बेटियों को खेलों से न रखें वंचित : गगनदीप कौर
हाल में आस्ट्रेलिया से थ्री-नेशन खेलों में जीत कर लौटी भारतीय जूनियर महिला हॉकी खिलाड़ी गगनदीप कौर ने कहा कि बेटियों को खेलों से वंचित न रखें। आज बेटियां खेलों में देश का नाम रोशन कर रही हैं। शाहाबाद की महिला हॉकी खिलाड़ी पूरे विश्व का प्रसिद्ध हैं।
हाल में आस्ट्रेलिया से थ्री-नेशन खेलों में जीत कर लौटी भारतीय जूनियर महिला हॉकी खिलाड़ी गगनदीप कौर ने कहा कि बेटियों को खेलों से वंचित न रखें। आज बेटियां खेलों में देश का नाम रोशन कर रही हैं। शाहाबाद की महिला हॉकी खिलाड़ी पूरे विश्व का प्रसिद्ध हैं। यह इसलिए है कि शाहाबाद ने अपनी बेटियों को खेलों से वंचित नहीं रखा। शाहाबाद को अगर हॉकी का मक्का कहा जाए, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। महर्षि मारकंडेय की तपोभूमि ने देश को सैकड़ों खिलाड़ी दिए हैं और आज भी भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तानी शाहाबाद की रानी रामपाल कर रही हैं, जो गर्व की बात है। इसके अलावा देश की टीम में नवजोत कौर और नवनीत कौर भी शामिल हैं। गगनदीप कौर ने दैनिक जागरण के संवाद सहयोगी जतिद्र सिंह चुघ से विशेष बातचीत में अपने खेल जीवन के अनुभव को साझा किया। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश :
आपने हॉकी खेल की शुरुआत कब की?
पांचवीं कक्षा में पढ़ते हुए कोच बलदेव सिंह से हॉकी का प्रशिक्षण लेना शुरू किया। यह सफर बहुत अहम था। कड़े अभ्यास के बेहतरीन सफर की शुरुआत हुई है और भारतीय जूनियर टीम में रहते हुए प्रतिनिधित्व दिखाने का मौका मिला है, यहीं से आगे बढ़ने का प्रयास भी किया जाएगा।
हॉकी खेल में रुचि होने का क्या कारण है?
मेरा भाई ऊधमजीत सिंह कोच बलदेव सिंह के पास ही हॉकी का प्रशिक्षण प्राप्त कर रहा था। भाई ने जब देखा कि शाहाबाद की बेटियां हॉकी में इतना नाम रोशन कर रही हैं, उसने मुझे प्रोत्साहित किया। मैं भाई को रोल मॉडल मानते हुए हॉकी की शुरुआत की, जो एक जीवन की सबसे खूबसूरत और सही शुरुआत थी।
हॉकी के शुरुआत के बारे में क्या कहेंगी?
हॉकी की शुरुआत का अभ्यास किसी कमांडो ट्रेनिग से कम नहीं था। इस अभ्यास ने ही भारतीय टीम तक पहुंचाने का काम किया। हॉकी का जो अभ्यास हुआ निश्चित तौर पर वह अभ्यास आने वाले किसी भी अभ्यास से बड़ा है। यहां अभ्यास करने वाला खिलाड़ी जीवन की किसी भी परिस्थिति में विचलित नहीं हो सकता।
बेटियों को क्या संदेश देंगी?
इस बात की खुशी है कि मैं भी एक बेटी हूं। मेरा यही संदेश है कि जिस तरह से मेरे परिजनों ने मुझे खेलने का मौका दिया है। उसी तरह सभी परिजनों को चाहिए कि वह अपनी बेटियों को जाति-पाति या समाज के बंधन में न बांधकर उन्हें खेल और शिक्षा के रूपी आकाश में अपना दम दिखाने का मौका दें।
भविष्य की रूपरेखा क्या रहेगी।
भविष्य की रूपरेखा भारतीय सीनियर टीम में जाना है और रानी राम रामपाल की तरह देश की टीम की कप्तानी करना है। उन्होंने कहा कि वह कोच के मार्गदर्शन पर चलते हुए इस मुकाम को अवश्य हासिल करेंगी।
अपनी की सफलता का श्रेय किसे देंगी?
निश्चित तौर पर इसका श्रेय हॉकी द्रोच कोच बलदेव सिंह को जाता है, क्योंकि उनसे प्रशिक्षण की बदौलत ही भारतीय टीम में जाने का हिस्सा मिला और आरसीएफ में नौकरी मिली। ऐसे कोच की प्रशिक्षिकों और देश को नितांत आवश्यकता है।
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