों को खुले में फेंके जाते रहे हैं। हवा में बदबू और हानिकारक गैसें खूब फैलती रही हैं, जल और मिट्टी तो प्रदूषित हुई ही है साथ में, मांसाहारी आवारा कुत्तों की संख्या बढ़ी। जिन्होंने हजारों लोगों को घायल किया और बीमारी फैलने का खतरा बढा। जिससे आसपास रहने वालों का जीवन पूरे साल बीमारियों के घेरे में रहा।

    अवैध कोयला भट्टियों से नुकसान

    जिले में बिना मानकों के संचालित अवैध कोयला भट्टियों से निकलने वाला काला धुआं पर्यावरण पर खतरा बढ़ा रहा है। पुन्हाना में बड़ी संख्या में अवैध आरा मशीने और कोयला भट्टियां चलती हैं। जिनसे अवैध पेड़ों की कटाई, काला धुआं फेफड़ों में नुकसान से सांस व हृदय रोग, मिट्टी की ऊपज क्षमता घट रही है। वायु गुणवत्ता बेहद खराब होती रही।

    क्रशर प्लांट भी कम नहीं

    फिरोजपुर झिरका, तावडू और पुन्हाना में संचालित क्रशर मशीनों से निकले धूलकण हवा में फैलकर गंभीर स्थिति पैदा कर रहे हैं। जिससे दमा, टीबी, फेफड़ों के रोग बढ़ते खेतों की फसल व पेड़ों पर 70 प्रतिशत तक प्रभाव पड़ा। क्रशर प्लांटों से उडने वाली धूल के कण फसलों के ऊपर जमकर उन्हें भी नष्ट करने का काम कर रहे हैं।

    तंदूर और अवैध ढाबे से नुकसान

    अवैध ढाबों में बने तंदूर ने साल भर खूब प्रदूषण छोड़ा। इनसे वायु में जहरीला धुआं और कई प्रकार की जहरीली गैस का उत्सर्जन कर वायु में खूब जहरीले कण छोड़े। जिससे सीधा लोगों के स्वास्थ्य पर खतरा बढ़ाया। सालभर लोग इन पर कार्रवाई की मांग करते हुए लेकिन पूरा साल बीत गया, मगर कार्रवाई नहीं हो पाई।

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    प्रदूषण फैलाने वाले कारखानों पर कड़ी नजर है, नियमों के विरुद्ध चलने वाले कई पर कार्रवाई हुई है। आगे भी होती रहेगी। बूचड़खानों की भी जल्द जांच होगी। - मनीष कुमार, एसडीओ प्रदूषण विभाग नूंह