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    पंजाब के साथ टकराव का राजनीतिक मुद्दा बनी एसवाईएल में आया पानी, दक्षिण हरियाणा को फायदा

    Updated: Sun, 07 Sep 2025 12:15 PM (IST)

    हरियाणा और पंजाब के बीच विवादित एसवाईएल नहर में पानी भर गया है हालांकि यह गाद युक्त है। यह मुद्दा दोनों राज्यों के लिए राजनीतिक रूप से संवेदनशील रहा है जिसने कई बार सरकारों को प्रभावित किया। दक्षिणी हरियाणा के किसानों को इससे लाभ होगा पर राजनितिक परिदृश्य को देखते हुए निकट भविष्य में इस मुद्दे का समाधान मुश्किल है।

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    पहाड़ों पर हुई बारिश की वजह से एसवाईएल में मिट्टी युक्त पानी बह रहा है, लेकिन पूरी भरकर चल रही।

    जीतेंद्र सिंह जीत, कुरुक्षेत्र। जिस सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर के पानी के मुद्दे को लेकर हरियाणा और पंजाब में राजनीतिक लड़ाई रहती है अब वह पानी से लबालब है। पहाड़ों पर हुई बारिश की वजह से गाद (मिट्टी) युक्त पानी बह रहा है, लेकिन नहर पूरी भरकर चल रही है। हालांकि हर साल बरसाती सीजन में पहाड़ों से पानी इसमें पहुंचता है, लेकिन इस बार कुछ ज्यादा बरसात होने के कारण इसमें भरपूर पानी आया है।

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    एसवाईएल में निरंतर पानी मिलने से सबसे अधिक फायदा दक्षिण हरियाणा के किसानों को होना है। फिलहाल दक्षिण हरियाणा के रेवाड़ी, नारनौल, महेंद्रगढ़, भिवानी, चरखी दादरी, मेवात जैसे इलाके रेड जोन में हैं भूजल की स्थिति बेहद चिंताजनक है। यदि एसवाईएल का पानी आता है तो दक्षिण हरियाणा में खेती को संजीवनी मिलेगी और प्रदेश की कृषि फसलों के उत्पादन में बेतहाशा वृद्धि होगी।

    क्या है एसवाईएल नहर विवाद

    सतलुज-यमुना लिंक नहर एक ऐसी परियोजना है, जिसका मकसद पंजाब की सतलुज नदी के पानी को हरियाणा की यमुना नदी से जोड़ कर हरियाणा के किसानों तक पानी पहुंचाना है। ये नहर 214 किलोमीटर लंबी होनी थी, जिसमें 122 किलोमीटर हिस्सा पंजाब में और 92 किलोमीटर हिस्सा हरियाणा में बनना था।

    नदी जल बंटवारे को लेकर विवाद 1966 में पंजाब-हरियाणा के अलग होने के बाद उभरा। हरियाणा ने पंजाब के कुल 8.9 अरब घन मीटर पानी के हिस्से में से 5.9 अरब घन मीटर पानी की मांग की थी, लेकिन पंजाब ने पूरे पानी पर अपना दावा किया था। इस मुद्दे पर दोनों राज्यों की सरकारों में आपसी टकराव जारी है। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा है।

    पंजाब विस ने रद किया था समझौता

    वर्ष 2002 और 2004 में सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब को अपने क्षेत्र में कार्य पूर्ण करने का निर्देश दिया। इसके बाद वर्ष 2004 में पंजाब विधानसभा ने पंजाब टर्मिनेशन आफ एग्रीमेंट्स एक्ट पारित कर दिया, जिससे जल-साझाकरण समझौता निरस्त हो गया और इस तरह पंजाब में सतलुज-यमुना लिंक का निर्माण बाधित हो गया। अभी यह राजीनितक मुद्दा खत्म नहीं हुआ है।

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