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    जेलों को ‘सुधार गृह’ बनाने की वकालत, कैदियों के पुनर्वास पर सीजेआई का बड़ा बयान

    By ADITYA RAJEdited By: Neeraj Tiwari
    Updated: Sat, 06 Dec 2025 11:12 PM (IST)

    भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) ने जेलों को 'सुधार गृह' के रूप में विकसित करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है। उन्होंने कैदियों के पुनर्वास और समाज में ...और पढ़ें

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    देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआइ) न्यायमूर्ति सूर्यकांत शनिवार शाम प्रदेश की जेलों में कौशल विकास एवं पालिटेक्निक कोर्सेज का शुभारंभ करने के बाद समारोह कासे किया संबोधित। जागरण

    जागरण संवाददाता, गुरुग्राम। देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआइ) न्यायमूर्ति सूर्यकांत का मानना है कि भारतीय कानून व्यवस्था सुधार की बात करती है, सजा की नहीं। इसे ध्यान में रखकर जेलों का नाम सुधार गृह करने पर जोर देना चाहिए। साथ ही जेलों से बाहर निकलने वाले लोगों को समाज पूरी तरह स्वीकार करे, इस बारे में गहन चिंतन करने की आवश्यकता है। इसके लिए माहौल तैयार करने पर जोर देना होगा।

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    ये विचार न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने शनिवार शाम प्रदेश की जेलों में कौशल विकास एवं पालिटेक्निक कोर्सेज का शुभारंभ करने के बाद समारोह में व्यक्त किए। सभी जेलों के लिए कोर्सेज का शुभारंभ भोंडसी जेल से किया गया। कोर्सेज के शुभारंभ समारोह एवं बाद में पुलिस प्रशिक्षण केंद्र में आयोजित सेमिनार में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि यदि व्यक्ति जेल से बाहर आने के बाद उपयुक्त मार्गदर्शन, शिक्षा एवं कौशल समर्थन नहीं पाता, तो उसका समाज में पुनर्वास कठिन हो जाता है।

    इस वजह से कई बार वह दोबारा अपराध चक्र में फंस जाता है। इसके ऊपर ध्यान देना होगा। उन्होंने सुधारात्मक प्रणाली को मजबूत करने हेतु कई महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए। उन्होंने कहा कि पुनर्वास केवल आशा पर नहीं, बल्कि एक योजनाबद्ध प्रक्रिया पर आधारित होना चाहिए। इसके लिए प्रत्येक जिले में पुनर्वास बोर्ड गठित किए जाएं, जिनमें प्रोबेशन अधिकारी, उद्योग प्रतिनिधि, सामाजिक संस्थाएं एवं मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ शामिल हों, ताकि प्रत्येक रिहाई एक ठोस कार्ययोजना के साथ हो।

    प्रवासी मजदूरों की विशिष्ट संवेदनशीलताओं को रेखांकित करते हुए कहा कि उनकी चुनौतियां परिस्थितिजन्य हैं, आपराधिक नहीं। उनके लिए सरल ज़मानत प्रक्रिया, बहुभाषीय कानूनी सहायता और आवश्यक दस्तावेज सहायता उपलब्ध कराई जानी चाहिए। मनोवैज्ञानिक पुनर्वास को व्यावसायिक प्रशिक्षण के साथ मजबूत किया जाना चाहिए, क्योंकि कौशल अवसर देता है लेकिन मनोवैज्ञानिक स्थिरता व्यक्ति को आगे बढ़ने की शक्ति प्रदान करती है।

    इस संदर्भ में आज शुरू किया गया यूथ अगेंस्ट ड्रग्स अभियान अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्रशिक्षण भविष्य की अर्थव्यवस्था के अनुरूप होना चाहिए। उन्होंने उद्योग जगत से अपील की कि वे जेलों को अपनाने, अप्रेंटिसशिप देने और प्रशिक्षित कैदियों को रोजगार उपलब्ध कराने में सहयोग करें। ब्रिटेन में अपनाए गए एक अभिनव माडल का उल्लेख करते हुए कहा कि इसे बेंगलुरु की एक साफ्टवेयर कंपनी के सहयोग से विकसित किया गया है।

