बिगड़ी टीबी रोगियों की जांच होगी भिवानी में
राजकुमार, नारनौल : जिला महेंद्रगढ़ के तपेदिक रोगियों के लिए राहत भरी खबर है। बिगड़ी टीबी की जांच क
राजकुमार, नारनौल : जिला महेंद्रगढ़ के तपेदिक रोगियों के लिए राहत भरी खबर है। बिगड़ी टीबी की जांच के इलाज के लिए अब उन्हें रोहतक नहीं जाना पड़ेगा। सरकार द्वारा भिवानी के अस्पताल में इसकी जांच की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएगी और एक माह के अंदर ही करोड़ों की लागत से मंगवाई गई सीबीएनएएटी मशीन काम करना शुरू कर देगी।
टीबी रोग से जिला महेंद्रगढ़ भी जकड़ा हुआ है। हर साल 1200-1500 मरीज इलाज के लिए आते हैं। इस समय जिले में 50 केस एमडीआर तथा तीन केस एक्सट्रीम ड्रग रेजिसटेंट के हैं। ऐसे में जिला महेंद्रगढ़ के लोगों को इसके प्रति सावधान होने की जरूरत है।
वैसे स्वास्थ्य विभाग टीबी पर नियंत्रण पाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है, मगर जब तक लोगों का पूरा सहयोग नहीं मिलेगा, इस पर काबू पाना नामुमकिन नजर आता है।
10 जगहों पर होती है जांच
इस समय महेंद्रगढ़ जिले में 10 जगहों पर टीबी जांच की सुविधा मौजूद है, जिनमें जिला क्षय रोग केंद्र नारनौल, नांगल चौधरी, अटेली, सिहमा, कनीना, सेहलंग, नांगल सिरोही, महेंद्रगढ़ एवं सतनाली शामिल हैं।
डाट्स के तहत होता है इलाज :
टीबी सामने आने पर डाट्स कार्यक्रम के तहत डाट प्रोवाइडर की देखरेख में इसका उपचार किया जाता है। टीबी को अलग-अलग श्रेणियों में बांटा गया है। पहली श्रेणी में 6 से 9 माह तक इलाज चलता है। दूसरी श्रेणी में 8 माह इलाज चलता है। तीसरी श्रेणी में बिगड़ी टीबी आती है। बिगड़ी टीबी यानि एमडीआर यानि मल्टी ड्रक रेजिसटेंट के रोगी का दो से ढाई साल तक इलाज चलता है।
बिल्कुल फ्री होती है जांच एवं उपचार
सरकार टीबी नियंत्रण पर पूरा ध्यान दे रही है। सरकार टीबी की जांच एवं उपचार का कोई पैसा नहीं लेती तथा सरकारी अस्पतालों में इसके पूर्ण इलाज की निश्शुल्क सुविधा मौजूद है। बशर्ते रोगी ठीक होने का जज्बा रखता हो। रोगी लापरवाही न बरते तो वह बिल्कुल ठीक भी हो सकता है। सरकार ने एमडीआर एवं एक्सडीआर रोगियों के लिए चिकित्सक की परामर्श अनुसार अस्पताल तक एक सहायक का किराया तक देती है।
अब भिवानी में होगी जांच
एमडीआर एवं एक्सडीआर रोगियों की जांच के लिए पहले रोगियों को रोहतक जाना पड़ता था। अब नारनौल के रोगियों को एक माह बाद जांच सुविधा भिवानी में मिलेगी। इससे सफर की दूरी कम हो जाएगी और नारनौल के रोगियों को इसका लाभ मिलेगा। इस किस्म के रोगियों का बड़ा महंगा इलाज होता है, मगर सरकार एक-डेढ़ लाख रुपये का बिल्कुल फ्री इलाज दे रही है। इसमें मरीज की पर्ची, इलाज, जांच एवं आने-जाने का किराया तक सरकार वहन करती है।
कैसे फैलता है टीबी :
टीबी का पूरा नाम है ट्यूबरकुल बेसिलाइ है। यह एक छूत का रोग है और इसे प्रारंभिक अवस्था में ही न रोका गया तो जानलेवा साबित होता है। यह व्यक्ति को धीरे-धीरे मारता है। टीबी रोग को अन्य कई नाम से जाना जाता है। जैसे तपेदिक, क्षय रोग तथा यक्ष्मा। तपेदिक एक आम और कई मामलों में घातक संक्रामक बीमारी है, जो माइक्रोबैक्टीरिया से फैलती है। यह रोग आमतौर पर फेफड़ों पर हमला करता है, लेकिन यह शरीर के अन्य भागों को भी प्रभावित कर सकता है। यह हवा के माध्यम से तब फैलता है, जब टीबी संक्रमण से ग्रसित लोग खांसते व छींकते हैं। सांस के जरिए भी यह बीमारी फैलती है। यह बीमारी छूत की बीमारी है और संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने पर स्वस्थ व्यक्ति को भी हो जाती है। इसी कारण टीबी रोगी का रहन-सहन परिवार से बिल्कुल अलग होना चाहिए और उसके कपड़े वगैरा भी दूसरों को इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
टीबी के लक्षण
थूक में या खांसी में खून आना टीबी का सबसे बड़ा लक्षण है। बार-बार बुखार आना, रात को पसीना आना और वजन घटना भी टीबी का लक्ष्ण है। सक्रिय टीबी का निदान रेडियोलोजी, आमतौर पर छाती का एक्स-रे के साथ-साथ माइक्रोस्कोपिक जांच तथा बलगम की जांच पर निर्भर करता है। भीतरी या छिपी टीबी का निदान ट्यूबरक्यूलाइन त्वचा परीक्षण और रक्त परीक्षणों पर निर्भर करता है। उपचार मुश्किल है और इसके लिए समय की एक लंबी अवधि में कई एंटीबायोटिक दवाओं के माध्यम से उपचार की आवश्यकता पड़ती है।
टीबी रोगी का एचआइवी एवं शुगर टेस्ट जरूरी
जब किसी को टीबी सुनिश्चित कर दी जाती है तो उसका एचआइवी यानि एड्स तथा शुगर टेस्ट अनिवार्य है, ताकि मरीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता का आकलन किया जा सके।
दुनिया में छह-सात करोड़ टीबी के मरीज
दुनिया में छह-सात करोड़ लोग इस बीमारी से ग्रस्त हैं और प्रत्येक वर्ष 25 से 30 लाख लोगों की इससे मौत हो जाती है। देश में हर तीन मिनट में दो मरीज क्षयरोग के कारण दम तोड़ देते हैं। हर दिन चालीस हजार लोगों को इसका संक्रमण हो जाता है।
''टीबी रोग घातक है। मगर इसका पूरा इलाज लेकर इस पर काबू पाया जा सकता है। रोगी को दवा लेने पर थोड़ा-बहुत आराम मिलते ही वह इलाज छोड़ देता है। यह घोर लापरवाही उसके सामने बाद में बिगड़ी टीबी के रूप में सामने आती है। मरीज को पूरा इलाज लेना चाहिए और दवा बीच में नहीं छोड़नी चाहिए।
-डा.अशोक कुमार, जिला क्षय रोग अधिकारी, नारनौल।
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