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    आसनों में श्रेष्ठ है सिद्धासन : योगाचार्य

    By JagranEdited By:
    Updated: Fri, 09 Jun 2017 01:01 AM (IST)

    जागरण संवाददाता, झज्जर : स्वस्थ शरीर सभी चाहते हैं, लेकिन स्वस्थ शरीर के लिए रोजाना योग व नियमित दिन

    आसनों में श्रेष्ठ है सिद्धासन : योगाचार्य

    जागरण संवाददाता, झज्जर : स्वस्थ शरीर सभी चाहते हैं, लेकिन स्वस्थ शरीर के लिए रोजाना योग व नियमित दिनचर्या इसके लिए आवश्यक है। कुछ योगासन ऐसे हैं जिन्हें नियमित रूप से करने से शरीर न सिर्फ स्वस्थ रहता है, बल्कि एनर्जी भी मिलती है। योगाचार्य बलदेव के मुताबिक सिद्धासन, नाम से ही ज्ञात होता है कि यह आसन सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाला है, इसलिए ही इसे सिद्धासन कहा जाता है। यमों में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ है, नियमों में शौच श्रेष्ठ है वैसे आसनों में सिद्धासन श्रेष्ठ है। योगाचार्य के अनुसार, Þजिस प्रकार केवल कुम्भक के समय कोई कुम्भक नहीं, खेचरी मुद्रा के समान कोई मुद्रा नहीं, नाद के समय कोई लय नहीं; उसी प्रकार सिद्धासन के समान कोई दूसरा आसन नहीं है।

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    सिद्धासन की विधि : समतल स्थान पर कंबल आदि आसन पर बैठकर पैर खुले छोड़ दें। अब बाएं पैर की एड़ी को गुदा और जननेंद्रिय के बीच रखें। दाहिने पैर की एड़ी को जननेंद्रिय के ऊपर इस प्रकार रखें। जिससे जननेंद्रिय और अंडकोष के ऊपर दबाव न पड़े। पैरों का क्रम बदल भी सकते हैं। दोनों पैरों के तलवे जंघा के मध्य भाग में रखें। हथेली ऊपर की ओर रहे इस प्रकार दोनों हाथ एक दूसरे के ऊपर गोद में रखें। दोनों हाथों को दोनो घुटनों के ऊपर ज्ञानमुद्रा में रखें। आंखें खुली या बंद रखें। श्वास सामान्य रखें और ध्यान केन्द्रित करें। पांच मिनट तक इस आसन का अभ्यास कर सकते हैं। ध्यान की उच्च कक्षा आने पर शरीर पर से मन की पकड़ छूट जाती है।

    सिद्धासन के लाभ

    - सिद्धासन से शरीर की समस्त नाड़ियों का शुद्धिकरण होता है।

    - ध्यान लगाना सरल हो जाता है।

    - डायजेशन नियमित होता है।

    - सांस के रोग, दिल के रोग, बुखार, अपच, अतिसार, शुक्रदोष आदि दूर होते हैं।

    - ब्रह्मचर्य-पालन में यह आसन विशेष रूप से सहायक होता है।

    - इस आसन के अभ्यास से साधक का मन विषय वासना से मुक्त हो जाता है

    विद्यार्थियों को मिलेगा विशेष लाभ

    गृहस्थ लोगों को इस आसन का अभ्यास लम्बे समय तक नहीं करना चाहिए। सिद्धासन को बलपूर्वक नहीं करनी चाहिए। साइटिका, स्लिप डिस्क वाले व्यक्तियों को भी इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए। घुटने में दर्द हो, जोड़ो का दर्द हो या कमर दर्द की शिकायत हो, उन्हें भी इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए। गुदा रोगों जैसे बवासीर आदि से पीड़ित रोगी भी इसका अभ्यास नहीं करें।

    सिद्धासन में बैठकर जो कुछ पढ़ा जाता है वह अच्छी तरह याद रह जाता है। विद्यार्थियों के लिए यह आसन विशेष लाभदायक है। जठराग्नि तेज होती है। दिमाग स्थिर बनता है जिससे स्मरणशक्ति बढ़ती है। चाहे कोई भी आसन हो उसको सही तरीके के साथ करना चाहिए, क्योंकि जब हम उसे सही तरीके के साथ करेगें तो उसका नतीजा भी सही होगा और यदि हम किसी भी आसन को करने के लिए गलत तरीका अपनाते हैं, तो हमें फायदा तो नहीं होता बल्कि हमारे शरीर को नुकसान का सामना करना पड़ता है।

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    आत्मा का ध्यान करने वाला योगी यदि मिताहारी बनकर बारह वर्ष तक सिद्धासन का अभ्यास करे तो सिद्धि को प्राप्त होता है। सिद्धासन सिद्ध होने के बाद अन्य आसनों का कोई प्रयोजन नहीं रह जाता। सिद्धासन से केवल या केवली कुम्भक सिद्ध होता है। छ: मास में भी केवली कुम्भक सिद्ध हो सकता है और ऐसे सिद्ध योगी के दर्शन-पूजन से पातक नष्ट होते हैं, मनोकामना पूर्ण होती है। सिद्धासन के प्रताप से निर्बीज समाधि सिद्ध हो जाती है।