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    कैथल में मिली भगवान विष्णु की 8वीं शताब्दी के समय की मूर्ति, गांव का महाभारत काल से हैं नाता

    Updated: Wed, 06 Aug 2025 02:31 PM (IST)

    कैथल के ऐतिहासिक गांव फरल में गुर्जर प्रतिहार काल की एक टूटी मूर्ति मिली है। वर्षों से यह मूर्ति शिव मंदिर के पास पीपल के पेड़ के नीचे थी जिसे लोग शिवलिंग मानकर पूजते थे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय पुरातत्व संस्थान के छात्रों ने इसे खोजा। अनुमान है कि यह मूर्ति भगवान विष्णु की हो सकती है। पहले भी फरल से कुषाण काल की कई वस्तुएं मिल चुकी हैं।

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    कैथल के गांव फरल में मिली प्राचीन मूर्ति। l जागरण

    संवाद सहयोगी, कैथल। ऐतिहासिक गांव फरल एक बार फिर सुर्खियों में है। हाल ही में यहां पर गुर्जर प्रतिहार काल (8वीं से 11वीं शताब्दी) की एक टूटी हुई प्राचीन मूर्ति मिली है। यह मूर्ति वर्षों से गांव के प्राचीन शिव मंदिर के समीप पीपल के पेड़ के नीचे रखी थी और स्थानीय लोग इसे शिवलिंग मानकर पूजा करते आ रहे थे।

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    इस खोज को पंडित दीनदयाल उपाध्याय पुरातत्व संस्थान, ग्रेटर नोएडा (उत्तर प्रदेश) के शोध छात्र जसबीर सिंह, राजदीप सिंह (कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय), रवि सिरोही (ग्रामीण) और नीतीश भारद्वाज (ग्रामीण) ने अन्वेषण किया। इन छात्रों के साथ गांव के स्थानीय लोग भी इस कार्य में सक्रिय रूप से जुड़े रहे।

    भगवान विष्णु की हो सकती मूर्ति

    पुरातत्व संस्थान के छात्र जसबीर सिंह ने बताया कि यह मूर्ति चूना पत्थर की बनी हुई है। इसकी बनावट से अंदाजा लगाया गया है कि यह संभवत: भगवान विष्णु की हो सकती है, हालांकि मूर्ति के कुछ हिस्से टूटे होने के कारण इसकी सही पहचान नहीं हो पाई है। मूर्ति की सफाई श्री फल्गु ऋषि कमेटी के अध्यक्ष भीम सेन शर्मा की देखरेख में की गई।

    जसबीर सिंह ने बताया कि यह मूर्ति लंबे समय से उसी स्थान पर रखी थी, लेकिन अब यह स्पष्ट है कि यह एक पुरातात्विक धरोहर है न कि शिवलिंग, जैसा कि पहले माना जा रहा था।

    इससे पहले भी गांव फरल से कुषाण काल के तांबे के सिक्के, मिट्टी के बर्तन, तथा गुप्त और राजपूत काल की कई महत्वपूर्ण वस्तुएं प्राप्त हो चुकी हैं।

    15 से 20 मीटर है लंबाई

    इन खोजों में स्थानीय छात्र विनोद कुमार की भी अहम भूमिका रही है। गांव का यह टीला, जिसकी ऊंचाई लगभग 15-20 मीटर है, प्राचीन काल से कई संस्कृतियों और सभ्यताओं का केंद्र रहा है।

    महाभारतकालीन फल्गु तीर्थ से है फरल की पहचान उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा के पंडित दीनदयाल उपाध्याय पुरातत्व संस्थान के शोध छात्र जसबीर सिंह ने बताया कि इस पत्थर से ऐसी प्रतिमाएं 8वीं व 11वीं शताब्दी में बनती थी। इस क्षेत्र में पहले इस काल की प्रतिमाएं मिल चुकी हैं।

    इन्हें चंडीगढ़ व कुरुक्षेत्र के संग्रहालय में रखा हुआ है। अब तक की गई जांच से यह प्रतीत होता है कि ये प्रतिमाएं काफी प्राचीन हैं और गुर्जर प्रतिहार वैष्णो पंथी थे। जो भगवान विष्णु के भक्त थे।

    ऐतिहासिक है फरल गांव

    बता दें कि गांव फरल काफी ऐतिहासिक गांव है। जिसकी पहचान महाभारतकाल के फल्गु तीर्थ से होती है। फल्गु तीर्थ का उल्लेख वामन पुराण और महाभारत के वन पर्व में भी मिलता है। यह गांव फल्गु ऋषि से जुड़ा है। प्राचीन इतिहास के अनुसार पांडवों ने युद्ध के बाद अपने पूर्वजों की शांति के लिए यहां पिंडदान किया था।

    इतिहासकारों का मानना- क्षेत्र गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य के अिधन रहा होगा इतिहासकारों का मानना है कि यह क्षेत्र गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य के अधीन रहा होगा। पास ही स्थित पिहोवा (जिसका प्राचीन नाम पृथूदक है) से भी प्रतिहार काल के अभिलेख प्राप्त हो चुके हैं।

    इससे यह संकेत मिलता है कि फरल उस समय गुर्जर प्रतिहारों के अधीन होगा और उस काल का कोई मंदिर अवश्य रहा होगा। गांव के ये पुरातात्विक अवशेष और मूर्तियां आने वाले समय में इतिहास और संस्कृति के शोधकर्ताओं के लिए महत्वपूर्ण स्रोत बन सकते हैं। फरल गांव (फल्की वन) का जिक्र साहित्यिक स्त्रोत में तो है ही अब धीरे-धीरे एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल के रूप में भी होता नजर आ रहा है।