भरत मिलाप का जुलूस देख मानी थी मन्नत, नवाबी का मुकदमा जीते तो कराने लगे रामलीला
पटौदी की रामलीला जो 122 साल से अधिक पुरानी है हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है। नवाब मुजफ्फर अली खान ने मन्नत पूरी होने पर इसे शुरू करवाया था। रामलीला में प्रतिदिन शोभायात्रा निकलती है और दशहरे पर रावण दहन होता है। अंतिम दिन भरत मिलाप का विशेष आयोजन होता है जिसमें भारी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं। यह रामलीला श्रद्धा और समर्पण का एक अनूठा उदाहरण है।

डॉ. ओमप्रकाश अदलखा, पटौदी। पटौदी की दिन की रामलीला सिर्फ धार्मिक मंचन ही नहीं, बल्कि इतिहास, परंपरा और गंगा-जमुनी संस्कृति का अनुपम उदाहरण है। यह परंपरा लगभग 122 वर्ष पुरानी है। अभिनेता सैफ अली खान के षडदादा नवाब मुजफ्फर अली खान ने अंग्रेज अफसर की अदालत से नवाबी का मुकदमा जीतने की मन्नत पूरी होने पर इसे शुरू करवाया था।
अतीत में जहां सभी रामलीलाएं बिजली न होने के चलते दिन में ही होती थीं, वहीं अब बिजली तथा अन्य साधनों के होने एवं लोगों की व्यस्तता के कारण रामलीलाएं रात को होती हैं। प्रदेश में दो-तीन रामलीलाएं अब भी दिन में करने की परंपरा चलती आ रही हैं। उनमें पटौदी भी एक है।
इतिहास की परतों से जुड़ी है रामलीला
पटौदी के पांचवें नवाब मुमताज हसन अली खान की 1898 में असामयिक मृत्यु हो गई थी। वे संतानहीन थे, जिसके बाद रियासत पर अधिकार को लेकर रियासत के एक अधिकारी तथा उनके रिश्ते के एक भाई मुजफ्फर अली खान ने दावा किया।
मुकदमा दिल्ली की अंग्रेज अदालत में चला। उसी दौरान मुअज्जफर अली खान ने दिल्ली में भरत मिलाप का जलूस देखा और मन्नत मांगी कि मुकदमा जीतने पर पटौदी में रामलीला शुरू करेंगे। मन्नत पूरी हुई और नवाबी का फैसला उनके पक्ष में आया।
नवाब बनने के बाद उन्होंने नगर के गणमान्य लोगों और विद्वान पंडितों की सलाह से रामलीला शुरू करवाई। बताया जाता है कि नवाबी शासनकाल में नवाब परिवार स्वयं भी रामलीला देखने पहुंचते थे तथा उनका एवं उनकी बेगम का टेंट रामलीला मैदान में लगता था।
प्रतिदिन निकलती है शोभायात्रा
रामलीला धर्मशाला से प्रतिदिन भव्य झांकियों की शोभायात्रा निकलती है, जो नगरभर से होती हुई रामलीला मैदान तक पहुंचती है। इस शोभायात्रा का नगर में स्थान स्थान पर स्वागत होता है, जिससे लोगों की आस्था और उत्साह दोनों बढ़ते हैं।
मंचन की विशेषता यह है कि कलाकार पहले मैदान के बीच में और फिर घूम-घूमकर अभिनय करते हैं। दशहरे पर रावण के साथ-साथ मेघनाद, कुंभकर्ण और लंका के पुतले भी दहन किए जाते हैं। पंचवटी, स्वर्ण मृग और सोने की लंका के बड़े बड़े पुतले भी बनाए जाते हैं। इस बार रावण का पुतला 40 फुट ऊंचा तैयार किया गया है, जबकि लंका का पुतला 15 फुट लंबा, 15 फुट चौड़ा और 10 फुट ऊंचा रहेगा।
श्रद्धा और समर्पण का आयोजन
रामलीला पूरी श्रद्धा और समर्पण भाव से होती है। कलाकार बिना किसी पारिश्रमिक के सेवा भाव से अभिनय करते हैं। आयोजन पर आठ से दस लाख रुपये तक का खर्च आता है।
जो नगरवासियों, समाजसेवियों और रामलीला समिति की संपत्ति से जुटाया जाता है। नवाब परिवार से चंदा आज भी आता है। मुस्लिम परिवार के कुछ लोग भी रामलीला की शोभा यात्रा का स्वागत करते हैं तथा रामलीला मंचन में भी सहायक बनते हैं। यही कारण है कि यह रामलीला हिंदू-मुस्लिम एकता की अद्वितीय मिसाल बनी हुई है।
भरत मिलाप का अद्भुत दृश्य
रामलीला के अंतिम दिन नोहटा चौक पर भरत मिलाप का आयोजन विशेष आकर्षण रहता है। नगर के एक ओर से राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान का दल आता है तो दूसरी ओर से भरत और शत्रुघ्न का दल नगर भ्रमण करता हुआ पहुंचता है।
चौक पर जब दोनों दलों का मिलन होता है तो भावुक दृश्य देखने को मिलता है। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ती है और लोगों में राम-भरत का आशीर्वाद लेने की होड़ लग जाती है।
समय और कार्यक्रम
रामलीला मंचन प्रतिदिन दोपहर तीन बजे से शुरू होकर सूर्यास्त तक चलता है। पंचवटी, मेघनाद वध और कुम्भकर्ण वध के दृश्य लोगों को अत्यधिक रोमांचित करते हैं। रामलीला के अंतिम तीन दिन में काफी संख्या में श्रद्धालु रामलीला देखने पहुंचते हैं।
दशहरे का दिन तो दूर-दराज के गांवों से भी भारी संख्या में लोगों के पहुंचने से पूरा मैदान खचाखच भरा रहता है। पिछले काफी समय से अशोक शर्मा इस रामलीला के अध्यक्ष तथा लवकेश गुप्ता निदेशक चले आ रहे हैं।
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