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    नंद-यशोदा को खोजने में जुटी झज्‍जर की संस्‍था, 11 लावारिस बच्चों को मिले पालनहार, 2 की विदेश जाने की तैयारी

    By Manoj KumarEdited By:
    Updated: Wed, 23 Dec 2020 05:58 PM (IST)

    24 दिसंबर 2015 को झज्जर में शुरू की गई सा एजेंसी को करीब पांच साल पूरे होंगे। पांच सालों में अब तक 11 बच्चों को नए माता-पिता से मिला चुके हैं। फिलहाल 5 बच्चे (तीन लड़की व दो लड़के) अभी सा के पास हैं।

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    एजेंसी के माध्‍यम से जिन 11 बच्‍चों को माता पिता मिले हैं उनमें 2 को विदेशियों ने गोद लिया है

    झज्जर [दीपक शर्मा] करीब पांच माह पहले बहादुरगढ़ के रेलवे स्टेशन स्थित शौचालय से कुछ दूरी पर और रेल की पटरियों के पास अलग-अलग समय में दो मासूम लावारिस अवस्था में पाए गए थे। लॉकडाउन के दौर में जब परिवार का एक-एक सदस्य दूसरे के लिए मजबूती से सहारा बना हुआ था। वहीं, दोनों मासूमों के परिवार का शायद कलेजा भी नहीं पसीजा। ऐसी स्थिति में लावारिस पाए गए मासूमों का दर्द दूसरों से देखा नहीं गया। दोनों बच्चों को सा (विशेष दत्तक ग्रहण एजेंसी) तक पहुंचाया गया।

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    करीब पांच माह के अंतराल में दोनों का समय फिर से बदल गया है। उन्हें नए मां-बाप के साथ अच्छी पहचान भी मिल रही है। वास्तविक मां-बाप ने तो छोड़ दिया, लेकिन अब नए मां-बात उनका पालन पोषण करेंगे। जिस तरह से भगवान श्री कृष्‍ण को जन्‍म देवकी ने दिया, मगर पालन पोषण यशोदा ने किया ठीक वैसी ही कहानी भी यहां बनने जा रही है।

    ---कोरोना महामारी के बीच बाल भवन स्थित सा (विशेष दत्तक ग्रहण एजेंसी) की टीम ने तीन बच्चों को उनके नए माता-पिता से मिलाने का काम किया है। इनमें से एक 10 माह का लड़का जुलाई माह में बहादुरगढ़ रेलवे स्टेशन के पास मिला था। जिसे अब यमुनानगर के परिवार ने उसे 16 दिसंबर को गोद दिया है। उसके नए पिता प्राइवेट कंपनी में जॉब करते हैं। 8 माह का बच्चा रेल की पटरियों के पास मिला था। अब उस बच्चे को 17 दिसंबर को कैथल के एक परिवार ने गोद लिया है। जबकि, पीजीआइ से पहुंची एक साल एक माह की बच्ची को लुधियाना के एक परिवार ने गोद लिया है। बच्ची के नए पिता बैंक में नौकरी करते हैं।

    -----24 दिसंबर 2015 को झज्जर में शुरू की गई सा को करीब पांच साल पूरे हो चुके हैं। पांच सालों में अब तक 11 बच्चों को नए माता-पिता से मिला चुके हैं। फिलहाल 5 बच्चे (तीन लड़की व दो लड़के) अभी सा के पास हैं। संस्था की ओर से लिए जा रहे फीडबैक के दौरान बच्चे काफी खुश भी नजर आ रहे हैं। यहां तक कि अब बच्चे अपने नए माता-पिता के साथ भी वास्तविक माता-पिता की तरह ही रहते हैं। बच्चों के बारे में सा की टीम बच्चा गोद लेने के बाद भी दो साल तक जाती रहती है। वहां पर बच्चे से मिलती है।

    फीडबैक के दौरान अब तक गोद दिए गए बच्चे अच्छे से माता-पिता के साथ रहते नजर आए। दिसंबर माह में जिला बाल कल्याण अधिकारी ओमप्रकाश बिबयान, जिला बाल संरक्षण अधिकारी लतिका, प्रोजेक्ट कॉर्डिनेटर मनदीप कौर, पूनम नर्स, प्रमोद व सोमबीर की टीम द्वारा प्रक्रिया को पूरा किया गया।

    लावारिसों की विदेश से जुड़ी पहचान

    मूल रूप से भारतीय और विदेश में रहने वाले परिवार भी सा के संपर्क में हैं। करीब सालभर पहले एक बेटी को अमेरिका के परिवार ने गोद लिया था। फिलहाल वह सोनीपत में है। बच्ची के पिता बड़े इंजीनियर हैं। जबकि, एक लड़के को गोद लेने की प्रक्रिया जारी है। जिसे गोद लेने वाले माता-पिता अमेरिका में रहते है। उसके लिए भी कागजी कार्रवाई चल रही है। पूरी होने के बाद उसे भी अमेरिका का परिवार गोद लेगा।

    डेढ़ से ढाई साल का लग रहा समय

    प्रोजेक्ट कॉर्डिनेटर मनदीप कौर ने बताया कि बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया में करीब डेढ़ से ढाई साल तक का समय लग जाता है। इसके लिए पहले इच्छुक माता-पिता को कारा (सीएआरए) की साइट पर जाकर ऑनलाइन आवेदन करना होगा। इसके लिए उनके मेडिकल सर्टिफिकेट, आय प्रमाण पत्र, वोटर कार्ड, आधार कार्ड, मेरिज सर्टिफिकेट आदी की जरूरत होती है। इसके बाद सा की टीम उस परिवार के घर का दौरा करती है। जहां पर देखा जाता है कि वे बच्चे को सभी सुविधाएं दे पाएंगे या नहीं। सभी सुविधाएं मिलने के बाद उन्हें ऑनलाइन तीन बच्चों के फोटो दिखाए जाते हैं। उनमें से परिवार को एक बच्चे का चुनाव करना होता है। फिर परिवार को बच्चे से भी मिलता है। राजी होने के बाद कागजी कार्रवाई शुरू होती है।

    -सा संस्‍था के माध्यम से बच्चों को उनके नए माता-पिता से मिलाया जा रहा है। ताकि उनका भविष्य सुधारा जा सके। अब तक कुल 11 बच्चों को मिलाया जा चुका हैं। शेष के लिए भी प्रक्रिया चल रही है। सभी बच्चे अपने नए माता-पिता के साथ खुश हैं।

    ओमप्रकाश बिबयान, जिला बाल कल्याण अधिकारी, झज्जर।