कंपनी व साझेदारी फर्म में है कितना अंतर
करनाल, जागरण संवाद केंद्र : अगर कोई व्यक्ति अपना कारोबार अथवा व्यवसाय कंपनी या साझेदारी फर्म बनाकर करता है तो उसे मालूम होना चाहिए कि कंपनी और साझेदारी फर्म में अंतर क्या है। उनकी विशेषता क्या हैं। इस संदर्भ में अखिल भारतीय कर व्यवसायी संघ के सदस्य शक्ति सिंह एडवोकेट ने बताया कि कंपनी की विशेषताओं के कारण वह साझेदारी फर्म से कहीं अलग होती है, किंतु साझेदारी फर्म की भी अपनी अलग विशेषता होती है। कंपनी और साझेदारी फर्म बनाने के लिए अलग-अलग लाभ हैं। इनमें निम्न प्रमुख अंतर हैं।
कंपनी का अस्तित्व सदस्यों से अलग होता है, जबकि साझेदारी में फर्म का अस्तित्व सदस्यों से अलग नहीं होता।
कंपनी की संपत्तियों पर उसके सदस्यों का कोई व्यक्तिगत अधिकार नहीं रहता है, जबकि फर्म की संपत्तियों पर साझेदारों का व्यक्तिगत अधिकार रहता है।
साझेदारी फर्म का लेनदार फर्म का तथा सभी साझेदारों का व्यक्तिगत लेनदार भी रहता है। अगर फर्म उसका भुगतान नहीं करती है तो वह साझेदारों की व्यक्तिगत संपत्तियों पर भी अपना दावा कर सकता है, परंतु कंपनी का लेनदार उसके सदस्यों की व्यक्तिगत संपत्तियों पर अपना दावा नहीं कर सकता।
एक साझेदार अपनी फर्म के साथ कोई अनुबंध नहीं कर सकता, जबकि कंपनी अपने सदस्यों के साथ कानूनन अनुबंध कर सकती है।
साझेदार अपना हिस्सा अन्य सभी साझेदारों की अनुमति के बिना किसी तीसरे व्यक्ति को बेच नहीं सकता। कंपनी का सदस्य अपने हिस्से के अंश को अपनी इच्छानुसार किसी भी व्यक्ति को बेच सकता है। हालांकि एक निजी कंपनी में इस पर भी कुछ प्रतिबंध हैं।
कोई साझेदार फर्म की संपत्तियों का निपटारा कर सकता है, अर्थात उन्हें फर्म के लिए बेच सकता है, खरीद सकता है, जबकि एक कंपनी का सदस्य ऐसा नहीं कर सकता।
कंपनी की स्थिति में दायित्व सामान्यत: सीमित होता है, जबकि फर्म का दायित्व हमेशा असीमित ही रहता है। फर्म के साझेदार का दायित्व सीमित नहीं हो सकता।
साझेदारों के बीच उनका समझौता उनके बीच का प्रपत्र होता है। आम जनता का इस समझौते से कोई मतलब नहीं रहता, जबकि कंपनी की स्थिति में उनके बीच का समझौता सार्वजनिक प्रपत्र होता है। जनता व कंपनी के बीच संबंधों का हवाला भी उसमें दिया जाता है।
साझेदारी फर्म में सदस्यों की संख्या सीमित रहती है। कंपनी अधिनियम की धारा 11 के अनुसार बैंकिंग व्यवस्था करने वाली फर्म में दस से अधिक तथा अन्य व्यवसाय करने वाली फर्म में 20 से अधिक साझेदार नहीं होने चाहिए। अगर इससे अधिक सदस्य मिलकर फर्म बनाते हैं तो वह फर्म अवैध होगी।
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