    इस माॅडल में कैदियों को निगरानी चिप लगाकर घर पर रहने की अनुमति मिलती है, जिससे उनका पारिवारिक जीवन, आय और सामाजिक जिम्मेदारियां बाधित नहीं होतीं। यह मानवीय सुधार माडल सुरक्षा और पुनर्वास के बीच संतुलन स्थापित करता है।

    न्यायमूर्ति अहसनुद्दीन अमानुल्लाह ने कहा कि समाज का सबसे बड़ा कर्तव्य यह है कि वह सुधार कर चुके व्यक्तियों को सम्मानपूर्वक स्वीकार करे। यदि समाज स्वीकार नहीं करेगा, तो किसी भी पुनर्वास व्यवस्था का उद्देश्य अधूरा रह जाएगा।

    न्यायमूर्ति आगस्टीन जार्ज मसीह ने कहा कि जेलों को दंड के स्थानों से आगे बढ़कर अवसर, पुनर्निमाण और नई शुरुआत के केंद्रों में बदलना अत्यंत आवश्यक है। यह तभी संभव होगा जब उन्हें कौशल, शिक्षा और रोजगार के अवसरों से जोड़ा जाए।

    न्यायमूर्ति राजेश बिंदल ने कहा कि इस पहल की सफलता के लिए सरकार को कैदियों के लिए ठोस रोजगार अवसर सुनिश्चित करने होंगे और सार्वजनिक एजेंसियों के साथ साझेदारी को मजबूत करना होगा।

    न्यायमूर्ति शील नागू ने कहा कि जेलों में कौशल विकास केंद्रों और आइटीआइ कोर्सों का शुभारंभ हिरासत-आधारित व्यवस्था से सुधारात्मक व्यवस्था की ओर एक निर्णायक परिवर्तन है। पुनर्वास का वास्तविक उद्देश्य प्रशिक्षित कैदी को रोजगार योग्य नागरिक में बदलना है।

    हरियाणा के मुख्य सचिव अनुराग रस्तोगी ने कहा कि सेमिनार में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत व अन्य न्यायाधीशों ने जो विचार व सुझाव रखे हैं, सभी के विचारों को मूर्त रूप देने की पूरी कोशिश की जाएगी।

    हुनरबंद बनेंगे जेलों के कैदी व बंदी

    जेलों में कौशल विकास केंद्रों और तकनीकी प्रशिक्षण सुविधाओं से कैदियों को रोजगारोन्मुखी शिक्षा उपलब्ध होगी, जिससे वे रिहाई के बाद आत्मनिर्भर जीवन जीने के लिए सक्षम बन सकेंगे। कैदियों को कंप्यूटर आपरेटर और प्रोग्रामिंग सहायक, वेल्डर, प्लंबर, ग्रेस मेकर, इलेक्ट्रीशियन, बुडवर्क टेक्नीशियन, सिलाई तकनीक और कास्मेटोलाजी का प्रशिक्षण दिया जाएगा। आइटीआइ पाठ्यक्रम और कंप्यूटर इंजीनियरिंग में तीन वर्षीय पालिटेक्निक डिप्लोमा की डिग्री दी जाएगी।

    इसका उद्देश्य कैदियों को वर्तमान उद्योग की मांगों के अनुरूप रोजगारपरक कौशल से परिपूर्ण करना है। कार्यक्रम के दौरान नशा विरोधी जागरूकता अभियान का शुभारंभ किया गया। इस मौके पर पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति लीसा गिल, हरियाणा की अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह, जेल एवं न्यायिक) डा. सुमिता मिश्रा, पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह, जेल महानिदेशक आलोक राय एवं महानिरीक्षक (जेल) बी सतीश बालन आदि मौजूद रहे। कार्यक्रम के दौरान हरियाणा, पंजाब एवं चंडीगढ़ की ओर से कैदियों के सुधार को लेकर किए जा रहे प्रयासों के बारे में जानकारी दी गई।

    कैदियों ने अपनी प्रतिभा का किया प्रदर्शन

    पाठ्यक्रमों के शुभारंभ समारोह में कैदियों ने अपनी प्रस्तुति से सभी का मन मोह लिया। कैदी अशोक ने रागनी प्रस्तुत कर तो रुचिका ने कविता पाठ कर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। रुचिका की रचना से मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपने भाषण के दौरान उसका विशेष रूप से उल्लेख किया।

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