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    ढोसी का पहाड़ः यहां आज भी जिंदा हैं सतयुग के सबूत!, महर्षि च्यवन ने की थी कैर के नीचे तपस्या

    By Mangal YadavEdited By:
    Updated: Fri, 21 Aug 2020 06:40 PM (IST)

    नरसिंहदास महाराज ने बताया कि मुनि च्यवन का जिक्र श्रीमद्भागवत में भी आता है। उन्होंने ढोसी के पहाड़ पर कैर के पेड़ के नीचे बैठकर तपस्या की थी। ...और पढ़ें

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    ढोसी का पहाड़ः यहां आज भी जिंदा हैं सतयुग के सबूत!, महर्षि च्यवन ने की थी कैर के नीचे तपस्या

    नारनौल [बलवान शर्मा]। नारनौल शहर से करीब दस किलोमीटर दूर स्थित ढोसी का पहाड़ कोई परिचय का मोहताज नहीं है। आर्युवेद के आचार्य मुनि भृगु के पुत्र च्यवन ऋषि ने इसी पहाड़ पर तपस्या की थी और च्यवनप्राश नामक औषधि बनाई थी। ऋषि च्यवन के मंदिर की देखरेख में जुटे नरसिंहदास महाराज की मानें तो कैर का वह पेड़ आज भी इस पहाड़ पर मौजूद है। इस पेड़ को उन्होंने दैनिक जागरण की टीम को भी दिखाया। खैर यहां तार्किक लोग पेड़ के साइज और उमर को लेकर भले ही विश्वास न करें पर नरसिंहदास महाराज व उनके सेवकों का दावा तो यहीं है।

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    आयुर्वेद के आचार्य ये है

    अश्विनीकुमार, धन्वंतरि, दिवोदास (काशिराज), नकुल, सहदेव, अर्कि, च्यवन, जनक, बुध, जावाल, जाजलि, पैल, करथ, अगस्त्य, अत्रि तथा उनके छः शिष्य (अग्निवेश, भेड़, जतुकर्ण, पराशर, सीरपाणि, हारीत), सुश्रुत और चरक।

    महर्षि च्यवन को लेकर भागवत में है ये कथा

    मुनि च्यवन को तप करते-करते उन्हें हजारों वर्ष व्यतीत हो गये। यहां तक कि उनके शरीर में दीमक-मिट्टी चढ़ गई और लता-पत्तों ने उनके शरीर को ढक लिया। उन्हीं दिनों राजा शर्याति अपनी चार हजार रानियों और एकमात्र रूपवती पुत्री सुकन्या के साथ इस वन में आये।

    सुकन्या अपनी सहेलियों के साथ घूमते हुये दीमक-मिट्टी एवं लता-पत्तों से ढंके मुनि च्यवन के पास पहुंच गई। उसने देखा कि दीमक-मिट्टी के टीले में दो गोल छिद्र दिखाई पड़ रहे हैं। सुकन्या ने कौतूहलवश उन छिद्रों में कांटे गड़ा दिये, जो कि मुनि की आंखें थीं। कांटों के गड़ते ही उन छिद्रों से रक्त बहने लगा। इसे देखकर सुकन्या भयभीत हो चुपचाप वहां से चली गई ।राजा ने पश्चाताप स्वरूप अपनी बेटी का विवाह महर्षि च्यवन के साथ कर दिया।

    नरसिंहदास महाराज ने बताया कि मुनि च्यवन का जिक्र श्रीमद्भागवत में भी आता है। उन्होंने ढोसी के पहाड़ पर कैर के पेड़ के नीचे बैठकर तपस्या की थी। यहां पर करीब 8 सौ साल पुराना उनका मंदिर बना हुआ है।

     

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