Manesar Deputy Mayor Election: अहीरवाल की राजनीति में रचा गया नया इतिहास, केंद्रीय मंत्री का खेमा पड़ा भारी
गुरुग्राम में मानेसर नगर निगम के डिप्टी मेयर चुनाव में राव नरबीर सिंह ने बाजी मार ली। राव इंद्रजीत सिंह के खेमे ने चुनाव से पहले ही हार मान ली क्योंकि उनके समर्थक पार्षद प्रक्रिया में शामिल नहीं हुए। इस जीत ने अहिरवाल की राजनीति में राव नरबीर सिंह का कद बढ़ाया है। राव इंद्रजीत के समर्थक पार्षदों की संख्या कम होने के कारण राव नरबीर सिंह की जीत हुई।

आदित्य राज, गुरुग्राम। गुरुग्राम में मानेसर नगर निगम के सीनियर डिप्टी मेयर व डिप्टी मेयर के चुनाव ने अहीरवाल की राजनीति में एक नया इतिहास रच दिया। विषम से विषम परिस्थितियों में भी जीत हासिल करने वाले स्थानीय सांसद व केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के खेमे पर प्रदेश सरकार में उद्योग, वाणिज्य, वन एवं पर्यावरण मंत्री राव नरबीर सिंह का खेमा भारी पड़ गया।
अहिरवाल के राजनीतिक इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि राव इंद्रजीत सिंह के खेमे ने चुनाव से पहले ही हार मान ली। मेयर डा. इंद्रजीत कौर यादव सहित उनके समर्थक पार्षद चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने ही नहीं पहुंचे। इस वजह से राव नरबीर सिंह का खेमा निर्विरोध चुनाव जीत गया।
इस जीत ने जहां अहिरवाल की राजनीति में राव नरबीर सिंह का कद बढ़ा दिया है वहीं भाजपा के भीतर भी उनकी स्थिति मजबूत होगी। बताया जाता है कि इस चुनाव को राव नरबीर सिंह ने प्रतिष्ठा का प्रश्न बना रखा था। इसका यह भी प्रमाण है कि चुनाव प्रक्रिया में भाग लेने के लिए खेमे के सभी पार्षदों के पहुंचने से पहले ही राव नरबीर सिंह मानेसर पहुंच गए थे।
पिछले कई सालों से लगातार केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह अहिरवाल की राजनीति के चाणक्य बने हुए हैं। वह जिसके सिर पर हाथ रख देते हैं वही चुनाव जीत जाता है। प्रदेश भाजपा ने मानेसर नगर निगम के मेयर पद के लिए सुंदरलाल सरपंच को मैदान में उतारा था।
राव इंद्रजीत सिंह चाहते थे कि इलाके में सामाजिक रूप से सक्रिय डा. इंद्रजीत कौर यादव को टिकट मिले। टिकट न मिलने पर डा. यादव निर्दलीय मैदान में उतर गईं। सुंदरलाल को जिताने के लिए भाजपा के दिग्गज नेताओं ने पूरी ताकत झोंक दी थी। प्रदेश के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, केंद्रीय ऊर्जा मंत्री मनोहर लाल से लेकर प्रदेश अध्यक्ष मोहन लाल बड़ौली तक ने सभा की थी। राव नरबीर सिंह ने एक-एक इलाके में प्रचार अभियान चलाया था।
पार्टी के कई अन्य बड़े नेताओं ने भी जीत दिलाने के लिए लोगों से अपील की थी। सभी प्रयास राव इंद्रजीत सिंह के आगे बौने साबित हुए थे। वह मैदान में प्रचार के लिए आए भी नहीं और उनकी समर्थक डा. इंद्रजीत कौर यादव जीत गईं। कई अन्य पार्षद भी पार्टी में बगावत करते हुए राव इंद्रजीत सिंह के आशीर्वाद से जीत गए।
इस हार से राव नरबीर सिंह की ही नहीं बल्कि प्रदेश के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी एवं केंद्रीय ऊर्जा मंत्री मनोहर लाल की साख पर भी बट्टा लगा था। सूत्र बताते हैं तभी से राव नरबीर सिंह की नजर सीनियर डिप्टी एवं डिप्टी मेयर के पद पर थी। वह अपने खेमे के पार्षदों को दोनों पदों पर जीत दिलाकर अपनी साख बढ़ाना चाह रहे थे।
इसके लिए पूरी रणनीति तैयार की गई। वह अपने समर्थक पार्षदों के साथ ही दूसरे खेमों के पार्षदों से संपर्क में रहे। पार्षदों को लगा कि राव नरबीर सिंह के साथ रहने से प्रदेश सरकार का आशीर्वाद मिलता रहेगा। गुरुग्राम में रहने का भी लाभ राव नरबीर सिंह को मिला। उनसे पार्षदों का मिलना आसान है। राव इंद्रजीत सिंह दिल्ली में रहते हैं।
इस वजह से बताया जाता है कि राव इंद्रजीत सिंह के आशीर्वाद से जीते पार्षद भी राव नरबीर सिंह के खेमे में पहुंच गए। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि राव इंद्रजीत सिंह समर्थक पार्षदों की संख्या काफी कम हो गई थी। ऐसे में फ्लोर पर हार तय थी।
हालांकि, मेयर सहित समर्थक पार्षदों ने चुनाव प्रक्रिया में भाग न लेकर यह भी संकेत दे दिया कि वे राव इंद्रजीत सिंह के साथ ही मजबूती से हैं। सामने में राव नरबीर सिंह के रूप में पूरी प्रदेश सरकार को देखने के बाद भी राव इंद्रजीत सिंह के खेमे में मेयर सहित कुछ पार्षदों का रहना यह दर्शाता है कि आगे समीकरण बदल सकता है। मौका मिलते ही राव इंद्रजीत सिंह बाजी पलट सकते हैं।
बता दें कि निगम में कुल 20 पार्षद हैं। सात ने भाजपा के टिकट पर जीत हासिल की थी। 13 निर्दलीय चुनाव जीते। मंगलवार को चुनाव प्रक्रिया में कुल 15 पार्षद शामिल हुए जिनमें तीन मनोनीत और 12 चुने हुए शामिल थे। मेयर डा. इंद्रजीत कौर यादव व उनके समर्थक पार्षद शामिल नहीं हुए। प्रवीण यादव सीनियर डिप्टी मेयर और रीमा चौहान डिप्टी मेयर चुने गए।

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