बूचड़खानों की गंदगी से मंडराया बड़ा खतरा, दहशत में कई गांवों के लोग; पढ़िए पूरी रिपोर्ट
नूंह जिले में बूचड़खानों के नजदीक रहने वाले लोग चर्म रोग से परेशान हैं खासकर बच्चे। ग्रामीणों का आरोप है कि बूचड़खानों की गंदगी और अवशेषों के खुले में फेंके जाने से वातावरण दूषित हो रहा है जिससे यह बीमारी फैल रही है। लोगों ने प्रशासन से बूचड़खानों पर कार्रवाई करने और स्वास्थ्य विभाग से जांच कराने की मांग की है ताकि समस्या का समाधान हो सके।

शेरसिंह चांदोलिया, नूंह। नूंह जिले में गांवों के समीप चल रहे बूचड़खानों का दुष्प्रभाव अब लोगों की सेहत पर साफ नजर आने लगा है। बूचड़खानों की गंदगी से जहां वातावरण खराब हो रहा है, वहीं लोग चरम राेग की चपेट में भी आने लगे हैं। इसका सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव बच्चों पर पड़ रहा है।
वहीं, बूचड़खानों के आसपास के गांवों में फैल रहे चर्म रोग को लेकर लोगों डरे हुए हैं। लेकिन पर्यावरण की दृष्टि से आबोहवा खराब कर रहे बूचड़खानों के नियमों पर प्रशासन को कोई ध्यान नहीं। हालांकि, यहां के लोग पिछले कुछ समय से बूचड़खानों को लेकर लामबंद भी होने लगे हैं।
गांव खेड़ली कलां, रानीका और नाई नंगला सहित आसपास के कई गांवों में चर्म रोग तेजी से फैल रहा है। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित बच्चे हो रहे हैं, जिनके चेहरे और शरीर पर चर्म रोग के गंभीर निशान दिखाई दे रहे हैं। खेड़ली कलां निवासी लव कुमार पुत्र सुंदर, रानीका के अदनान खान और नाई नंगला के ओमेर पिछले लंबे समय से इस बीमारी से पीड़ित हैं।
परिजनों का कहना है कि उन्होंने कई डॉक्टरों से इलाज कराया, लेकिन दवा असर नहीं करती हैं। ये बीमारी बार-बार बच्चों में अपनी पकड़ बना रही है। स्थानीय लोगों का मानना है कि यह सब क्षेत्र में चल रहे बूचड़खानों की देन है।
वहीं, क्षेत्र के सुंदर, महबूब, इब्राहिम, इस्माइल, फारूक सहित दर्जनों ग्रामीणों का कहना है कि बूचड़खानों से निकलने वाले अवशेष और गंदगी से वातावरण दूषित हो चुका है। बदबू और मांस के कचरे ने न केवल वातावरण को बिगाड़ा है, बल्कि उससे निकलने वाले जीवाणु और विषाणु अब लोगों की त्वचा तक पहुंचकर उन्हें बीमार कर रहे हैं।
ग्रामीणों ने प्रशासन से मांग की है कि जल्द से जल्द इन बूचड़खानों पर रोक लगाई जाए और स्वास्थ्य विभाग इस पर गंभीरता से संज्ञान ले। यदि समय रहते कार्रवाई नहीं की गई तो आने वाले दिनों में हालात और भी भयावह हो सकते हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि इन बूचड़खानों से, अब बच्चों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव देखने को मिल रहा है। प्रशासन यदि अब भी नहीं जागा तो यह चर्म रोग केवल एक बीमारी नहीं, बल्कि एक गंभीर बीमारी का रूप ले सकता है।
क्यों हो रहा है वातावरण खराब
स्थानीय लोगों ने बताया कि जिले में करीब आठ बूचड़खाने चल रहे हैं। हालांकि, इन आठों बूचड़खानों को प्रशासनिक स्वीकृति मिली हुई है। लेकिन बूचड़खानों के संचालन में नियमों की अवेहलना हो रही है। आरोप है कि बूचड़खानों के गंदगी को खुले में डाला जा रहा है। गंदगी ले जाते समय मांस के अवशेष जगह-जगह फेंके जा रहें हैं।
यह भी पढ़ें- सिस्टम से सीधा सवाल? 96 गांवों से जुड़े CHC में 16 सालों से क्यों ठप पड़ी एक्स-रे की सुविधा
बताया गया कि खून को खुले में बहाया जा रहा है। जिससे न केवल वातावरण दूषित हो रहा है, बल्कि लोगों में चर्म रोग तथा किसानों की भूमि की उपजाऊ शक्ति भी कम हो रही है। मामले को लेकर कई बार पर्यावरण जिला अधिकारी आकांशा तंवर से फोन पर बात की गई। लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया।
चर्म रोग होने के कई कारण हो सकते हैं। लोगों की मांग पर गांव में जल्द जांच शिविर लगाए जाएंगे। ताकि हर मरीज का सही इलाज हो सके और यह भी पता लगाया जा सके कि आखिरकार किन कारणों से यह चरम रोग की बीमारी फैल रही है। - डॉक्टर, सर्वजीत कुमार, सिविल सर्जन नूंह
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।