राजा अशोक मौर्य, नर सुल्तान और जानी चोर जिस झील पर रुके थे, वह अस्तित्व होने के कगार पर
मीठे पानी की जिस झील के नाम पर नरवाना के पास स्थित झील गांव का नाम पड़ा है ग्रामीणों और प्रशासन की बेरुखी के चलते वह झील आज खत्म होने की कगार पर है। पांच सौ साल पहले झील गांव में जहां मीठे पानी की झील होती थी वहां आज तालाब है और वह लगातार सिमटता जा रहा है।
जागरण संवाददाता, जींद : मीठे पानी की जिस झील के नाम पर नरवाना के पास स्थित झील गांव का नाम पड़ा है, ग्रामीणों और प्रशासन की बेरुखी के चलते वह झील आज खत्म होने की कगार पर है। पांच सौ साल पहले झील गांव में जहां मीठे पानी की झील होती थी, वहां आज तालाब है और वह लगातार सिमटता जा रहा है। ग्रामीणों ने समय रहते इस ऐतिहासिक झील को सहेजने का प्रयास नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं, जब यह तालाब इतिहास बनकर रह जाएगा।
झील गांव के साथ कई रोचक किस्से जुड़े हुए हैं। गांव के बसाऊ राम शर्मा, रामस्वरूप, रामनिवास, प्रेम सिंह, जोगिद्र, नफे सिंह, बलवान आदि ने बताया कि पांच सौ साल पहले यहां पर एक बड़ी मीठे पानी की झील होती थी। इस झील के कारण ही गांव का नाम झील पड़ा है। कैथल की तरफ से इसमें पानी आता था और आगे सिरसा की तरफ जाता था। राजा अशोक मौर्य ने तक्षशीला की तरफ जाते हुए पूरी सेना के साथ अपना पहला पड़ाव झील गांव में ही डाला था। लगभग चार सौ साल पहले कैथल में तत्कालीन शासक राजा अदलीखां पठान की कैद में रानी महकदे थी तो रानी महकदे कैथल से सिरसा की तरफ बहने वाले पानी में हर रोज एक तख्ती लिखकर डालती थी। तख्ती में उसे अदलीखां पठान की कैद से रिहा कराने बारे लिखा होता था। जब राजा नर सुल्तान और जानी चोर जब अपनी बहन के घर भात भरने जा रहे थे तो इस दौरान वह झील पर नहाने के लिए रुके थे। झील में नहाने के दौरान उन्हें रानी महकदे द्वारा डाली गई तख्ती मिली और उसे पढ़ा। इसके बाद उन्होंने रानी महकदे को अदलीखां पठान की कैद से आजाद कराने का प्लान बनाया। तब राजा नर सुल्तान अपनी बहन के घर चला गया और जानी चोर महकदे को अदलीखां पठान की कैद से आजाद करवाकर लाया। इसके बाद रानी महकदे ने राजा नर सुलतान के साथ विवाह कर लिया था। जिस जगह पर झील होती थी, वहां पर आज तालाब है।
जनवरी में गिरी चार सौ साल पुरानी बुर्जी
ग्रामीणों इस तालाब को भराणा तालाब के नाम से पुकारते हैं। लगभग 150 साल पहले गणेश पुरी नामक बाबा द्वारा यहां पर घाट बनवाया था। बाद में इसके पास ही बाबा ने समाधि ले ली थी। गांव के लोग बताते हैं कि इसी साल जनवरी में तालाब पर बनी बुर्जी गिर गई। उस बुर्जी पर उस 400 साल पुरानी राजा और रानी की कलाकृति भी बनाई गई थी।
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ऐतिहासिक तालाब का अस्तित्व खतरे में
कभी ऐसा भी समय था, जब इस तालाब के पानी को दूध में मिलाया जाता था और पीने के लिए इस पानी का प्रयोग किया जाता था लेकिन आज स्थिति बदल चुकी है। आज इस तालाब का पानी पशुओं के पीने लायक भी नहीं बचा है। पानी में गंदगी इतनी पड़ी है कि इसके पास से गुजरते भी नहीं बन पा रहा। 3 एकड़ से तालाब का एरिया सिमटकर एक एकड़ ही रह गया है। अवैध कब्जों से लेकर गोबर, कूड़ा इसके सहारे डाला जा रहा है। अगर ग्रामीणों और प्रशासन द्वारा जल्द इसके संरक्षण को लेकर कोई कदम नहीं उठाए गए तो गांव की यह धरोहर इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगी।
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घाट का पुनर्निर्माण होगा, चहारदीवारी बनेगी : प्रदीप मोर
झील गांव के सरपंच प्रदीप मोर ने कहा कि भराणा तालाब के घाट का पुनर्निर्माण करवाया जाएगा। इसके चारों तरफ चहारदीवारी निकाली जाएगी। पानी निकालने को लेकर खेतों में इसका पानी ले जाने के लिए पाइप लाइन दबाई गई है। धान के सीजन में तालाब से पानी निकाला जाता है। इसके अलावा गांव के दूसरे तालाबों के संरक्षण को लेकर भी पंचायत द्वारा प्रयास किए जा रहे हैं।
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