पोक्सो एक्ट में दोषी को 10 साल की सजा, अदालत ने दो साथियों क्यों किया बरी?
महेंद्रगढ़ जिले में पोक्सो एक्ट के तहत मोनू नामक एक युवक को 10 साल की सजा सुनाई गई है। उस पर 10 वर्षीय लड़की के साथ दुष्कर्म का प्रयास करने का आरोप था। अदालत ने दो अन्य आरोपियों को बरी कर दिया। पीड़िता को मुआवजे के तौर पर एक लाख रुपये देने का भी आदेश दिया गया है। यह फैसला कनीना थाना क्षेत्र से संबंधित है।

जागरण संवाददाता, नारनौल। नारनौल में जिला एवं अतिरिक्त न्यायाधीश केपी सिंह की अदालत ने मंगलवार को कनीना थाना के तहत आने वाले कपूरी गांव के मोनू नामक एक युवक को पोक्सो एक्ट में 10 साल की सजा सुनाई है, जबकि दोषी के दो साथियों को इस मामले में बरी किया गया है।
बताया गया कि बरी किए गए आरोपियों का इस कृत्य में शामिल न होना पाया गया, जिसकी वजह से अदालत ने उनके प्रति नरम रुख रखते हुए उन्हें इस मामले से बरी किया है। इस मामले में जानकारी देते हुए 10 वर्षीय नाबालिग पीड़िता के अधिवक्ता नरेंद्र सिंह एडवोकेट गुवानी वाले ने बताया कि रेवाड़ी जिले की दो नाबालिग बच्चियां जिनकी उम्र 10 साल और 6 साल थी।
बताया कि जिला महेंद्रगढ़ के एक गांव कपूरी में कॉपी किताब लेने जा रही थी। उस दौरान कपूरी गांव के तीन लड़के मोटरसाइकिल पर उन्हें मिले। जिनमें से मोनू नाम के एक लड़के ने 10 वर्षीय लड़की को उठाकर पड़ोस के सरसों के खेतों में ले जाकर उससे दुष्कर्म का प्रयास किया और उसके चेहरे पर मुंह से काट खाया।
इस मामले को लेकर कनीना थाना में 28 जनवरी 2024 को कपूरी गांव के उन तीनों लड़कों पर पोक्सो एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था। मामला नारनौल के अतिरिक्त एवं सत्र न्यायाधीश केपी सिंह की कोर्ट में चला। जिसकी सुनवाई करते हुए मोनू नाम के एक युवक गत 19 सितंबर 2025 को अदालत ने दोषी करार दिया गया और फैसले की तिथि मंगलवार 23 सितंबर रखी गई थी।
वहीं, मंगलवार को इस मामले में अपना फैसला देते हुए अदालत ने दोषी मोनू को 10 साल की सजा सुनाई एवं 75 हजार 500 रुपए का जुर्माना भी किया है। अदालत ने अपने फैसले में पीड़िता को एक लाख रुपये का आर्थिक मुआवजा भी देने की आदेश दिए हैं, जो जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की तरफ से पीड़िता को दिया जाएगा।
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पीड़िता के अधिवक्ता नरेंद्र सिंह एडवोकेट ने यह भी बताया कि इस मुकदमे में एक खास बात यह भी देखने को मिली कि मौके का गवाह आरोपितों के गांव का ही होने की वजह से उसके बयान आरोपित के पक्ष करते नजर आए लेकिन मामले की संवेदनशीलता और क्रास सवालों के चलते उसके बयान भी आरोपित को नहीं बचा पाया। केस के पहलुओं को बारीकी से देखते हुए कोर्ट ने पीड़िता को राहत दी तथा ठोस दलीलों के आधार पर दोषी को 10 साल की सजा सुनाई है।
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