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    मां की प्रतिमा एक व मंदिर दो, भीमेश्वरी देवी की महिमा अपरंपार; पांडवों को युद्ध में दिलाई थी जीत, ऐसे पहुंचे माता के दरबार

    Updated: Fri, 28 Mar 2025 07:09 PM (IST)

    मां भीमेश्वरी देवी का मंदिर झज्जर के कस्बा बेरी में स्थित है। इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। जीत का मार्ग प्रशस्त करने के लिए महाबली भीम पाकिस्तान स्थित हिंगलाज पर्वत गए थे। पर्वत से रण क्षेत्र के लिए मां को लेकर चले भीम की तत्कालीन समय में हुई भूल के परिणाम स्वरूप आज भी मां बेरी में ही विद्यमान हैं।

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    जानिए क्या है झज्जर के बेरी स्थित भीमेश्वरी देवी की महिमा।

    अमित पोपली, झज्जर। कस्बा बेरी स्थित मां भीमेश्वरी देवी का इतिहास महाभारत की ऐसी छिपी हुई घटना से है, जिसमें मंदिर के निर्माण और देवी की स्थापना को लेकर एक पौराणिक किस्सा जुड़ा हुआ है।

    मुख्य पुजारी पंडित कुलदीप वशिष्ठ बताते हैं कि भगवान श्री कृष्ण के आदेशानुसार युद्ध के दौरान जीत का मार्ग प्रशस्त करने के लिए महाबली भीम पाकिस्तान स्थित हिंगलाज पर्वत गए थे।

    एक तय शर्त के आधार पर पर्वत से रण क्षेत्र के लिए मां को लेकर चले भीम की तत्कालीन समय में हुई भूल के परिणाम स्वरूप आज भी मां बेरी में ही विद्यमान हैं। युद्ध के बाद दुर्योधन की माता गांधारी ने प्राचीन मंदिर का निर्माण कराया था।

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    नवरात्र में लगता है मेला

    सात समुंदर पार भी धर्म में आस्था रखने वाले लोग मौका मिलने पर यहां पहुंचकर शक्तिपीठ का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। ऋषि दुर्वासा द्वारा रचित आरती से मां की मंगला आरती के दौरान विशेष पूजा की जाती है।

    वर्ष में दो दफा नवरात्र के दिनों में लगने वाले मेले में मंगला आरती के मौके पर ऐसा माहौल बनता है कि मानो साक्षात सभी देवी-देवता आसमान से मां पर फूलों की वर्षा कर रहे हो। मां की अपरंपार महिमा का गुणगान करने वाले भक्तों का कहना है कि उन्होंने मां को हर क्षण झोली भरकर देते हुए महसूस किया है।

    मां की प्रतिमा एक, मंदिर दो

    सदियों से चली आ रही परंपरा के मुताबिक, मां भीमेश्वरी देवी की प्रतिमा को बाहर वाले मंदिर में सुबह लाया जाता है। दोपहर के समय में मां की मूर्ति को पुजारी अपनी गोद में उठाकर कस्बे के अंदर वाले मंदिर में लेकर जाते हैं। मां रात भर अंदर वाले मंदिर में आराम करती हैं।

    मान्यता है मां का मंदिर पुराने समय में जंगलों में था। तब ऋषि दुर्वासा ने मां से विनती की थी कि वे उनके आश्रम में आकर भी रहे। तब से दो मंदिरों की यह परंपरा चल रही है। आज भी यहां पर बड़े भाव से ऋषि दुर्वासा द्वारा रचित आरती से पूजा अर्चना की जाती है।

    मेले के दौरान विशेष तौर पर चांदी के सिंहासन पर मां कोलकाता से आने वाली विशेष पोशाक में श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देती है। नवरात्र के दिनों में यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु पूजा अर्चना के लिए पहुंचते हैं।

    कोलकाता की पोशाक से सज रही मां भीमेश्वरी देवी

    नवरात्र के मौके पर होने वाले विशेष आयोजन को भव्यता प्रदान करने के लिए तैयारियां भी उसी स्तर से शुरू हो चुकी हैं। मां के मंदिर को सजाने के लिए पश्चिम बंगाल से विशेष रूप से विदेशी फूलों और दरबार की व्यवस्था की गई है। कोलकाता से मां भीमेश्वरी देवी के लिए पोशाक आई है।

    हर दिन हर नवरात्र के मौके पर मां के लिए रंग-बिरंगी पोशाकों का इंतजाम मंदिर समिति की ओर से किया जाता है। ताकि मंदिर में पहुंचने वाले भक्तों पर मां की कृपा भी उसी रूप में बरसे जैसा कि वह चाहते हैं।

    मां भीमेश्वरी देवी की पूजा-आरती बड़ी फलदायक है। नारियल, चुनरी, प्रसाद और फलों-मेवों से यहां पारंपरिक विधि विधान के साथ माता बेरी वाली की पूजा अर्चना की जाती है। मां के बाहरी भवन के पीछे की ओर बने तालाब पर नवजात शिशुओं के बाल उतारने की पुरानी परंपरा है।

    कैसे पहुंचे मां के दरबार

    सड़क के द्वारा

    • दिल्ली से बहादुरगढ़ होते हुए झज्जर के रास्ते व छारा, दुजाना के रास्ते बेरी पहुंच सकते हैं।
    • भिवानी तथा हिसार से कलानौर के रास्ते बेरी आ सकते हैं।
    • चंडीगढ से करनाल, पानीपत, रोहतक होते हुए डीघल से बेरी मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
    • रेवाड़ी से वाया झज्जर होते हुए तथा महेंद्रगढ़ से चरखी दादरी, छुछकवास, जहाजगढ़ होते हुए श्रद्धालु बेरी मंदिर पहुंच सकते हैं।

    ट्रेन द्वारा

    सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन झज्जर है, जो कि 12 किमी है। इसके अतिरिक्त रोहतक, बहादुरगढ़ और कलानौर से भी यहां पहुंच सकते हैं।

    हवाई सफर

    सबसे नजदीकी हवाई अड्डा इंदिरा गांधी हवाई अड्डा है, जो करीब 55 किलोमीटर है।

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